MAAsterG का नारा –
“तुम अगर मेरे साथ हो, तुम्हें घर मिले न मिले, गाड़ी मिले न मिले, बैंक बैलेंस बड़े न बड़े, तुम्हारी पत्नी कैसी भी हो, पति कैसा भी हो, तुम्हारे बच्चे कैसे भी हों, तुम्हारे शरीर में कोई भी बीमारियां हों, यहाँ तक की अगर मृत्यु भी सामने खड़ी हो, मैं तुम्हें दुखी नहीं होने दूंगा – यह मेरी वारंटी नहीं , गारंटी है!”
MAAsterG कौन हैं?
मास्टरजी को 2007 में आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई और पिछले १७ वर्षों से मास्टरजी बिना किसी सार्वजनिक मंच पर गए, MAAsterG ने अपने अनुभव को लाखों लोगों के साथ एक-एक कर के साझा किया और देखा कि 10 वर्ष के बच्चे से लेकर 80 वर्ष की दादी तक, चार पीढ़ियाँ एक साथ खुश होकर झूम रही थीं। इसके अलावा हजारों युवा जो अवसाद और अन्य मानसिक विकारों से जूझ रहे थे, उनकी दवा कम या बंद हो गई और वे सामान्य स्थिति में आ गए।
मिशन 800 करोड़
सार्वजनिक रूप से कार्य शुरू करने के बाद से उन्होंने 250 से अधिक प्रभावशाली कार्यक्रम किए हैं, जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन का कारण बने हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख संस्थान हैं— सशस्त्र बल: भारतीय सेना, वायु सेना, BSF, CRPF, SSB, दिल्ली और कोलकाता पुलिस मुख्यालय; पेशेवर संस्थाएँ: इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स, ONGC, BSNL, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स संस्थान आदि; मेडिकल संस्थान: एम्स (दिल्ली व कोलकाता), मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, सर गंगाराम हॉस्पिटल आदि; शैक्षणिक संस्थान: IISER, सेंट ज़ेवियर यूनिवर्सिटी, NIT और कई अन्य प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान, बार काउंसिल्स: दिल्ली, देहरादून आदिl; इसके अलावा, ऐसे ही अन्य सम्मेलनों में भी मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए । वैश्विक आध्यात्मिक आयोजन जैसे— ग्लोबल स्पिरिचुअलिटी महोत्सव, अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव ।
MAAsterG नाम का महत्व
MAAsterG उस प्रेममयी माँ (MAA) का प्रतीक हैं, जो अपनी दिव्य वाणियों के माध्यम से अंदर की सच्चाई को जगाती हैं (ster) और आत्मा की पवित्रता को प्रकट करती हैं, जिससे भीतर का ईश्वर (G-God) उजागर होता है।
MAAsterG का अमूल्य ज्ञान (वाणी) “MAAsterG” नाम से उनके YouTube चैनल, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर निःशुल्क उपलब्ध हैं । वे आश्वासन देते हैं कि केवल 3 से 30 प्रवचन सुनकर ही जीवन में अद्भुत परिवर्तन का अनुभव होगा।
राजेश कुमार से MAAsterG तक की यात्रा
आत्मज्ञान प्राप्त करने से पहले, MAAsterG को राजेश कुमार के नाम से जाना जाता था। वे पेशे से एक व्यवसायी थे।
जीवन की भागदौड़ में, मुंबई की व्यस्त गलियों के बीच, श्री राजेश कुमार सफलता की खोज में पूरी तरह डूबे हुए थे।
एक सफल उद्योगपति के रूप में अपनी पहचान बनाने के बाद, उन्होंने एक नया सपना देखा — अपनी खुद की एयरलाइन शुरू करने का। अपने काम और व्यावसायिक विस्तार में पूरी तरह ध्यान लगाने के बावजूद, वे अपने परिवार के प्रति भी समर्पित थे। एक सामान्य दिन में वे तेरह घंटे से भी अधिक समय फोन पर या काम में व्यस्त रहते थे।
लेकिन धन और भौतिक सफलता की इस लगातार दौड़, जिसे वे खुशी का साधन मानते थे, धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालना शुरू कर दिया। उन्हें हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल जैसी गंभीर बीमारियाँ हो गईं।
किशोरावस्था से ही श्री कुमार के मन में जीवन के गहरे अर्थ और उद्देश्य को जानने की इच्छा थी। उनके मन में अक्सर प्रश्न उठते —
“मैं कौन हूँ?”, “जीवन का असली स्वरूप क्या है?”, और “सृष्टि और सृष्टिकर्ता का रहस्य क्या है?”
