समारोह को लेकर उपजे विवाद को निपटाने के लिए हरिद्वार आ रही संतों की कैकयी
हरिद्वार। तीर्थनगरी कनखल में जूना पीठाधीश्वर के आचार्य पद पर पदस्थापना के 25 वर्ष पूर्ण होने पर चल रहे दिव्य अध्यात्मिक समारोह को लेकर खड़ा किया विवाद आने वाले समय में अपना असली रंग दिखाएगा। जिसके चलते कुछ का डब्बा गोल हो सकता है और कुछ अपना नफा कर सकते हैं। जिसकी शुरूआत हो चुकी है। समारोह को लेकर विवाद का मुख्य कारण अखाड़ों को न्यौता न बताया जा रहा है। जिसको लेकर कुछ संतों ने रोष जताया भी है। वहीं एक वरिष्ठ संत को समारोह में जाने पर लताड़ भी लगाई गई है।
सूत्र बताते हैं कि जूना पीठाधीश्वर ने सभी सम्प्रदायों के वरिष्ठ संतों, राजनेताओं व अन्यों को अपने कार्यक्रम में आमंत्रित किया था, जबकि अखाड़ों को किसी प्रकार का निमंत्रण नहीं दिया गया। क्यों नहीं दिया यह जूना पीठाधीश्वर ही भली प्रकार बता सकते हैं। इसके साथ ही सन्यासियों के सात अखाड़ों में से 2 अखाड़ों के आचार्यों को भी आमंत्रित नहीं किया गया।
सूत्र बताते हैं कि बीते रोज अखाड़े के एक वरिष्ठ संत को समारोह में उपस्थित होने के कारण बुलाया गया। जहां पहले से ही तीन वरिष्ठ संत मौजूद थे। जिन्होंने संत को समारोह में जाने पर जमकर लताड़ लगाते हुए कहाकि जब अखाड़े को निमंत्रण नहीं था, तो तुम वहां क्यों गए। अब बेचारे कथित संत चुपचाप संतों की लताड़ को सुनते रहे। बताते हैं कि संत बेबस हैं, कुछ पलटकर कह नहीं सकते हैं। अभी तक दूसरों को अपने माया जाल से छलने वाले खुद ऐसे बैठकर लताड़ सुनते रहे मानो जैसे उनके श्रवण यंत्र और जिह्वा कुछ काम ही नहीं करती। वैसे बता दें कि तीन संतों में एक संत विशेष रूप से स्वंय न बुलाए जाने से परेशान थे और विशेष रूप से वह हरिद्वार आए और लताड़ लगाने से पूर्व उन्होंने बैठक कर रणनीति बनाई और संत को बुलाकर फिर लताड़ लगाई।
वहीं चर्चा इस बात की भी है कि अखाड़े से शायद संत की छुट्टी कर दी जाए। जो संत विशेष रूप से हरिद्वार आए थे, वे भी संत को अखाड़े से बाहर होता देखने के इच्छुक हैं। हालांकि उनके भी बाहर होने की चर्चाएं हैं, किन्तु उनके साथ ऐसा करना आसान नहीं दिखता। कारण की कुछ ऐसे भी जिनकी कुण्डली उस संत के पास है। संत को बाहर निकालने की बात उठी तो संत बाकी की कुण्डली को खोल सकता है।
वहीं नाम न छापने की शर्त पर एक संत ने बताया कि अखाड़ों को आमंत्रण न देने की बात करना ही गलत है। बताया कि अखाड़े का आचार्य अखाड़े के संतों का गुरु होता है। जब आचार्य स्वंय आमंत्रित थे तो माना जा सकता है कि समूचा अखाड़ा ही आमंत्रित था। हां उनका विरोध कुछ हद तक जायज कहा जा सकता है जिनके आचार्यों को आमंत्रित नहीं किया गया। वैसे भी यह आयोजक का अधिकार है कि वह किसे आमंत्रित करे और किसे नहीं। ऐसे में विवाद गलत है।
संत ने बताया कि यह विवाद बुलाने या न बुलाने का नहीं। विवाद का मुख्य कारण मंच पर बैठकर वीवीआईपी के साथ फोटो खिंचवाने और लिफाफे से वंचित रखना है। उनका कहना था कि कुछ कथित संतों ने अपने सम्मान और गरिमा को लिफाफे और वीवीआईपी के साथ फोटो खिंचवाने के कारण ही मटियामेट किया हुआ है।
बता दें कि मंच पर वीवीआईपी के साथ बैठने के बड़े फायदे हैं। तीर्थनगरी के एक वरिष्ठ संत ने एक वीवीआईपी के साथ फोटो खिंचवायी और फिर बड़ी सी उस फोटो को अपने आश्रम में लगावा दिया। आने वालों में से एक प्रभावित हुआ और उसने फोटो के संबंध में चर्चा की। जिस पर भगवाधारी तुरंत बोल उठा, अरे ये तो हमारे शिष्य हैं और उस व्यक्ति से नौकरी लगवाने के नाम पर मोटी रकम ऐंठ ली। नौकरी के लिए व्यक्ति महीनों कथित संत के चक्कर काटते-काटते खुद रफुचक्कर हो गया।
वहीं सूत्र बताते हैं कि इस विवाद में भी कुछ लोगों का भला होने वाला है। सूत्र बताते हैं कि किसी ने एक संत को फोन पर इस समारोह में मोटी कमाई होने की सूचना दी, जिसके बाद से संत अब इस विवाद को समाप्त करने के लिए हरिद्वार आकर अपनी रणनीति पर अमल करने वाले हैं। वैसे इन संत को संतों की कैकेयी के नाम से भी कुछ संत जानते हैं। बहरहाल आमंत्रण को लेकर उपजा विवाद शांत तो हो ही जाएगा, किन्तु इतनी जल्दी भी शांत होने वाला नहीं है। इस विवाद में किसी की चंांदी होगी और कुछ चांदी बनाने के लिए आग में घी डालने का काम करेंगे और कुछ शांति के लिए त्याग करेंगे।