नवीनीकरण ना होने के कारण पहला ट्रस्ट हो चुका है अपंजीकृत
मंशा देवी से जुडे़ पदाधिकारियों पर न्यायालय की अवमानना के हैं आरोप
हरिद्वार। मां मंशा देवी फर्जी ट्रस्ट विवाद तूल पकड़ता जा रहा है। जहां फर्जी ट्रस्ट बनाने के मामले में नौ लोगों के खिलाफ मुकद्मा दर्ज करवाया गया है। वहीं फर्जी ट्रस्ट बताने वाले स्ंवय मंशा देवी के ना तो मालिक हैं और ना ही उनका ट्रस्ट में कोई अधिकार है।
बता दें कि मंशा देवी मंदिर की भूमि वर्ष 1903 में मंदिर को हस्तांतरित हुई थी। जिसके बाद वर्ष 1940 में अंग्रेज सरकार ने मंदिर का दूसरा नोटिफिकेशन जारी करते हुए 0.40 एकड़ भूमि मंदिर के नाम की, ना की किसी व्यक्ति विशेष के। उसके पश्चात वर्ष 1 जुलाई 1963 में मंदिर की देखभाल करने वाली साध्वी सरस्वती देवी पत्नी मुखराम गिरि निवासी श्ंकर गिर हवेली गऊघाट हरिद्वार ने एक वसीयत की। जिसमें उन्होंने निरंजनी अखाड़े के महंत लक्ष्मी नारायण गिरि चेला गुरु निरंजन देव को मैनेजिंग ट्रस्टी बनाया। पं. अंबा दत्ता पुत्र पं. पूर्णानंद जोशी, ठाकुर मेवाराम पुत्र रामलाल सिंह, राम स्नेही पुत्र ललता गिरि ट्रस्टी बनाया।

सरस्वती देवी की मृत्यु के बाद वर्ष एक ट्रस्ट 10 अगस्त 1972 को बनाया गया। जिसमें 13 लोगों श्रीमहंत लक्ष्मी नारायण गिरि, डा. स्वामी श्यामसुन्दर दास शास्त्री, बालकृष्ण पुरी, महंत घनश्याम गिरि, श्रीमहंत शंकर भारती, जगदीश गिरि, डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा, प्रेमप्रकाश भल्ला, पं. अम्बा दत्त, ासम स्नेही, ठाकुर मेवालाल, शरत कुमार गुप्ता वकील, सचिव आनन्द अखाड़ा सचिव रामनारायण गिरि पदेन को नामित किया। इसके पशत उक्त ट्रस्ट का नवीनीकरण नहीं कराया गया। जबकि उक्त ट्रस्ट के सभी सदस्यों की मृत्यु को चुकी है। जिस कारण से ट्रस्ट समाप्त हो गया। जिसके संबंध में कार्यालय उप निबंधक फर्म सोसायटी एंव चिट्स हरिद्वार की पत्रावली संख्या 600/2021-22 21 नवम्बर 2021 के मुताबिक उक्त ट्रस्ट को नवीनीकरण ना कराए जाने के कारण अपंजीकृत की श्रेणी में डाल दिया गया। जिस कारण से मां मंशा देवी के नाम कोई भी ट्रस्ट नहीं चला आ रहा है। ट्रस्ट को लेकर चले आ रहे विवाद के चलते 20 मार्च 2017 के डीएम के पत्रांक संख्या 1010 के संदर्भ में 6 अप्रैल 2017 को शासकीय अधिवक्ता संजीव कौशल निवासी हरिद्वार ने तत्कालीन जिलाधिकारी को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें उन्होंने कहाकि मंशा देवी ट्रस्ट के संबंध में कोई भी लेखा जोखा प्रस्तुत नहीं किया गया, जो की सरासर उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेशों के अवहेलना है। जबकि शासकीय अधिवक्ता ने डीएम को 1 मई 2010 को सौंपी एक अन्य रिपोर्ट में मंशा देवी के राजस्व अभिलेखों में दर्ज ना होने की बता कही थी। ऐसे में जो मंशा देवी ट्रस्ट का स्वंय को अध्यक्ष बता रहे हैं उनका ट्रस्ट में कहीं भी बतौर सदस्य नाम तक अंकित नहीं है। इतना ही नहीं जिस मंशा देवी की सम्पत्ति को लेकर दावा किया जा रहा है वह किसी व्यक्ति विशेष की ना होकर वन विभाग के अधिकार की है।
वहीं जानकारी के मुताबिक उच्चतम न्यायालय में दायर एक वाद मध्य प्रदेश सरकार बनाम पुजारी आदि वाद में दिनांक 6 सितम्बर 2021 को दिए अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि मंदिर का पुजारी, ट्रस्टी व अन्य कोई भी सदस्य उसका मालिक नहीं हो सकता, उसका मालिक स्वंय भगवान होगा।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब मंशा देवी के नाम पर कोई ट्रस्ट है ही नहीं, जो बनाया गया था वह पूर्व में ही अपंजीकृत की श्रेणी में आ चुका है, तो वर्तमान में बनाया गया ट्रस्ट फर्जी कैसे हो सकता है। जानकारी के मुताबिक मां मंशा देवी मंदिर ट्रस्ट का जो व्यक्ति सदस्य तक नहीं है वह उसका अध्यक्ष कैसे बन सकता है। कुल मिलाकर मंशा देवी ट्रस्ट को लेकर चला विवाद के अभी और तूल पकड़ने की चर्चा है। वहीं सूत्र बताते हैं इस विवाद के बाद समझौते के भी प्रयास शुरू किए जा चुके हैं।


