हरिद्वार। विश्व विख्यात तीर्थ हरिद्वार को आरती दर्शन में ऑक्सफोर्ड बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी रजिस्टर्ड कर प्रमाण पत्र जारी किया है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित श्री गंगा सभा ने कीर्तिमान स्थापित किया हैं। परंतु हरिद्वार की आज जो स्थिति है वह भले ही हरकी पैड़ी तक ही खुशहाल हैं। वर्तमान में इस तीर्थ का व्यवसाय चौपट ही नहीं तबाह हो चुका है, जिसके लिए सोशल मीडिया पर पुरानी प्राकृतिक आपदाओं की छोटी-छोटी उत्तराखंड की दुर्घटनाओं को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जा रहा हैं। चारधाम यात्रा को ऋषिकेश पहुंचा दिया गया है।
फ्लाईओवर के बनने से जहां यात्रा के जाम में सुधार हुआ है वहीं बाहर से आने वाले पर्यटक सीधे ऋषिकेश, तपोवन, शिवपुरी, मंसूरी और यात्रा पर चले जाते हैं। जिसके कारण सबसे बड़ा नुकसान हरिद्वार की होटल इंडस्ट्री, होटल, रेस्टोरेंट, टैक्सी, ऑटो रिक्शाओं का हुआ है। लगभग 90 फीसदी ट्रेन योग नगरी ऋषिकेश से चलने से हरिद्वार रेलवे स्टेशन की स्थिति दयनीय हो गई हैं। जौलीग्रांट हवाई अड्डे का भी लाभ देहरादून और ऋषिकेश को हुआ है।
इस वर्ष तो मई, जून का भी सीजन बुरी तरह फ्लॉप गया हैं। यहां के दुकानदार फांके काट रहे हैं। बिजली, पानी, सीवर तथा ग्रहकर में अनाप-शनाप बढ़ोतरी कर व्यापारियों की कमर तोड़ दी गई हैं। मंशा देवी हादसे के असली गुनहगारों की चरण वंदना कर पहले से उजडे़ दुकानदारों को और उजाडा जा रहा है, ताकि मंशा देवी प्रकरण ढका रहे ना कुछ हुआ ना होना है।
व्यापार मंडल की नींद बस अड्डा स्थानांतरण और कॉरिडोर को लेकर विभिन्न हवाई प्लानों को लेकर उड़ी हुई हैं। परन्तु हरिद्वार में सुधार में ना सत्ता पक्ष की रुचि है ना विपक्ष की।
करोड़ांे उदण्ड कांवडियों को झेलने वाला शासन, प्रशासन मंशा देवी मंदिर की भीड़ को क्यों नहीं संभाल सका। चंडी देवी मंदिर पर रिसीवर बैठा दिया गया हैं। मंशा देवी काण्ड की भड़ास चंडी देवी में निकाल दी गई ताकि जनता चुप रहे। हरिद्वार के चुने हुए ट्रिपल इंजन के जनप्रतिनिधि भी क्या करें? क्योंकि उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। देहरादून में बैठे आका उनको धराशाई करने में लगे हैं, और चार साल हो गए उन्हें छठी का दूध याद करा दिया। सांसद और माननीय विधायक का प्रदेश की सत्ता के पालनहारे से छत्तीस का रिश्ता हरिद्वार के विकास के लिए अभिशाप बन गया है।
फिर इस धर्मनगरी जिसे अब कॉरिडोर के नाम पर टूरिस्ट पैलेस बनाने की कवायत चल रही है, ऐसी हालत में यहां के सभी जागरुक वर्ग, समाज सब मौन हैं। संत, अखाड़ों, मंडलेश्वर आदि की दुकानदारी ठीक-ठाक चल रही हैं। वातानुकूलित आश्रमों में कई को उनके धन्ना सेठ, यजमान गौशाला, अन्नक्षेत्र, विद्यालयों और दिव्यांगों के नाम पर करोड़ों रुपए मासिक भेजते हैं, और हकीकत में गौवंश सड़क किनारे गंदगी खा रहा है। महंत जी ने रंग-बिरंगे त्रिपुंड लगाकर करोड़ांे की गाड़ी में चले, चेलियों के साथ विलासिता का जीवन जी रहे हैं।
प्रश्न यह है कि तबाह हो रहे हरिद्वार व हरिद्वार के व्यवसाय को कौन संभालेगा। हकीकत में उत्तराखंड को नौकरशाह लूट रहे हैं। अरबों खरबों का कोई पता नहीं, बोले कौन, क्योंकि चोर-चोर मौसेरे भाई हैं।
मोदी जी आपको उत्तराखंड से लगाव हैं कुछ हरिद्वार की भी सुध लो वरना गरीबों के पास बर्बादी के सिवा कोई रास्ता नहीं हैं। ऐसे हालत बनते जा रहे हैं कि एक समय ऐसा आयेगा कि हरिद्वार के होटल मालिकों, व्यापारियों के हिस्सें में, खुदकुशी, मौत रह जाएगी और और आत्महत्या करना उनका आखिरी हथियार होगा। ओर दिल्ली और देहरादून की गूंगी बहरी सरकारों को उनकी यह चीत्कार भी सुनाई नहीं देगी।
क्योंकि सरकार तो हिंदू-मुस्लिम करने में व्यस्त है।
डॉ. रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरिद्वार (उत्तराखंड)