फर्जीवाडाः एक ही व्यक्ति के दो नाम, प्रयागराज में बलवीर गिरि और हरिद्वार मढ़ी मुलतानी में बलवीर पुरी
हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी व बाघम्बरी गद्दी के श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि की संदिग्ध मौत के बाद मठ के उत्तराधिकारी को लेकर अखाड़ा पशोपेश में हैं। नरेन्द्र गिरि की संदिग्ध मौत के बाद सामने आए कथित वयीसतनुमा सुसाइट नोट के बाद उसे सिरे से नकार कर संतों ने बलवीर पुरी ऊर्फ बलवीर गिरि के उत्तराधिकारी बनने को अप्रत्यक्ष रूप से सिरे से नकार दिया था, किन्तु अब रजिस्टर्ड वसीयत सामने आने पर अखाड़ा फिर से पशोपेश में है। जबकि वसीयत सामने आने के बाद भी बलवीर पुरी उत्तराधिकारी नहीं बन सकते हैं।
बलदेव गिरि व भगवान गिरि ने वसीयत कर अखाड़े को बनाया था बाघम्बरी का मालिक
सवालः श्रवणनाथ मठ और मंशा देवी के संचालन का जिम्मा सचिव को तो बाघम्बरी का क्यों नहीं?
बता दें कि वर्ष 1978 में बाघम्बरी मठ के तत्कालीन श्रीमहंत बलदेव गिरि महाराज ने अखाड़े के पंचों के आग्रह पर मठ को वर्ष 2004 में छोड़ दिया था। इसी के साथ उन्होंने मठ के संचालन का जिम्मा अखाड़े के पंच परमेश्वर को लिखित रूप में सौंपा था। इनसे पूर्व मठ का जिम्मा श्रीमहंत विचारानंद गिरि महाराज देख रहे थे। उनकी कोई वसीयत नहीं थी। उनकी रेल में सफर के दौरान दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी थी, जिनके बाद मठ के संचालन का जिम्मा श्रीमहंत बलदेव गिरि महाराज को 1978 में सौंपा गया। बलदेव गिरि महाराज को भी मठ पर अखाड़े के पंच परमेश्वर ने नियुक्त किया था। श्रीमहंत बलदेव गिरि महाराज के बाद 2004 में रामदत्त मढ़ी गिरि नामा के श्रीमहंत भगवान गिरि को मठ की जिम्मेदारी सौंपी गयी। बलदेव गिरि के द्वारा मठ की जिम्मेदारी संभालने के कुछ समय बाद मढ़ी मुलतानी के महंत हरगोविन्द पुरी जो नरेन्द्र गिरि के गुरु हैं, को हरगोविन्दानन्द गिरि बनाकर बलदेव गिरि के सहायक के रूप में बाघम्बरी मठ में पंच ने भेज दिया और कुछ समय बाद उन्हंे भी हटा दिया गया।
निरंजनी अखाड़े के मध्य प्रदेश निवासी एक श्रीमहंत ने बताया कि गले में कैंसर रोग हो जाने के बाद श्रीमहंत भगवान गिरि ने लिखित रूप में मठ के संचालन का जिम्मा अखाड़े के पंच परमेश्वर को सौंप दिया तथा सम्पत्ति का मालिक अखाड़े को बना दिया। 2006 में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के बाद तत्कालीन अखाड़े के पंच परमेश्वर में से एक नरेन्द्र पुरी ऊर्फ नरेन्द्र गिरि ने मठ की जिम्मेदारी संभालने के लिए कूटनीतिक चाल चली और पंचों को अपने प्रभाव में ले लिया। भगवान गिरि की मौत के बाद मठ के संचालन को लेकर दारागंज में एक पंचों और वरिष्ठ संतों की पंचायत हुई। जिसमें नरेन्द्र गिरि ने स्वंय को बाघम्बरी मठ का महंत घोषित कर दिया। जिसका नरेन्द्र गिरि की मढ़ी मुलतानी के महंत बालकिशन पुरी ने नरेन्द्र गिरि को महंत बनाने का यह कहते हुए विरोध किया कि यह मठ गिरि नामा संतों का है। पुरी नामा संत को बाघम्बरी का महंत नहीं बनाया जाना चाहिए। जिस पर नरेन्द्र गिरि ने उनका भरी पंचायत में अपमान किया। जिस कारण वे तत्काल राजस्थान में डुगरपुर स्थित खिरम चले गए और अपमान के गम में कुछ समय बाद उनकी मृत्यु को गयी। उनका कहना था कि मैं अखाड़े का पुराना साधु और आज के आए नए साधु ने मेरा अपमान किया। यही गम उनकी मौत का कारण बना। 