जानिए गणेश चतुर्थी के दिन क्यों हैं चन्द्र दर्शन का निषेध

देव गुरु का वक्री होने के साथ नीच राशि में जाने से होगी उथल-पुथल
हरिद्वार। भारतीय प्राच्य विद्या सोसाइटी कनखल के संस्थापक पं. प्रतीक मिश्रपुरी ने बताया कि 10 सितंबर को सिद्धि विनायक व्रत है। इसी दिन गणपति को भगवान शंकर ने पुन जीवित किया था। उन्होंने गणेश भगवान को हाथी को सिर लगाकर जीवन दान दिया था। उनका ये रूप देखकर चंद्रमा को हंसी आ गई। जिस पर भगवान गणपति ने उनको श्राप दे दिया। कहा कि जो भी देव, मानव, इस दिन तुम्हे देखेगा उसको झूठे विवादांे में फसना पड़ेगा। तभी से इस दिन चंद्रमा का दर्शन निषिद्ध है। उन्होंने बतायाकि इस बार विनायक चतुर्थी 10 सितंबर को होगी। इस दिन चंद्रमा रात्रि 8. 55 को उदय होगा। इस दिन चंद्रमा का दर्शन शुभ नहीं होता है। उन्होंने बताया कि ज्योतिष के हिसाब से भी चतुर्थी तिथि रिक्त तिथि होती है। इसमें कोई कार्य सफल नहीं होता है। चंद्रमा सभी मुहूर्त का राजा है। श्री मिश्रपुरी ने बताया कि इस दिन कार्य करने से उसके सफल होने की संभावना कम ही होती है। बताया कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन कृष्ण भगवान ने भी किए थे। उन्हें भी झूठे आरोपांे का सामना करना पड़ा था, परंतु चंद्रमा के दर्शन यदि हो जाए तो गंगा स्नान से ये दोष समाप्त जाता है।
श्री मिश्रपुरी ने बताया कि फिलहाल तेरह दिनों का पक्ष चल रहा है, जो की 20 सितंबर तक रहेगा। इसी बीच 14 सितंबर को 11. 45 दोपहर में देव गुरु बृहस्पति भी वक्र गति से अपनी नीच राशि मकर में प्रवेश कर जायेंगे। जहां पहले से ही शनि वक्र गति से भ्रमण कर रहे हैं। बताया कि दोनांे ही ग्रह उदित हैं। रात्रि में आग्नेय कोण में इन्हे नंगी आंखों से देखा जा सकता हे। उन्होंने बताया कि देव गुरु वृहस्पति का वक्री होना और अपनी नीच राशि में प्रवेश करना शुभ फलकारी नहीं होगा। इससे विश्व की कई चिंताएं आएंगी। विश्व राजनीति में परिवर्तन होगा। हिंदुस्तान में जातीय राजनीति बहुत ऊपर तक जाएगी। ये गुरु, शनि की युति बहुत परिवर्तन लेकर आ रही है। उन्होंने बताया कि वृष, कर्क, तुला, मकर राशि वाले जातकों को खासा लाभ होगा। मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक राशि वालांे को कष्ट होगा। इन राशि वाले जातक बहुत परेशान होंगे। उन्होंने इन राशि वालों के लिए वाद विवाद से बचने की सलाह दी।

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