आश्रम-अखाड़ों ने निकलकर होटलों में पहुंची भण्डारा परम्परा

हरिद्वार। सदियों से आश्रम-अखाड़ों में चली आ रही भण्डारों की परम्परा अब होटलों तक पहुंच चुकी है। अब भण्डारे भी होटलों में होने लगे हैं। जिससे समृद्ध परम्परा के नष्ट होने की शुरूआत हो चुकी है। जहां पत्तल में बैठकर नहीं अंग्रेजों की भांति कुर्सी-मेज पर बैठकर भोजन किया जाता है।


बता दें कि बीते रोज शंकर आश्रम स्थित एक होटल में भण्डारे का आयोजन किया गया। भण्डारे के लिए मंच भी बनाया गया। जिस पर एक बैनर लगा हुआ था। जिसमें अंकित था की 16 सोमवार के व्रत पूरे होने के उपलक्ष्य में विशाल भण्डारे का आयोजन। इस भण्डारे में कई बड़े संतों ने शिरकत की। ऐसे संत भी वहां मौजूद थे, जो व्यास पीठ पर बैठकर लोगों को सनातन संस्कृति को बचाने के लिए लम्बे-लम्बे भाषण देते हैं। उन्होंने भी सनातन संस्कृति को छोड़कर अंग्रेजों की भांति भोजन किया होगा।


सूत्र बताते हैं कि होटल में भण्डारे का आयोजन करने पर जूना अखाड़े के महामण्डलेश्र स्वामी प्रबोधानंद गिरि महाराज ने कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे संत परम्परा के विरूद्ध बताया। स्वामी प्रबोधानंद गिरि महाराज का कहना है कि कुछ संत अब भण्डारा खाने, लिफाफा लेने और आश्रमों में आराम करने तक सीमित रह गए हैं। होटलों में भण्डारे का आयोजन उचित नहीं है। संतों को सनातन की रक्षा के लिए आश्रमों से बाहर आकर और भण्डारा पद्धति को विराम देकर कार्य करना होगा, तभी सनातन संस्कृति को बचाया जा सकता है।


वहीं होटल में भण्डारे का आयोजन करने पर जैसा की भोजन के समय आश्रम-अखाड़ों में नियम है कि गीता पाठ या अन्य किसी देवता का स्मरण किया जाता है, वह भी नहीं हुआ। मजेदार बात यह कि सनातन संस्कृति की रक्षा का ढोल पीटने वालों की मौजूदगी में यह सब हुआ। ऐसी स्थिति में सनातन संस्कृति और खासकर संतों की मर्यादा को कैसे बचाया जा सकता है।

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