कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही किया था भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध:किशन गिरि

देहरादून। जंगम शिवालय व टपकेश्वर महादेव मंदिर के श्रीमहंत किशन गिरि महाराज ने कार्तिक पूर्णिमा पर्व पर विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया। इस दौरान जंगल शिवालय स्थित भगवान जंगलेश्वर का विशेष श्रृंगार किया। साथ ही अन्य देवी-देवताओं का भी श्रृंगार कर देश में शांति, सद्भाव व उन्नति की कामना की।


इस अवसर पर श्रृद्धालाओं को अपने आशीर्वचन देते हुए उन्होंने कहाकि कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा व स्नान की पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा इसलिए कहते है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक असुर का अंत किया था। जिसको लेकर देवता प्रसन्न हुए थे।


कहाकि कार्तिक पूर्णिमा को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। एक भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी हुई है तो वहीं दूसरी कथा देव दिवाली मनाने के लेकर है।


उन्होंने कहाकि एक बार कार्तिकेय और गणेश की प्रथम पूज्य प्रतियोगिता हुई, जिसमें कार्तिकेय के छोटे भाई गणेश को विजयी घोषित हो गए। वहीं इस बात को लेकर कार्तिकेय नाराज हो गए थे। जब स्वयं भगवान शिव और पार्वती कार्तिकेय को मनाने के लिए गए तो उन्होंने क्रोध में शाप दिया था। उन्होंने कहा कि यदि कोई स्त्री उनके दर्शन करने आयेगी तो वो सात जन्म तक विधवा रहेगी। वहीं पुरुषों को लेकर कहा कि यदि किसी पुरुष ने दर्शन करने का प्रयास किया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी और इसके बाद नरक में जायेगा। लेकिन इसके बाद किसी तरह शंकर भगवान और पार्वती ने उनका क्रोध शांत किया और उनसे किसी एक दिन दर्शन देने के लिए कहा। कहाकि जब कार्तिकेय का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को उनके दर्शन करना महा फलदायी बताया।


श्रीमहंत किशन गिरि महाराज ने कहाकि कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव ने तारकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। इस शक्तिशाली असुर का संहार होने के बाद देवगण बहुत प्रसन्न हुए। वहीं भगवान विष्णु ने शिवजी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में तारकासुर के तीनों पुत्रों का भी वध किया था। जिन्हें त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था। जिसकी खुशी में देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीवाली मनाई थी। तभी से ये परंपरा चली आ रही हैं। कार्तिक मास पूर्णिमा तिथि के दिन काशी में गंगा स्नान कर दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। इसी के साथ तीर्थों में स्नान करने से भी अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।

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