त्याग के उपदेशक सम्पत्ति के लिए बदलते ईमान!

सम्पत्ति की लालसा में सनातन धर्म व शंकराचार्य के स्थापित मूल्यों को लगा रहे पलीता
हरिद्वार।
व्यक्ति सम्पत्ति और मोहमाया का त्याग कर संत बनता है, किन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो भगवा धारण करने के बाद भी सम्पत्ति को देखकर गिरगिट की भांति रंग बदलते हैं। दूसरों को त्याग का उपदेश देने वाले संत सम्पत्ति और पद के लिए कैसे अपना ईमान बदल लेते हैं, इसकी बानगी निरंजनी अखाड़े में देखी जा सकती है। बावजूद इसके ऐसे भगवाधारियों के खिलाफ कोई आवाज उठाने के लिए तैयार नहीं है। इतना ही नहीं वे ही लोग चुप्पी साधे हुए है। जो अन्याय के खिलाफ लड़ने की दुहाई देते हैं और पुराणों तथा उपनिषदों के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। किन्तु जब बात स्वंय पर आती है तो ये मौन धारण कर लेते हैं।

एक माह पूर्व बलवीर गिरि व एक माह बाद वहीं संत हो गए बलवीर गिरि


बता दें कि बाघम्बरी गद्दी का उत्तराधिकारी बनने से पूर्व बलवीर गिरि बलवीर पुरी थे। जो उत्तराधिकारी बनने के अगले की पल बलवीर गिरि हो गए। ऐसा नहीं की बलवीर पुरी ने पहली बार ऐसा कारनामा किया हो, यह इनकी परम्परा में शामिल है। बलवीर पुरी के गुरु ब्रह्मलीन श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि भी बाघम्बरी की सम्पत्ति के लालच में पुरी से गिरि बन गए। इतना की नहीं नरेन्द्र गिरि के गुरु और बलवीर पुरी के दादा गुरु हरगोविन्द पुरी भी कोठारी बनने के चक्कर के हरगोविन्दपुरी से हरगोविन्दानंद गिरि बन गए थे। जब कोठारी पद वापस ले लिया गया तो वे पुनः हरगोविन्द पुरी हो गए। ये हाल उनका है जो दूसरों को मोहमाया से दूर रहने का उपदेश देते हैं। और जब अपनी माया का नम्बर आता है तो ये सारा उपदेश, पर उपदेश कुशल बहुतेर की भांति भूल जाते हैं। वहीं जो बलवीर पुरी विगत माह तक बलवीर पुरी थे और विल्लवकेश्वर महादेव मंदिर में जिनका फोटो के साथ नाम बलवीर पुरी अंकित था, आज वह बलवीर गिरि हो गया। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि त्याग का ढि़ढोरा पीटने वाले सम्पत्ति के लिए क्या नहीं करते हैं।
विदित है कि आदी गुरु शंकराचार्य अपने पिता के इकलौते पुत्र थे, जिन्होंने सब त्याग कर संन्यास धारण किया और अखाड़ों के साथ सनातन धर्म की पुनः स्थापना की। किन्तु वर्तमान में सब कुछ त्याग कर सम्पत्ति के लिए गिरिगिट की तरह रंग बदलतेे भगवाधारी सनातन धर्म को पुनः गर्त में ले जाने के साथ आदी शंकराचार्य द्वारा स्थापित मूल्यों का ह्ास करने में जुटे हुए हैं।

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