हरिद्वार। भगवा त्याग का प्रतीक बताया गया है। इसे अग्नि का रूप भी कहा जाता है। संन्यासी के अतिरिक्त अन्य को भगवा धारण करने का शास्त्रोक्त निषेध है। हालांकि संन्यासी पूर्व में गेरूआ वस्त्र धारण करते थे। आज भी कई संत गेरू से रंगे वस्त्र ही धारण करते हैं। रामकृष्ण मिशन के संन्यासी तो आज भी केवल गेरूआ वस्त्र ही धारण करते हैं। हालांकि अब गेरूए वस्त्र का चलन काफी कम हो गया है। बावजूद इसके भगवा वस्त्र धारण करना गृहस्थ के लिए निषेध बताया गया है।
आजकल भगवा वस्त्र धारण करना एक रिवाज बन गया है। भगवा वस्त्र धारण कर अब अपने को सनातनी होने का भी दिखावा किया जाने लगा है। खासकर नेताओं की भगवा पसंद बन गया है। तीर्थनगरी में कुछ नेता ऐसे हैं, जो भगवा धारण कर घूमते दिखायी दे जाएंगे।
ऐसे ही एक कई दलों में घूम चुके एक नेता भी भगवा धारण किए घुमने लगे हैं। एक कार्यक्रम में तो उनके नाम के साथ महाराज तक लिख दिया गया, जबकि महाशय गृहस्थ हैं और उन्होंने अभी तक संन्यास नहीं लिया है। नेता से कथित बाबा बने यह महाशय एक चर्चित मण्डलेश्वर के चेले बने हुए हैं। वैसे जैसा चेला वैसा गुरु वाली बात भी इन पर सटीक बैठती है। भगवा धारण कर यह केवल सनातन को पलीता लगाने का काम ही कर रहे हैं।
मजेदार बात यह कि प्रदेश सरकार ने प्रदेश में ढ़ोगी बाबाओं के खिलाफ आपरेशन कालनेमि चलाया हुआ है। पुलिस केवल भिक्षावृत्ति कर अपना पेट पालने वालों के खिलाफ ही कार्यवाही कर रही है, जबकि असली कालनेमि तो वह हैं, जो बाबा का भेष धारण कर लोगों को गुमराह करने का कार्य कर रहे हैं।
इस संबंध में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्र पुरी महाराज का कहना हैै कि बिना संन्यास लिए भगवा धारण करना गलत है। इसका हम विरोध करते हैं। भगवा वस्त्र कोई मजाक की वस्तु नहीं है। इसको धारण करने का अधिकार केवल दशनाम सन्यासियों का ही है। ऐसे फर्जी लोगों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए। मजेदार बात यह कि जो लोग आपरेशन कालनेमि का समर्थन कर रहे थे, वही ऐसे लोगों का स्वागत कर रहे हैं और उन्हें समर्थन देने का कार्य कर रहे हैं।


