काल भैरव अष्टमी 16 को जानिए पूजा का शुभ मुहुर्त

हरिद्वार। काल भैरव अष्टमी का पर्व इस बार 16 नवम्बर को मनाया जाएगा। मार्गशीष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। भैरव भगवान को शिव का एक रौद्र रूप माना गया है। बाबा भैरव को शिवजी का अंश माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव के पांचवें अवतार भगवान भैरव हैं।

सनातन धर्म में भगवान भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित हैं। सनातन परंपरा में भगवान भैरव की साधना जीवन से जुड़ी सभी परेशानियों से उबारने और शत्रु-बाधा आदि से मुक्त कर देती है।


पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक यूं तो भगवान भैरव की पूजा कभी भी की जा सकती है, किन्तु भैरव अष्टमी पर की गई पूजा का विशेष महत्व होता है। बताया कि इस बार अष्टमी तिथि 16 नवंबर को प्रातः 05 बजकर 49 मिनट से प्रारंभ होकर 17 नवंबर को सायंकाल 07 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। भगवान काल भैरव की पूजा रात्रि के समय शुभ मानी गई है, लेकिन दिन में कभी किसी भी शुभ मुहूर्त में कर सकते हैं।
बताया कि शास्त्रों के अनुसार भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी। शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई, उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है।

शिव के इस रूप की आराधना से भय एवं शत्रुओं से मुक्ति और संकट से छुटकारा मिलता है। काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत विकराल प्रचंड स्वरूप है। शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है, इसलिए इनका एक नाम दंडपाणी भी है। मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए उनको काल भैरव कहा जाता है। भैरव अष्टमी को लेकर तीर्थनगरी में तैयारियां शुरू हो चुकी है। कनखल स्थित काल भैरव मंदिर व हरिद्वार स्थित आन्नद भैरव मंदिर तथा श्रवणनाथ मठ स्थित काल भैरव मंदिर में तैयारियां शुरू हो चुकी है।

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