होटलों पर सरकार की सख्तीः आखिर भेदभाव क्यों!

हरिद्वार। अंकिता हत्याकांड़ के बाद प्रदेश सरकार सख्त नजर आ रही है। जिसके चलते पूरे प्रदेश में कई शहरों में होटलों, रिसोर्ट आदि में छोपमारी की कार्यवाही की जा रही है। कई स्थानों पर होटल व रिसोर्ट सील भी किए गए हैं तथा कई पर जुर्माना लगाने की कार्यवाही भी की गई है, जिसके चलते हरिद्वार में भी 25 होटलों को नोटिस जारी किया गया है। प्रदेश सरकार की इस कार्यवाही को आधी सख्ती कहा जा सकता है। कारण की सरकार केवल होटलों में ही अनियमिता होना मान रही है। जबकि तीर्थनगरी हरिद्वार में सच्चाई इससे कहीं कोसों दूर है।


हरिद्वार संत बाहुल्य नगरी है, यहां बड़ी संख्या में आश्रम हैं। कई आश्रम तो गंगा से सटे हुए हैं। जहां आश्रमों, मठों की गंदगी सीधे गंगा में प्रवाहित होती है। कई आश्रमों में होटलों की तरह की गतिविधियां संचालित होती हैं, किन्तु सरकार इस दिशा में कोई कार्यवाही करने को तैयार नहीं है। केवल होटलों पर नकेल कसकर कार्य की इतिश्री करने का प्रयास कर रही है। वहीं सैंकड़ों धर्मशालाएं तीर्थनगरी में संचालित हैं। जिनमें से अधिकांश होटल में तब्दील हो चुकी हैं। जबकि होटलों की भांति धर्मशालाओं में भी यात्रियों से पूरा पैसा वसूला जा रहा है। बावजूद इसके होटलों पर नकेल कसने मात्र से सरकार की मंशा पूरी होने वाली नहीं हैं।
इतना ही नहीं कुछ आश्रम तो ऐसे हैं जिन्होंने आश्रम की आड़ लेकर सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण किया हुआ है। कुछ ऐसे भी हैं, जहां वन विभाग की भूमि पर अतिक्रमण कर निर्माण किया जा रहा है। विभाग के ध्वस्तीकरण के आदेश के बाद भी निर्माण कार्य जारी है। इन सबके बाद भी सरकार उस ओर से आंखें मूंदे बैठी हुई है। यदि सरकार वास्तव में नियम विरूद्ध होटलों के संचालन व अपराध को रोकने के प्रति गंभीर है तो उन्हें ऐसे स्थानों को भी चिन्हित करने की आवश्यकता है, जहां धर्म की आड़ में कई गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है।

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