हरिद्वार। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र देकर निष्पक्ष जांच की पीडि़तों से मांग की है। एसएसपी को दिए बुधवार को प्रेषित पत्र में कहाकि कथित श्री मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट के कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा द्वारा झूठे एंव मनगढन्त तथ्यों पर बिना किसी ठोस साक्ष्य के प्रार्थीगणांे के विरुद्ध एक झूठी प्रथम सूचना रिपोर्ट उपरोक्त धाराओं में कोतवाली हरिद्वार में दर्ज करवायी है, जिसकी विवेचना खडखडी चौकी इंचार्ज एसआई विजेन्द्र सिंह कुमई कर रहे हैं। प्रार्थीगण उक्त मुकद्मा संख्या 146/ 2022 की विवेचना के सम्बन्ध में कई बार अपने साक्ष्य दस्तावेज लेकर विवेचक के पास गये, परन्तु विवेचक द्वारा कोई तवज्जो नहीं दी गई। जिस कारण निष्पक्ष विवेचना कराने के लिए अपने साक्ष्य दस्तावेज उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
प्रार्थीगण वासुसिंह, ठाकुर सिंह, अश्वनी शुक्ला, हितेश राज पुरोहित, पं. सुरेश तिवारी निवासीगण हरिद्वार ने कहाकि श्री मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट के नाम से कोई ट्रस्ट वर्तमान में अस्तित्व में नहीं है। जब कथित ट्रस्ट अस्त्वि में ही नही है तो उपरोक्त केस के वादी कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा उक्त कथित ट्रस्ट के ट्रस्टी कैसे हो सकते हैं। श्री मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट नाम से एक ट्रस्ट वर्ष 1972 में फर्म सोसाईटीज एण्ड चिट्स कार्यालय में रजिस्टर्ड कराया गया था, परन्तु वर्ष 1972 के बाद उक्त ट्रस्ट का नवीनीकरण ना कराये जाने के कारण उक्त ट्रस्ट अपंजीकृत चला आ रहा है। फर्म सोसाईटीज एण्ड चिट्स से मांगी गयी सूचना से पता चलता है कि उक्त कथित श्री मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट वर्ष 1972 के बाद से अपंजीकृत चली आती है।
प्रार्थना पत्र के साथ उक्त दस्तावेज संलग्न कर उपलब्ध करतो हुए कहाकि दस्तावेजों से साबित होता है कि उपरोक्त केस के वादी कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा ने कोतवाली हरिद्वार पुलिस को गुमराह कर उक्त फर्जी प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में दर्ज करायी है। कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा श्री मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट के अस्तित्व में होने का व कथित ट्रस्ट के कथित ट्रस्टी होने का कोई प्रमाण विवेचक को नही दे पाये हैं।
उन्होंने कहाकि श्री मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट किसी व्यक्ति की नीजि सम्पत्ति नहीं है। वर्ष 1903 में रिजर्व फोरेस्ट द्वारा मनसा देवी मन्दिर को 40-40 का एक चक दिया गया था। उसके बाद मनसा देवी मन्दिर में सेवादार मंहतानी सरस्वती देवी आयी, मंहतानी सरस्वती देवी मनसा देवी मन्दिर की स्वामिनी नहीं थी, बल्कि सेवादार थी। मंहतानी सरस्वती देवी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर मन्दिर की वसीयत मंहत लक्ष्मी नारायण गिरी, अम्बादत्त जोशी ठाकुर मेवाराम, रामस्नेही गिरी के पक्ष में कर दी। तब इन व्यक्तियांे ंने श्री मनसा देवी मन्दिर के नाम से ट्रस्ट बनाया और उसे रजिस्टर्ड कराया। उक्त ट्रस्ट वर्ष 1972 से वर्तमान तक अपंजीकृत चला आ रहा है।
पत्र में कहा गया कि जब कथित ट्रस्ट अपंजीकृत है तो कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा, महत रविन्द्र पुरी के साथ-साथ अन्य व्यक्ति कथित ट्रस्टी कैसे हो गये। इनके पास कथित ट्रस्ट के ट्रस्टी होने का कोई प्रमाण नहीं है तथा मनसा देवी मन्दिर को रिजर्व फोरेस्ट द्वारा जो 40-40 का एक चक आंवटित करने के बाद मनसा देवी मन्दिर की भूमि डी फोरेस्ट हो गयी। मनसा देवी मन्दिर के स्वामित्व का अधिकार राज्य सरकार, जिला प्रशासन को प्राप्त हो गया। वादी कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा मनसा देवी मन्दिर के कथित श्री मनसा देवी मन्दिर की सम्पत्ति होने का कोई प्रमाण नहीं दे पाये है।
पत्र में कहा गया कि उक्त मुकदमे के वादी अनिल शर्मा ऐसा कोई ठोस साक्ष्य व प्रमाण भी प्रस्तुत नहीं कर पाये हैं जिससे यह साबित होता हो कि प्रार्थीगण ने किस व्यक्ति से फर्जी ट्रस्ट के नाम पर चन्दा वसूल किया है, किस व्यक्ति को फर्जी रसीदंे दी है।
कहाकि कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा द्वारा विवेचक को ऐसा कोई साक्ष्य व प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है कि प्रार्थीगण द्वारा कूट रचित दस्तावेज तैयार कर उनका असल के रूप में किस तरीके से और क्या प्रयोग किया गया है और किस व्यक्ति के साथ क्या धोखाधडी की। पत्र में प्रार्थियों ने कहाकि जब कथित ट्रस्ट श्री मां मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट रजिस्टर्ड, पंजीकृत ही नहीं है तो कथित ट्रस्टी अनिल शर्मा व अन्य कथित ट्रस्टी श्री मां मनसा देवी मन्दिर ट्रस्ट के ट्रस्टी कैसे हो गये और कथित ट्रस्टियांे पर मन्दिर के स्वामित्व के सम्बन्ध में भी कोई प्रमाण नहीं है। अनिल शर्मा द्वारा झूठे तथ्यों पर पुलिस को गुमराह करते हुये झूठी रिपोर्ट प्रार्थीगण के विरूद्ध कोतवाली हरिद्वार में दर्ज करायी है।
उन्होंने पत्र के माध्यम से उपलब्ध कराए गए तथ्यों को विवेचना में शामिल किये जाने के लिए उचित निर्देश विवेचक को जारी करने तथा निष्पक्ष विवेचना कराये जाने की मांग की है।


