अयोध्या भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चेतना का केंद्र है। यह नगरी केवल धर्म का प्रतीक नहीं, बल्कि वह जीवंत मानवीय भाव है जिसने हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति को ऊर्जा दी है। भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के रूप में यह स्थान भारतीय जीवन-दर्शन, मर्यादा, कर्तव्य और आदर्शों का आधार स्तंभ रहा है। आज विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर जिस ‘धर्म ध्वजा’ को हम अयोध्या में ऊँचाई पर फहराता हुआ देख रहे हैं, वह केवल एक वस्त्र का टुकड़ा नहीं है, यह भारतीय अस्मिता, आत्मसम्मान और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सशक्त प्रतीक है। यह ध्वजा सदियों के संघर्षों, आक्रांताओं के अत्याचारों और रामभक्तों की अदम्य आस्था का जीवंत प्रमाण है।

भारतीय परंपरा में ध्वजा का महत्व अत्यंत प्राचीन है। वेदों और पुराणों में ध्वजा को विजय, धर्म और आत्मबल का प्रतीक माना गया है। रामायण में हनुमान जी द्वारा धारण किया गया ‘कपिध्वज’ केवल एक सेना संकेत नहीं था, बल्कि अच्छाई की ओर से बुराई को चुनौती देने का प्रतीक था। ध्वजा हमेशा से धर्म और सत्य की स्थापना का चिह्न रही है। इसी आधार पर अयोध्या में स्थापित धर्म ध्वजा भारतीय समाज को यह संदेश देती है कि धर्म की विजय शाश्वत है और सत्य का मार्ग कभी समाप्त नहीं होता। यह ध्वजा रामायण काल की स्मृति से लेकर आधुनिक भारत तक के वैचारिक सेतु के रूप में खड़ी दिखाई देती है।
अयोध्या के इतिहास में एक ऐसा अध्याय भी है जिसने इस पवित्र स्थल को अत्यंत पीड़ा पहुंचाई। सन् 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा राम जन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया। यह घटना केवल स्थापत्य विनाश नहीं थी, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक अस्मिता पर किया गया एक आक्रमण था। मंदिर का विध्वंस समस्त राष्ट्र की चेतना को झकझोरने वाला था। अनेक इतिहासकारों के अनुसार, उस समय से लेकर आधुनिक काल तक राम जन्मभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए 70 से अधिक संघर्ष हुए। इस लंबे काल में रामभक्तों ने असहनीय पीड़ा, बलिदान और संघर्ष सहा, परंतु आस्था की ज्योति बुझने नहीं दी। इन संघर्षों के बीच धर्म ध्वजा का फहराया जाना प्रतिरोध, संकल्प और साहस का प्रतिनिधित्व था। यह घोषणा थी कि आस्था को दबाया जा सकता है, परंतु समाप्त नहीं किया जा सकता।
राम जन्मभूमि आंदोलन भारत के इतिहास का सबसे सशक्त सांस्कृतिक आंदोलन माना जाता है। यह केवल एक धार्मिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का उद्गम बिंदु था। राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए लाखों लोग, संत और कारसेवक आगे आए। उनके कंधों पर जो भगवा धर्म ध्वजा फहराई थी, वह एकता, साहस और त्याग का प्रतीक बनी। रथ यात्राओं, सभाओं और अनगिनत कारसेवा अभियानों में वही ध्वजा लोगों को जोड़ने वाली शक्ति थी। यह आंदोलन इस बात का प्रमाण था कि भारतीय समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रति कितना सजग और समर्पित है।
राम जन्मभूमि का संघर्ष केवल भूमि का विवाद नहीं था, बल्कि चार अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्नों का प्रतीक था, अस्मिता का, न्याय का, संस्कृति का और राष्ट्रीय स्वाभिमान का। यह अस्मिता का प्रश्न था क्योंकि भगवान राम भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ हैं, उनका अस्तित्व हमारे सामूहिक मानस में रचा-बसा है। यह न्याय का प्रश्न था क्योंकि पाँच सौ वर्षों का अन्याय समाप्त होना आवश्यक था। यह संस्कृति का प्रश्न था क्योंकि राम को नकारना भारत को नकारने जैसा था। और यह स्वाभिमान का प्रश्न था क्योंकि स्वतंत्र भारत को अपने सबसे पवित्र स्थान को पुनः प्राप्त करने का हक था।
आज अयोध्या में फहराती धर्म ध्वजा कई रूपों में महत्वपूर्ण है। यह न्याय और सत्य की विजय का प्रत्यक्ष प्रमाण है। लंबे संघर्षों के बाद मंदिर की पुनर्स्थापना ने पूरे विश्व को यह संदेश दिया कि भारत अपनी सांस्कृतिक जड़ों को न केवल पहचानता है, बल्कि उन्हें सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध भी है। यह ध्वजा वैश्विक हिंदू समाज को एक पहचान, एक केंद्र और एक गौरव प्रदान करती है। अयोध्या अब विश्व के आध्यात्मिक मानचित्र पर एक महान धुरी बन चुकी है, जहाँ से भारत अपने सांस्कृतिक संदेशों को दुनिया तक पुनः स्थापित कर रहा है।
इस ध्वजा का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि यह सामाजिक समरसता और शांति का प्रतीक बन चुकी है। मंदिर निर्माण किसी के विरोध में नहीं, बल्कि सत्य और न्याय की स्थापना के लिए हुआ है। यह ध्वजा हमें यह स्मरण कराती है कि जब अतीत के घाव भर जाते हैं, तब समाज विकास, सद्भाव और एकता के मार्ग पर आगे बढ़ता है। यह भारत के उस आदर्श को पुनः स्थापित करती है जिसमें धर्म, सत्य और करुणा सर्वोच्च मूल्य हैं।
धर्म ध्वजा अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों का सेतु है। यह अतीत के संघर्षों की स्मृति है, वर्तमान की विजय का उत्सव है और भविष्य के लिए प्रेरणा का पर्व है। यह ध्वजा पीढि़यों को यह संदेश देती है कि भारत की सांस्कृतिक धारा अविरल और अटूट है। चाहे कितने भी आक्रमण हों, चाहे कितनी भी चुनौतियाँ आएँ, भारत की आत्मा को पराजित नहीं किया जा सकता।
अंततः, अयोध्या की धर्म ध्वजा भारतीय अस्मिता का पुनरोदय है। यह उन लाखों बलिदानों का स्मारक है जिन्होंने संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित किया। आज जब यह ध्वजा अयोध्या में आकाश को स्पर्श करती है, तब वह केवल हवा में लहराती नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के हृदय में गर्व, आस्था और आत्मविश्वास की अग्नि प्रज्वलित करती है। यह ध्वजा हमें यह संदेश देती है कि सत्य अमर है, धर्म अजर है और भारत की आत्मा अविनाशी है। यही अयोध्या है, यही राम हैं, और यही भारत की अनश्वर सांस्कृतिक पहचान है।
महंत श्री धर्मेन्द्र दास


