हरिद्वार। अध्यात्म जगत की महान विभूति योगीराज हंस महाराज की पावन जयंती के उपलक्ष्य में ऋषिकुल कालेज मैदान हरिद्वार में दो दिवसीय जनकल्याण समारोह शुरू हो गया।
द हंस फाउंडेशन के प्रेरणास्रोत एवं आध्यात्मिक गुरु भोले महाराज और माता मंगला ने वैदिक परम्परा के अनुसार हजारों श्रद्धालु-भक्तों के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों तथा अमेरिका एवं नेपाल आदि कई देशों से भारी संख्या में श्रद्धालु-भक्त और संत-महात्मा शामिल हुए। जनकल्याण समारोह का आयोजन दिल्ली की आध्यात्मिक एवं सामाजिक संस्था हंस ज्योति-ए यूनिट आप हंस कल्चरल सेंटर ने किया।
जनकल्याण समारोह को सम्बोधित करते हुए माता मंगला ने कहा कि बड़ी खुशी की बात है कि आज हम पतित पावनी मां गंगा के किनारे तीर्थ स्थली हरिद्वार में योगीराज हंस महाराज की पावन जयंती मना रहे हैं। हरिद्वार दुनिया के करोड़ों लोगों की धार्मिक आस्था और श्रद्धा का केंद होने के साथ-साथ श्री हंस जी महाराज की जन्म और कर्मस्थली भी रहा है। हरिद्वार से ही उन्होंने आध्यात्म ज्ञान के प्रचार-प्रसार की शुरुआत की थी और इसे आध्यात्म ज्ञान और मानव सेवा का केंद्र बनाया था। उन्होंने कहा कि योगीराज हंस महाराज अपने समय की महान आध्यात्मिक विभूति थे जिन्होंने देश-विदेश में फैले करोड़ों लोगों के हृदय में ज्ञान की ज्योति जलाकर उनके जीवन को प्रकाशित कर दिया। उन्होंने समारोह में उपस्थित श्रद्धालुओं का आह्वान किया कि वे हंस महाराज के आध्यात्मिक संदेशों को अपने जीवन में उतारें तथा उनके द्वारा दिखाये ज्ञान, भक्ति, मानव सेवा और जनकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ें।
इस मौके पर आध्यात्मिक गुरु भोले महाराज ने–जीवन है बेकार भजन बिन दुनिया में तथा भजन बिना चैन ना आये राम आदि भजन सुनाकर लोगों को भगवान के भजन और भक्ति के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन अनमोल है, यह हमें भगवान के भजन-सुमिरण के लिए मिला है। इस मौके पर भोले महाराज और माता मंगला की प्रेरणा से द हंस फाउंडेशन द्वारा देश भर में किये जा रहे सामाजिक कार्यों की डाक्यूमेंट्री भी दिखाई गई।
समारोह में महात्मा शिवकृपानंद ने भी सत्संग विचारों से श्रद्धालुओं को लाभान्वित किया। प्रसिद्ध तीर्थस्थली बनारस से पधारे भजन गायक जय पांडेय तथा अन्य प्रेमी भक्तों ने भगवान शिव, मां गंगा, गुरु तथा सत्संग की महिमा से जुड़े भजन प्रस्तुत कर पंडाल श्रद्धालुओं को भक्ति और आनंद के रस से सराबोर कर दिया। लोगों ने सत्संग और ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाकर अपने को धन्य किया।