इन प्रश्नों के उत्तर पाने की खोज उनके भीतर सालों तक चलती रही। यह खोज तब तक जारी रही जब तक कि 42 वर्ष की आयु में उन्हें एक गुरु का सान्निध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने उस गुरु का एक आध्यात्मिक प्रवचन सुना, जिसने उनके भीतर प्रश्नों की एक नई लहर जगा दी —
“क्या केवल सफलता से सच्ची खुशी मिलेगी?”, “एक सच्चा गुरु कौन होता है?”
इन सवालों के जवाब खोजने के लिए, श्री कुमार ने उसी गुरु के साथ मसूरी की चार दिन की आध्यात्मिक यात्रा पर जाने का निश्चय किया।
10 नवंबर 2007 को जब वे मुंबई स्थित अपने घर से हवाई अड्डे की ओर रवाना हुए, तो उनका ध्यान धीरे-धीरे बाहरी संसार से हटकर अपने भीतर की ओर मुड़ने लगा।
फ्लाइट में बैठते समय वे पहले ही अपने गुरु को पूरी तरह समर्पित कर चुके थे, उन्होंने निश्चय किया था कि यदि वे कभी अपने गुरु के आदेश से भटकेंगे तो वे शरीर और सांस त्याग देंगे।
इस भावना के साथ वे अपने भीतर गहराई से डूब गए — मानो बाहर की दुनिया उनके लिए अस्तित्व में ही नहीं थी।
13 नवंबर 2007 की सुबह जब वे मसूरी पहुँचे, तो आस पास के शोर को देखते हुए, उन्होंने अपने गुरु से मौन की अनुमति मांगी।
वे हर दिन अपने भीतर गहराई से उतरते चले गए, बहुत कम नींद में भी पूरा ध्यान अपने आत्मचिंतन में लगा रहता।
यात्रा के चौथे दिन, सुबह 4 बजे, जब वे मसूरी की मुख्य सड़क से गुजर रहे थे, तो वे एक भजन के शब्दों में डूबे हुए थे। भजन के शब्द उनके लिए प्रकाश बन गए — वे और गहराई में उतरते गए, और जब तक कि अपने गुरु और परम गुरु से गहरा, शांत, आंतरिक जुड़ाव महसूस नहीं हुआ।
इस गहन अनुभव के बाद, श्री कुमार ने अपने गुरु के साथ और पाँच दिन रहने का निर्णय लिया और वे हरिद्वार चले गए। नौवें दिन, उन्होंने गंगा स्नान किया और गंगा माँ मंदिर में दर्शन किए।
गहरी ध्यानावस्था से बाहर आते हुए, उन्होंने अपने भीतर एक तीव्र ऊर्जा महसूस की — मानो वे अग्नि की लपटों में घिर गए हों, जैसे कोई शुद्धिकरण की अग्नि हो। यह सब उनके गुरु और 45 लोगों की संगति में हुआ।
स्वयं उनके शब्दों में, यह वह क्षण था जब “राजेश कुमार” नाम का व्यक्ति समाप्त हो गया — और MAAsterG का जन्म हुआ।
तब से आज तक, MAAsterG ने अपना पूरा जीवन लोगों की ज़िंदगी में स्थायी खुशियाँ लाने के लिए समर्पित कर दिया है, और वे यह सब बिलकुल निःशुल्क, निःस्वार्थ और निष्काम भाव से करते आए हैं ।
वाणी है सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान-
MAAsterG कहते हैं – “रोज़ की एक वाणी रखे दुखों से दूर। आज तक जिसने भी 30 वाणियाँ सुनकर उन्हें अपने जीवन में उतारा है, उसकी सारी परेशानियाँ दूर हो गईं —
• आर्थिक लाभ हुआ,
• कैंसर जैसी भयानक शारीरिक बीमारियाँ भी ठीक हो गईं,
• मानसिक बीमारियाँ जैसे डिप्रेशन, तनाव और चिंता समाप्त हो गईं,