2006 में नरेन्द्र गिरि को बाघम्बरी मठ की कमान सौंपी गयी। जिसमें लिखित रूप से यह लिखा था कि आपको मठ के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। नरेन्द्र गिरि के अखाड़े में पंच बने रहने के कारण उन्होंने उस समय के लिखित दस्तावेजों को खुर्द-बुर्द कर दिया और स्वंय को बाघम्बरी का मालिक बताने लगे। ऐसे में नरेन्द्र गिरि को केवल मठ के संचालन का अधिकार था। नरेन्द्र गिरि केवल मठ के संचालक थे, न की मालिक। जबकि श्री पंचायती अखाड़ा तपोनिधि निरंजनी को स्वामित्व का अधिकार बलेदव गिरि महाराज व भगवान गिरि महाराज लिखित में दे चुके थे। जो पूर्व के महंतों द्वारा अखाड़े को बाघम्बरी के मालिकाना हक दिए गए थे उनकी वसीयत आज भी अखाड़े में मौजूद हैं। इस कारण से नरेन्द्र गिरि को स्वामित्तव का अधिकार नहीं थे।
श्रीमहंत ने बताया कि जिस बलवीर पुरी को उत्तराधिकारी बनाने की वसीयत में बात कही गयी है, वह वर्तमान में मढ़ी मुलतानी का कारोबारी महंत है। जबकि वसीयत में बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाए जाने का जिक्र है। ऐसे में सवाल उठता है कि बलवीर पुरी कौन हैं और बलवीर गिरि कौन? जिसे बलवीर गिरि कहकर मीडिया में दिखाया जा रहा है और जांच एजेंसी भी उससे पूछताछ कर रहीं हैं। वहीं बलवीर गिरि हरिद्वार में अखाड़े में बलवीर पुरी के नाम पर कारोबारी महंत के रूप में दर्ज है। अभी तक के इतिहास पर यदि नजर डालें तो बाघम्बरी मठ में फर्जीवाड़ा चलता रहा। ऐसे में अब अखाड़ों के पंचों पर निर्भर करता है कि वह बाघम्बरी में फर्जीवाड़े को जारी रखता है या फिर सही गिरि नामा साधु को महंत बनाता है।
संत ने बताया कि बलदेव गिरि महाराज जिस समय बाघम्बरी मठ का संचालन कर रहे थे उसी दौरान हरिद्वार स्थित श्रवण नाथ मठ के संचालन की जिम्मेदारी भी उन्हीं के पास थी। जिसमें उन्होंने अपनी वसीयत के द्वारा मठ के संचालन की जिम्मेदारी अखाड़े के पंचों को दी। अब मठ की व्यवस्था अखाड़े का सचिव संभालता है। यह वहीं बलदेव गिरि महाराज हैं। जिन्होंने श्रवणनाथ मठ में यह व्यवस्था बनायी। वहीं मंशा देवी मंदिर के संचालन की व्यवस्था भी श्रीमहंत शंकर भारती ने अखाड़े के सचिव को दी थी। जब श्रवणनाथ मठ और मंशा देवी में संचालन की व्यवस्था अखाड़े के सचिव के जिम्मे है तो बाघम्बरी मठ का संचालन सचिव क्यों नहीं कर सकता। एसे में सवाल उठता है कि जिस बलवीर पुरी को उत्तराधिकारी बनाए जाने की चर्चा वसीयत व कुछ संतों के माध्यम से की जा रही है, अखाड़े के पंचों को नरेन्द्र गिरि के बाघम्बरी मठ का स्वामित्व संबंधी दस्तावेज मांगने चाहिए। साथ उस वसीयत को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जो श्री महंत बलदेव गिरि व श्रीमहंत भगवान गिरि ने अखाड़े के नाम की थी। इन सबके बाद भी यदि अखाड़े के पंच उन वसीयतों को सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं तो कहीं कुछ दाल में कुछ काला तो नहीं?