विरोध करने वाला रातों-रात हो जाता है फर्जी, आज के कालनेमि ही असली और सच्चे संत
हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के कोषाध्यक्ष व श्री निर्मल पंचायती अखाड़े के कोठारी जसविंदर सिंह महाराज ने फर्जी संतों के खिलाफ कार्यवाही की मांग कर पुनः इस विवाद के जिन्न को बोतल से बाहर कर दिया है। मामला गंभीर भी है, किन्तु कौन असली है और कौन नकली इसका निर्णय करे तो करे कौन!
अभी तक जिन संतों को फर्जी बताकर संत समाज से बाहर का रास्ता दिखाया गया वह निर्णय कहीं न कहीं स्वार्थ की भगवा राजनीति और धन के लोभ को दर्शाता है। या यूं कहें की अपने पापों को छिपाने के लिए असली को भी नकली की श्रेणी में शामिल कर दिया गया।
विदित हो कि अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष ब्रह्मलीन श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि महाराज की अध्यक्षता में इलाहाबाद में हुई बैठक में कुछ संतों को फर्जी बताकर संत समाज से बाहर कर दिया गया था। जिनमें परी अखाड़े की साध्वी त्रिकाल भंवता भी एक थीं। पूर्व में साध्वी त्रिकाल भंवता और नरेन्द्र गिरि के संबंध मधुर थे, कुछ समय तक साध्वी त्रिकाल भवंता बाघम्बरी मठ में भी रही, किन्तु जंब साध्वी त्रिकाल भंवता ने नरेन्द्र गिरि के खिलाफ मोर्चा खोला तो वे एकाएक फर्जी हो गयी। वहीं दूसरेे संत महंत वृहस्पति गिरि महाराज व उनके गुरु भाई स्वामी मलखान गिरि महाराज को भी फर्जी संत इसलिए घोषित कर दिया गया कि नरेन्द्र गिरि ने अपने सहकर्मी अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरिगिरि महाराज के साथ मिलकर उनकी सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया। नरेन्द्र गिरि ने बरेली के मठ से वृहस्पति गिरि को बाहर कर अपना व्यक्ति बैठा दिया, जबकि हरिगिरि ने पीलीभत के समीप गांव में अरबों रुपये की बृहस्पति गिरि की जमीन पर कब्जा कर लिया। विरोध करने और न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पर वृहस्पति गिरि व उनकेे गुरु भाई मलखान गिरि एकाएक फर्जी संत हो गए। वहीं बार संचालक सचिन दत्ता जिसे संत परम्पररा को काई ज्ञान नहीं था, को मोटी रकम लेकर रातों-रात महामण्डलेश्वर बना दिया गया। बाद में अपना उल्लू सीधा कर उसे भी फर्जी घोषित कर दिया गया। इलाहाबाद निवासी कुश मुनि जिसने नरेन्द्र गिरि के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था, उसे भी फर्जी घोषित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त सच्चिदानंद महाराज, राम रहीम, महामण्डलेश्वर राधे मां, आशाराम, कर्तव्य योगी, स्वामी चक्रपाणि महाराज आदि को भी फर्जी बताकर संत समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
सबसे मजेदार बात यह कि श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि महाराज जिस निर्मल अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह शास्त्री महाराज को सच्चा संत बताते हुए उनके समर्थन में थे और रेशम सिंह को उन्होंने फर्जी संत बताया था, अखाड़ा परिषद के दो फाड़ होते ही श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज फर्जी हो गए और रेशम सिंह निर्मल अखाड़े का असली संत हो गया।
ऐसे में असली और नकली संत की पहचान करना कैसे संभव है। जब सम्पत्ति हड़पने के बाद विरोध करने वाले संन्यासी को फर्जी करार दे दिया जाता हो। विरोध करने वाला संत रातों-रात नकली हो जाता है। स्थिति यह है कि मोटी रकम लेकर चार पैर वालों को भी पद दिया जा सकता है। तो ऐसे में असली और नकली की बात करना ही बेईमानी है।
तीर्थनगरी हरिद्वार का हाल भी किसी से छिपा नहीं है। यहां कालनेमि ऐश का जीवन जी रहे हैं। इसके साथ ही विलासिता के जितने भी साधन हो सकते हैं, सबका भोग भी भोग रहे हैं। बावजूद इसके वे महान संतों की श्रेणी में स्वंय को रखते हैं। नकली पद, लोगों की सम्पत्ति पर कब्जा, दलाली, रियर स्टेट कारोबार, पैसा लेकर पद देना, यहां तक की अपने स्वार्थ के लिए झूठे मंकद्मों में लोगों को फंसने का काम भी कथित भगवाधार कर रहे हैं। इतना सब करने के बाद भी इनसे असली और सच्चा संत कोई दूसरा नहीं।
इस मसले का समाधान निकाला जा सकता है। यदि आम जनता को असली और नकली साधु की पहचान का जिम्मा दे दिया जाए। फिर जो तस्वीर सामने आएगी उसमें ऊंगली पर गिने जा सके इतने ही संत शायद बचें।