• व्यवहारिक जीवन तथा संबंधों में भी सुधार आया।
सारा संसार हमें जीने की कला (Way of Living) सिखाता है, पर MAAsterG की वाणी हमें जीने की कला के साथ-साथ मरने की कला (Art of Dying) भी सिखाती है।
“Way of Living to Art of Dying” के जीवंत उदाहरण
Bharti Shukla, 49 years, Moradabad
मुरादाबाद की भारती दीदी पिछले आठ वर्षों से MAAsterG के मार्ग से जुड़ी हुई थीं, और 1 अक्टूबर 2025 को उनके जीवन में एक बड़ा हादसा हुआ, जब घर में गैस लीक होने से हुए तेज़ विस्फोट ने उन्हें गंभीर रूप से झुलसा दिया, यहाँ तक कि उनके कपड़े तक दीवारों से चिपक गए। पड़ोसी घबराकर दौड़े आए, पर भारती दीदी अद्भुत शांति में बोलीं—“एक मिनट रुकिए, मैं बेडशीट ओढ़कर आती हूँ,” और बाहर आकर मुस्कुराते हुए कहा कि वे बहुत खुश हैं क्योंकि अग्निदेव ने उन्हें गले लगाया; शायद उनकी सुंदरता भगवान को इतने ही दिन देखनी थी। अस्पताल पहुँचने पर डॉक्टरों को लगा कि उन्हें कुछ नहीं हुआ, क्योंकि वे अत्यंत शांत और रिलैक्स थीं, लेकिन रिपोर्ट में पता चला कि उनका शरीर 70% तक जल चुका है। अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी उन्होंने सभी से कहा कि मास्टरजी कहते हैं—सब एक रोल है, और आज उन्हें मरीज का रोल मिला है, इसलिए वे पूरी तरह मौज और सहजता में हैं। अगले ग्यारह दिनों तक डॉक्टर और नर्स हैरान रह गए कि इतनी गहरी जलन और पीड़ा के बावजूद उनके चेहरे पर न आँसू आए, न कोई शिकायत—वे लगातार मुस्कुराती रहीं, नाचती-गाती रहीं और मास्टरजी का ज्ञान सुनते-सुनाते सभी को प्रेरित करती रहीं। जब ड्रेसिंग के दौरान उनके जले हुए शरीर पर दवाइयाँ, डेटॉल और पट्टियाँ बदली जातीं, तब भी उन्हें कोई जलन महसूस नहीं होती; वे भजन सुनतीं, खुद भी गातीं और कहतीं—“मास्टरजी ने कहा है, अशोक रहना तेरा धर्म है, तो शोक कैसा?” उन्होंने अपने प्रियजनों से यह भी कहा कि वे अपने परमपिता से मिलने जा रही हैं, इसलिए कोई रोए नहीं, बल्कि उन्हें हँसते–गाते विदा करे। 12 अक्टूबर 2025 को भारती दीदी ने पूरी प्रसन्नता और शांति के साथ मृत्यु को गले लगा लिया, और 13 अक्टूबर को मास्टरजी ने उनके देहांत को उनकी आध्यात्मिक सफलता के रूप में मनाया; अस्पताल से श्मशान तक ढोल बजाते, नाचते-गाते हुए उन्हें संसार से विदा किया गया। ऐसी अद्भुत स्थिरता, भक्ति और आत्मिक शक्ति वाली भारती दीदी और ऐसे ज्ञानवान गुरु मास्टरजी को शत–शत नमन।
एक साहस की कहानी: कैसे निखिल कालरा ने MAAsterG के मार्गदर्शन से मृत्यु को शांति से अपनाया
