हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के दो फाड़ होने के बाद भी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। बावजूद इसके कुछ संत समझौते के इच्छुक हैं। संमझौते की सुगबुगाहट के बीच भी गुपचुप तरीके से हमले जारी हैं और दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास भी किया जा रहा है। अपने को बहुमत के हिसाब से कमजोर देखते हुए दूसरे गुट को किस प्रकार से कमजोर किया जाए इसके प्रयास भी किए जा रहे हैं।
एकता का संदेश देने वाला संत समाज अब अपने ही अंदर विघटन का लेकर चर्चाओं में हैं। वहीं कुछ संत पद की लोलुपता के चलते इसे और बदनाम करने का कार्य कर रहे हैं। जबकि उन्हीं के गुट के कुछ संत समझौते की इच्छा रख रहे हैं। बावजूद इसके दूसरे को सामाजिक और राजनैतिक रूप से कमजोर करने की कोशिशें जारी हैं। अब संतों को भाजपा व कांग्रेस गुट में बांटने का प्रचार किया जाने लगा है। एक गुट दूसरे को कांग्रेसी और स्वंय को सबसे बड़ा भाजपा भक्त बनाते की कोशिश में जुटा हुआ है। जबकि वास्तविकता यह है कि कुछ को छोड़ दें तो संत किसी के नहीं होते। जैसे-जैसे सरकारें बदलती हैं वैसे-वैसे इनका ईमान और इनकी धारणा भी बदल जाती है। अब प्रदेश व केन्द्र में भाजपा की सरकार है तो एक गुट स्वंय को सबसे बड़ा भाजपा भक्त दर्शाने की कोशिश में लगा हुआ है और दूसरे गुट को कांग्रेस समर्थित बताकर राजनैतिक गलियारों मंे उन्हें कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। जबकि राजनेता भी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि कौन किस गुट का है। यह सब स्वार्थ की राजनीति है। अभी प्रयागराज कुंभ में करीब तीन वर्षांे का समय है। प्रयागराज कुंभ के नजदीक आते ही विवाद समाप्त हो जाएगा और मलाई खाने के लिए सभी एक भी हो जाएंगे।


अखाड़ा परिषद बना बवाल की जड़, राजनैतिक सोच में बांटने की हो रही कोशिश


