च्यवनप्राश प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद की एक विलक्षण और प्रतिष्ठित रसायन औषधि है, जिसका उल्लेख कई शास्त्रों में मिलता है। कहा जाता है कि महान ऋषि च्यवन ने अपने वृद्ध शरीर को पुनः यौवन से भरपूर बनाने हेतु इसका निर्माण करवाया था। यही कारण है कि इस अद्भुत औषधि को उनका नाम दिया गया कृ च्यवनप्राश। यह औषधि केवल एक टॉनिक नहीं बल्कि संपूर्ण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का संरक्षक अमृत मानी जाती है।
च्यवनप्राश का मूल घटक आंवला है, जो प्राकृतिक विटामिन सी का सर्वोत्तम स्रोत है। इसके साथ अश्वगंधा, गिलोय, शतावरी, पिप्पली, दालचीनी, इलायची, मुलेठी, घी और शहद जैसी लगभग 40 से अधिक जड़ी-बूटियों का संयोजन इसे विशेष गुणों से भर देता है। यह मिश्रण शरीर में त्रिदोष वात, पित्त, और कफ को संतुलित रखता है। जब त्रिदोष संतुलित रहते हैं, तब शरीर स्वाभाविक रूप से रोगमुक्त, ऊर्जावान और दीर्घायु बना रहता है।
यह औषधि रसायन चूर्ण के रूप में शरीर के ऊतकों (धातुओं) का पोषण करती है और ओज, बल, तथा तेज को बढ़ाती है। च्यवनप्राश का नियमित सेवन विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभदायक है जिन्हें बार-बार सर्दी-जुकाम या फेफड़ों से जुड़ी समस्या होती है। यह श्वसनतंत्र को मजबूत बनाता है, कफ को निकालता है और फेफड़ों में जमा प्रदूषक तत्वों को साफ करने में सहायता करता है। इसके निरंतर सेवन से प्रतिरोधकशक्ति में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति बदलते मौसम में भी स्वस्थ बना रहता है।
मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से च्यवनप्राश स्मरणशक्ति, ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाता है। विद्यार्थी, अधिकारी या मानसिक परिश्रम करने वाले व्यक्तियों के लिए यह अद्भुत ऊर्जा स्रोत है। यह तंत्रिका तंत्र को शांत करता है और तनाव व अनिद्रा को कम करता है। च्यवनप्राश शरीर की कोशिकाओं को पुनर्जीवित कर वृद्धावस्था की प्रक्रिया को धीमा करता है, जिससे त्वचा में कांति और लचीलापन बना रहता है।
यह पाचनतंत्र के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। गिलोय और पिप्पली जैसे तत्व पाचनशक्ति को प्रबल करते हैं, अश्वगंधा शरीर की मांसपेशियों को सशक्त करती है, और घी व शहद पोषण प्रदान करते हैं। नियमित सेवन से भूख बढ़ती है, अपच और गैस की समस्या समाप्त होती है। शरीर की मांसपेशियां दृढ़ बनती हैं, और थकावट, कमजोरी, या मानसिक सुस्ती दूर होती है।
च्यवनप्राश उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जो बार-बार बीमार पड़ते हैं या किसी रोग से उबर रहे होते हैं। यह शरीर में नए ऊतकों के निर्माण में सहायता करता है और रक्तसंचार को सुधारता है। इसके सेवन से हृदय स्वस्थ रहता है, क्योंकि यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल के संतुलन को बनाए रखता है। साथ ही यह शरीर की हड्डियों और जोड़ों को भी मजबूत बनाता है।
हानियां
हालांकि च्यवनप्राश अत्यंत गुणकारी है, परंतु किसी भी औषधि की तरह इसका अधिक सेवन हानिकारक हो सकता है। अधिक मात्रा में लेने से पित्तदोष बढ़ सकता है, जिससे शरीर में गर्मी, जलन, खट्टीडकार या अम्लता जैसी शिकायतें हो सकती हैं। विशेष रूप से गर्मियों के मौसम में इसकी अधिक मात्रा शरीर को असंतुलित कर सकती है।
मधुमेह रोगियों को इसमें उपस्थित गुड़ और शहद के कारण विशेष सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि यह रक्त में शर्करा स्तर बढ़ा सकता है। खाली पेट सेवन करने से कुछ लोगों को भारीपन या पेटदर्द महसूस हो सकता है। यह औषधि सदैव भोजन के बाद या दूध के साथ ही लेनी चाहिए।
आजकल बाजार में मिलने वाले कई उत्पाद मिलावटी या निम्न गुणवत्ता के होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए सदैव विश्वसनीय ब्रांड या किसी प्रमाणित आयुर्वेदाचार्य द्वारा सुझाए गए च्यवनप्राश का ही सेवन करना चाहिए।
सही मात्रा (एक से दो चम्मच) में, उचित समय (सुबह-शाम) और सही माध्यम (गुनगुना दूध या पानी) के साथ सेवन करने पर च्यवनप्राश वास्तव में दीर्घायु, स्फूर्ति, ऊर्जा और यौवन का अमृत सिद्ध होता है। यह केवल शरीर ही नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी स्वस्थ रखता है, यही आयुर्वेद का सच्चा उद्देश्य है।
Dr. (Vaidhya) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar
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