हम इंसानों का सबसे बड़ा डर है — मृत्यु का डर। लेकिन जीवन की सबसे सच्ची हकीकत यही है कि मृत्यु निश्चित है। यह कहानी है एक ऐसे युवा की, जिसने MAAsterG के मार्गदर्शन में न केवल मृत्यु को स्वीकार किया, बल्कि उसे खुशी और शांति से गले लगाया। उसका नाम था निखिल कालरा। निखिल का जन्म 25 फरवरी 1992 (मंगलवार) को बरेली, उत्तर प्रदेश में हुआ था। सिर्फ एक साल सात महीने की उम्र में ही उसे थैलेसीमिया मेजर नामक गंभीर रक्त रोग हो गया था। इस बीमारी में हर 21 दिन पर दो बोतल रक्त चढ़ाना पड़ता था। बीमारी के बावजूद निखिल ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी, देहरादून से एप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बी.टेक. किया और 2014 में अपने विषय में गोल्ड मेडल हासिल किया। लेकिन लगातार अस्पताल के चक्कर और बढ़ती शारीरिक पीड़ा ने जीवन को बहुत भारी बना दिया था। वे अक्सर खुद को परिवार और समाज पर बोझ महसूस करते थे और एक समय ऐसा आया जब उन्होंने जीवन समाप्त करने का निर्णय ले लिया। इसी कठिन समय में उनकी कज़िन निष्ठा ने उन्हें MAAsterG की “वाणी” सुनने को दी। निखिल ने फरवरी 2016 में पहली बार वाणी सुनी — और कुछ उनके भीतर बदल गया। उन्होंने लगातार दो रातें वाणी सुनीं, और तीसरे दिन वे पहले जैसे निखिल नहीं रहे। उन्होंने निश्चय किया कि वे MAAsterG से व्यक्तिगत रूप से मिलेंगे।
अप्रैल 2016 में जब गुरुजी जम्मू में एक आध्यात्मिक सभा के लिए थे, निखिल उनसे मिलने पहुँचे। वह मुलाकात उनके जीवन का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुई। गुरुजी के सान्निध्य में उन्हें वह शांति, प्रेम और अपनापन मिला जिसकी उन्हें बरसों से तलाश थी। इसके बाद निखिल ने MAAsterG के साथ अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की, जो चार वर्षों तक खूबसूरती से चलती रही
21 अप्रैल 2020 (मंगलवार) को उन्होंने इस दुनिया को शांतिपूर्वक अलविदा कहा। वाणी के ज्ञान ने निखिल को पूरी तरह बदल दिया था। जो कभी जीवन से निराश था, वही अब अपनी बीमारी को मुस्कुराहट और नृत्य के साथ स्वीकार करने लगा। हालाँकि स्वास्थ्य के कारण वे ज़मीन पर पालथी मारकर नहीं बैठ सकते थे, फिर भी वे हमेशा MAAsterG के चरणों में बैठना चुनते थे — यह उनकी सच्ची श्रद्धा का प्रमाण था। कई बार उनका हीमोग्लोबिन केवल 3 तक गिर जाता था, दर्द असहनीय होता था, फिर भी उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। उन्होंने वास्तव में जीने की कला और मरने की कला सीख ली थी —अर्थात अहंकार का अंत, जो सच्चे आत्मज्ञान का मार्ग है। अपने देहांत से पहले निखिल ने एक पत्र लिखा — जो आज भी सबको प्रेरित करता है कि जीवन से हार मानने के बजाय उसे स्वीकार करें और सच्चे मार्गदर्शन में जीना सीखें। निखिल कालरा की यह यात्रा हमें सिखाती है कि जीवन की असली ताकत स्वीकार करने में है। एक सच्चे गुरु के मार्गदर्शन में, मनुष्य प्रेम, साहस और शांति को पा सकता है — यहाँ तक कि मृत्यु के सामने भी।
आइए, निखिल का संदेश याद रखें —
आत्महत्या को “ना” कहें, और वाणी को “हाँ” कहें।


