धर्म के ठेकेदार ही सनातन को रसातल में पहुंचाने का कर रहे कार्य

मंदाकिनी पुरी पर कार्यवाही तो करोड़ों लेकर अपराधियों को आचार्य बनाने वालों पर कार्यवाही क्यों नहीं!
हरिद्वार। रुपये लेकर आचार्य मण्डलेश्वर व मण्डलेश्वर बनाने वाली निरंजन अखाड़े की निष्कासित महामण्डलेश्वर मंदाकिनी पुरी भले ही जेल में हों, किन्तु मंदाकिनी पुरी जैसे अनेक भगवाधारी तीर्थनगरी हरिद्वार में भी विराजमान हैं। हालांकि धोखाधड़ी के मामले सामने आने पर मंदाकिनी पुरी को अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया है, किन्तु बड़ा सवाल यह की आखिर मंदाकिनी पुरी किसकी शह पर इस धोखाधड़ी के खेल को अंजाम दे रही थी। इस मामले का भी संतों को संज्ञान लेना चाहिए।


नाम न छापने की शर्त पर ऋषिकेश के एक संत ने बताया कि पैसे लेकर मण्डलेश्वर व आचार्य महामण्डलेश्वर बनाने का खेल लम्बे अर्से से चला आ रहा है। मंदाकिनी पुरी तो केवल एक मोहरा मात्र थीं। उनका कहना है कि जब कुछ अखाड़ों के संत मण्डलेश्वर व आचार्य महामण्डलेश्वर बनाने के नाम पर करोड़ों रुपये लेते हैं, उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।
उनका कहना था कि दो अखाड़े ऐसे हैं, जिन्होंने गैर ब्राह्मण को आचार्य महामण्डलेश्वर जैसे पद पर आसीन किया हुआ है। जिसमें से आचार्य महामण्डलेश्वर बनाने के नाम पर तय रकम न देने के चलते आचार्य का घर तक बिकवा दिया, जबकि दूसरा अभी तक तय दो करोड़ की रकम में से एक करोड़ ही दे पाया। वहीं शेष रकम न देने पर उस पर भी पद से निष्कासित करने की तलवार लटकने लगी है।


संत का कहना है कि 20 से 25 लाख रुपये तो मण्डलेश्वर बनाने में ही अखाड़े के लोग खर्च करवा देते हैं। ऐसे में मंदाकिनी पुरी पर कार्यवाही का औचित्य समझ से परे है। बताया कि यदि कार्यवाही करनी है तो अखाड़े के उन पदाधिकारियों पर की जानी चाहिए, जो करोड़ों रुपया लेकर डकार तक नहीं लेते। जबकि बात-बात पर यही दुहाई दी जाती है कि अखाड़ा मण्डलेश्वर व आचार्य महामण्डलेश्वर बनाने के लिए कोई पैसा नहीं लेता।


उनका कहना था कि यह पैसे की ही माया है की अपराधिक किस्म के लोगों को मण्डलेश्वर व आचार्य महामण्डलेश्वर बना दिया जाता है। ऐसा इसलिए हो जाता है कि पैसे के आगे धर्म की भी अब बोली लगने लगी है। यदि ऐसा न होता तो मंदाकिनी पुरी जैसे अन्य भगवाधारी ठगोें व अपराधियों पर कार्यवाही हो जाती।


संत ने बताया कि पहले शंकराचार्य संन्यास दीक्षा दिया करते थे। पूर्व में कुछ विवाद के कारण आचार्य महामण्डलेश्वर पद का सृजन हुआ। पद को सृजन अखाड़ों ने किया और आचार्य के लिए नियम प्रतिपादित किए, किन्तु आज उन्हीं नियमों को दर किनार कर गैर ब्राह्मण को आचार्य बनाया जाने लगा है। ऐसा केवल धन की लालसा में किया जा रहा है।


उनका कहना था कि मंदाकिनी पुरी ने अपराध किया है, किन्तु जो लोग मण्डलेश्वर व आचार्य महामण्डलेश्वर बनाने के लिए करोड़ों रुपया लेते हैं और अपराधियों को भी स्वार्थ के चलते क्लीन चिट दे देते हैं वह मंदाकिनी पुरी से भी बड़े अपराधी हैं और उन पर भी कार्यवाही होनी चाहिए। उनका कहना था कि इसके लिए आम संतों व धर्म परायण जनता को आगे आना होगा। इसके साथ ही धर्म के नाम पर दी गयी दान की सम्पत्तियों को बेचकर ऐश करने वालों का विरोध भी करना होगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो कथित धर्म के ठेकेदार धर्म को रसातल में पहुंचा देंगे और भारत के विश्वगुरु बनने के सपने को ये ठग चकनाचूर कर देंगे।

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