लोकसभा चुनावः संत का चुनाव लड़ने का मतलब संतई को खोना

टिकट पाने को लेकर हरिद्वार के कुछ संतों में उत्साह
कुछ टिकट पाने की जुगत में तो कुछ ने की तैयारियां शुरू


हरिद्वार। लोकसभा चुनाव में अभी एक वर्ष से अधिक का समय है। जबकि लोकसभा चुनावों की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। राजनैतिक दल और चुनाव लड़ने के दावेदार मैदान में आ चुके हैं। बात यदि हरिद्वार लोकसभा सीट की करें तो यहां भी इस बार कई दावेदार हैं। कुछ खुलकर सामने आ चुके हैं तो कुछ अंदरखाने अपनी जुगत बैठाने में लगे हुए हैं।
संतों ने इस बार हरिद्वार से किसी संत को सांसद का टिकट देने की मांग कर राजनीति में नया मोड़ ला दिया है, जिस कारण से कई संत चुनाव में टिकट की उम्मीद लगाने लगे हैं। जबकि किसी संत को टिकट मिलने की संभावना कम ही नजर आ रही है। हालांकि अभी इस दौड़ में सबसे आगे एक संत का नाम दिखाई दे रहा है। चर्चा है कि इस संत की पैरवी के लिए दूसरा संत पूरी शिद्दत के साथ लगा हुआ है। वहीं एक अन्य संत तो चुनाव लड़ने की तैयारी भी शुरू कर चुके हैं। यहां गुरु टिकट पाने के लिए चेले को अपना खेवनहार बनाने का काम कर रहा है।


जबकि संगठन सभी समीकरणों को देखने के बाद टिकट का फैसला करता है। हरिद्वार लोकसभा सीट पर करीब संतों के 15 हजार मत हैं। ऐसे में संत के भरोसे संत सीट निकाल ले नामुमकिन दिखाई दे रहा है। कारण की संतों में भी कुछ भाजपाई, कुछ कांग्रेसी व कुछ सपाई हैं। यहां भी इनमें एकता का अभाव है। संतों की संत कैसे चुनावों मंे टांग खिंचाई करते हैं इसकी बानगी पूर्व के चुनावों में जनता देख चुकी है। जबकि कुछ संत ऐसे हैं जो खुलकर सामने तो नहीं आए हैं, किन्तु अंदरखाने टिकट पाने की उनकी प्रबंल इच्छा है।


सूत्रों के मुताबिक खुफिया रिपोर्ट में कुछ संतों की कुण्डली टिकट मिलने की अर्हताओं के विपरीत बतायी जा रही है। बावजूद इसके वे कोशिश में लगे हुए हैं। हरिद्वार लोकसभा सीट पर जिन संतों की दावेदारी की चर्चा है उनमें से दो संत चुनाव लड़ने के अधिक इच्छुक बताए जा रहे हैं। जबकि दोनों संत ऐसे हैं, जो चुनाव लड़ने से दूरी बना चुके हैं। एक संत का कहना है कि चुनाव लड़ने का मतलब संतई को समाप्त करना है। जहां राजनेता संतों की वंदना करते हैं वहां संत के लिए चुनाव लड़ना शोभनीय नहीं है। ऐसे में इस पचड़े से वह कोसों दूर हैं।


जो संत टिकट के इच्छुक हैं इनमें से दो की संघ से खासी नजदीकियां हैं। अब टिकट किसको मिलता है या फिर भाजपा संगठन सभी का पत्ता साफ करता है यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल सभी कोशिशों में लगे हुए हैं। इसके साथ ही संतों ने अपने टिकट पाने की कोशिशों में वर्तमान सांसद डा. रमेश पोखरियाल निशंक के संबंध में यह मान लिया है की उनको इस बार टिकट से वंचित रहना पड़ेगा। जबकि सत्यता यह है कि राजनीति में सब कुछ संभव है और डा. निशंक राजनीति के कच्चे खिलाड़ी भी नहीं हैं।

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