हरिद्वार। नेताओं के बाबा बनने का चलन धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है। इसी के चलते कई नेता बाबा बन चुके हैं और कई बनने की दहलीज पर खड़े हैं। बिना बाबा बने एक नेता ने तो अपने नाम के साथ महाराज लिखना भी शुरू कर दिया था। बिना संन्यास धारण करे नेताजी कथित बाबा बन गए। हालांकि फिलहाल भी वे भगवा धारण कर ही घूमते हैं।
नेता के बाबा बनने में कोई बुराई नहीं है। केवल उद्देश्य पवित्र होना चाहिए। जबकि नेताओं के बाबा बनने के पीछे सम्पत्ति की चाह एक बड़ा कारण है। कहावत भी है कि हींग लगे न फटकरी, रंग चोखा ही चोखा। बस बाबा बन जाओ और फिर माल की कमी नहीं।
खैर जो नेताजी आधे बाबा बन गए हैं, वे किसी और को कथित रूप से अपना गुरु बना चुके थे। उनके साथ अधिकांश समय नेता से कथित बाबा बने महाशय का व्यतीत होता था। सूत्र बताते हैं कि गुरु ने तो नेताजी को अपना उत्तराधिकारी तक घोषित कर दिया था। किन्तु चेला किसी और के खेमे में चला गया। चेले के दूसरे खेमे में चले जाने के कारण गुरु नाराज बताया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि गुरु ने अपने चेले को छोड़ने की गुहार तक लगायी है। जबकि दूसरे खेमे का कहना है कि हमने किसी का पकड़ा नहीं है और न ही जबरदस्ती किसी को चेला बनाने के लिए बुलाया है। बावजूद इसके चेले को अपने से दूर जाता देख गुरु परेशान है। आखिर इसकी वजह क्या है।
आखिर ऐसा क्या है कि चेले के जाने मात्र की खबर ने गुरु को विचलित किया हुआ है। अब देखना दिलचस्प होगा की चेला पूर्ण बाबा बनता है या नहीं, या चेला गुरु से अपना दामन छुड़ा पाएगा या नहीं। क्या गुरु चेले को इतनी आसानी से अपने से दूर होने देगा। इन सभी का जबाव नए साल में मिलने की उम्मीद है।


