हरिद्वार में यातायात की दुर्दशा, यात्रा सीजन में क्या होगा हाल

हरिद्वार। आज शनीश्चरी अमावस्या पर यातायात की जो दुर्दशा हरिद्वार में हुई है, उसने पिछले कुम्भ और काँवड़ जैसे विशाल पर्वों की यातायात व्यवस्था को धराशायी कर यात्रियों को रुड़की मंगलौर में ही दो से तीन घंटे जाम में फंसे रहने को विवश कर दिया। यात्री गाड़ियों में ही कैद होकर रह गये। मौके पर यातायात पुलिस की कोई व्यवस्था नहीं हैं। यात्रियों को कोई बताने वाला नहीं था, कि वह जाम में फंसे भूखे प्यासे कहा जायें। यदि अभी यही स्थिती हैं तो अगले माह से शुरु हो रही चार धाम यात्रा में यातायात की क्या दुर्दशा होगी इसका अंदाजा स्वयं ही लगा सकते हैं।

कमोवेश शहर हरिद्वार का हाल तो बहुत ही नाजुक है। चौराहों पर बैटरी रिक्शाओं की भरमार ने घंटो के जाम खड़े कर दिये हैं। चौराहों पर ड्यूटी पर खडे लाचार पुलिसकर्मी यातायात को भगवान भरोसे छोड़ कर कान पर मोबाईल लगा के बैठे तमाशा देखते हैं।

दरअसल हरिद्वार को कुछ लोगों ने जबरन उत्तराखंड मे शामिल तो करवा लिया परन्तु यह विश्व प्रसिद्ध तीर्थ अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा है। हरिद्वार के पूर्व सांसद पूर्व केन्द्रियमंत्री तथा पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी इस मैदानी जिले की घोर उपेक्षा की। हरिद्वार के चार बार के विधायक व वर्तमान विधायक अपने गृह क्षेत्र रानीपुर मोड चंद्रा चारी चौक पर बरसाती पानी की निकासी का तो कोई हल नहीं निकलवा सके। शहर की सूरतेहाल को कौन बदलेगा इस जवलंत प्रश्न का जवाब कौन देगा।

हरिद्वार जैंसे विश्वविख्यात तीर्थ की हालात बदतर होने का एक कारण यह भी है कि बीते सालों में यहाँ से चुनाव जीतने वाले साँसद, पर्वतीय रहे और यह भी, उन्होने हरिद्वार को केवल वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किया ।हरिद्वार की स्थिती पर चुनाव जीतने के बाद कोई सुध तक नहीं ली। वर्तमान सासंद त्रिवेन्द्र सिंह रावत जो पूर्व में प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे, उन्होंने राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते संसद में अवैध खनन का मुद्दा अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के खिलाफ जरूर उठाया परन्तु हरिद्वार को अफसरशाहों की लूट खसोट पर मौनव्रत रखा ।

स्थानीय निकायों में भाजपा ने हरिद्वार को उत्तराखंड का इन्दौर बनाने की घोषणायें बहुत जोर शोर से की परन्तु भाजपा की महापौर और बोर्ड बनने के बाद भी सड़कें बुरी तरह घ्वस्त व टूटी फूटी हुई है। नालियों में कीचड़ भरा पड़ा है। सीवर चौक पड़े है। यातायात की हालत तो इस कदर दम तोड़ चुकी हैं कि यात्री हरिद्वार जैस विश्व विख्‌यात तीर्थ में आकर हतप्रभ हो जाता है कि यहाँ शासन, प्रशासन जैसी कोई व्यवस्था है या नहीं। कोरिडोर की बातें करने वाले पहले हर तरह से पस्त हरिद्वार की तो सुघ लो। अंडरग्राउंड विद्युत व्यवस्था आधे शहर से आधे मे नही आपके लिए खोदी सड़कों के गड्ड़े भी बहुत शोचनीय हालत में हैं। अतिक्रमण चरम पर है।


गँगा मईया ही जाने इस धर्म नगरी की क्या स्थिति होगी। चुनाव के दौरान धार्मिक नारों से जनता की भावनाओं से खिलवाड़ कर पर्वतीय नेता यहाँ से चुनाव तो जीत लेते है परन्तु हरिद्वार की दिन प्रतिदिन दम तोड़ रही व्यवस्थाओं से वह जीतने के बाद पल्ला झाड कर यहाँ की मलाई चाटने में मशगूल हो जाते हैं। उत्तराखंड के इस प्रख्यात तीर्थ को फिर से किसी भगीरथ की तलाश हैं। राजनेताओं के खोखले, भाषणों से अब धीरे धीरे जनता का धैर्य व विश्वास दम तोड़ता जा रहा है। और शहर की व्यवस्थाएँ तो चकनाचूर हो चुकी हैं। मान्यवर जी जागो और इस धर्म कर्म का हिसाब करने वाली तीर्थ नगरी की दर्जनों समस्याओं पर सदन में आवाज बुलन्द करो।

हैरत की बात तो यह है कि यहाँ के धर्माचार्य, मठाधीश, धार्मिक – समाजिक संस्थाएं और व्यापारी भी मौनव्रत धारण किये हैं। विपक्ष लुटा पिटा बैठा गुमसुम है, अब तो किसी नये युवा चेहरे को ही हरिद्वार की धीर गम्भीर समस्याओं के लिए ध्वजवाहक बनना होगा। वर्तमान स्थिती तो स्पष्ट रूप से मैदानी पर्वतीय के चल रहे आरोप, प्रत्यारोपों में कुछ दम जरुर है, जो इस ओर इशारा कर रही हैं।
डॉ. रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरीद्वार

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