बैरागियों का अखाड़ा परिषद से अलग होना बहाना, असली मकसद नरेन्द्र गिरि व हरिगिरि को हटाना

हरिद्वार। विगत दिनों अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से बैरागी संतों की तीनों अणियों ने अपने को अलग करने की घोषणा करते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को भंग बताया था। इसके पीछे कारण बैरागी संतों को सरकार से मिलने वाली सुविधाओं का न मिलना तथा अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष या महामंत्री किसी एक पद पर बैरागी संतों को प्रतिनिधित्व न होना बताया गया था। मगर यह सब एक बहाना मात्र था। सूत्र बताते हैं कि इसके पीछे असली मकसद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व महामंत्री को हटाना है।
सूत्र बताते हैं कि अखाड़ा परिषद के किक्रया कलापों से अन्य अखाड़ों के संतों में रोष है। बताया जाता है कि जहां जूना अखाड़े के श्रीमहंत हरिगिरि से अखाड़े के संत ही नाराज हैं वहीं निरंजनी अखाड़े के आचार्य पद पर स्वामी कैलाशानंद की ताजपोशी व हरिगिरि की दख्लंदाजी से भी अग्नि अखाड़े के संत भी नाराज हैं। वहीं जूना का सहयोगी आह्वान अखाड़ा भी नाराज चल रहा है। उधर निरंजनी अखाड़े का सहयोगी आनन्द अखाड़ा भी निरंजनी से नाराज है। जबकि निर्वाणी अखाड़े का सहयोगी अटल अखाड़ा निर्वाणी के साथ खड़ा है। उधर बैरागी संतों के तीनों अखाड़े एकजुट हो गए हैं। जबकि उदासीन और निर्मल अखाडे़ हवा का रूख भांप रहे हैं। ऐसे में अखाड़ा परिषद के चुनाव होने की दशा में वर्तमान अध्यक्ष व महामंत्री को बहुमत साबित करना कठिन होगा। सूत्र बताते हैं कि अखाड़ा परिषद के नए पदाधिकारियों को लेकर आपस में मंत्रणा हो चुकी है। यहां तक की कौन अध्यक्ष होगा और कौन महामंत्री तथा प्रवक्ता और कोषाध्यक्ष सभी पदों पर कौन नियुक्त होगा इसकी भी रूपरेखा तैयार कर ली गयी है। इस बार संन्यासी अखाड़े से अध्यक्ष और बैरागी अखाड़े से महामंत्री बनना लगभग तय हो गया है। उधर अध्यक्ष व महामंत्री के बीच चल रही खींचतान भी वर्तमान की अखाड़ा परिषद को कमजोर कर चुकी है। जबकि निरंजनी में आचार्य पद पर नियुक्ति भी इस विवाद का एक बड़ा कारण बतायी जा रही है। सूत्र बताते हैं कि अखाड़ा परिषद के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने एक बड़ें संत के सामने आचार्य की निुयक्ति का ठीकरा परिषद के अन्य पदाधिकारी व दूसरे अखाड़े के संत पर फोड़ दिया है। ऐसे में परिषद में पदाधिकारियों के बीच तल्खी और बढ़ गयी है। जिसका असर संतों की राजनीति के साथ कुंभ में भी देखने को मिलेगा। सूत्र बताते हैं कि संतों में पदों के बीच एक बड़ा बदलाव शीघ्र देखने को मिल सकता है। जिससे कई संतों को रूतबा बढ़ेगा और कुछ का बड़ा नुकसान होगा।

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