अखाडे़ की लीलाः मालिक बने नौकर और प्रबंधक बने मालिक

परम्पराओं को प्रतिदिन हो रहा ह्ासः मदन मोहन गिरि
हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के पूर्व मुख्तयार आम स्वामी मदन मोहन गिरि महाराज ने कहाकि अखाड़े की परम्परा अब पहले जैसी नहीं रही। उन्होंने कहाकि जो अखाड़े के मालिक है। उन्हें या तो नौकर बना दिया गया है। या फिर आवाज उठाने वाले को अखाड़े से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। उन्होंने कहाकि अखाड़े के महंत केवल प्रबंधक की भांति होते हैं। ये अखाड़़े के मालिक नहीं हैं। असली अखाड़े के मालिक अखाड़े में बनने वाले नागा संन्यासी होते हैं। उन्होंने कहाकि अखाड़े के कारोबारी की नियुक्ति नागा संन्यासी करते हैं। जो की अखाड़े की एक मढ़ी के प्रबंधक के रूप में होते हैं इनका कार्य मढ़ी का संचालन करता होता है, न की ये मालिक होते हैं। उन्होंने कहाकि अखाड़ा एक ही है जबकि 18 मढ़ियों के 18 महंत, जो प्रबंधक के रूप में कार्य करते हैं बनाया जाता है। इसमें छह साल के लिए एक महंत व एक कारोबारी बनाया जाता है। यदि इनका कार्य ठीक होता है। तो उन्हें महंत बना दिया जाता है। अखाड़े का चुनाव प्रत्येक छह वर्ष में इलाहाबाद में होता है। उन्होंने कहाकि वर्तमान में परम्पराओं को समाप्त कर मढ़ी के महंत अपने मतलब का व्यक्ति देखकर बनाने लगे हैं। स्वामी मदन मांेहन गिरि महाराज ने कहाकि नए साधुओं को इस बात का ज्ञान तक नहीं है कि अखाड़े का मालिक कौन होता है और न ही नए साधुओं को इस बारे में बताया जाता है। उन्होंने कहाकि अखाड़े में सबसे पहला अधिकार नागा साधुओं का होता है। वही आसनधारी बनते हैं। इसी कारण से अखाड़े का रजिस्ट्रेशन नागा गोसायींयान एक्ट 1804 के नाम से हैं। स्वामी मदन मोहन गिरि महाराज ने कहाकि नागा साधुओं को महंतों को हटाने का अधिकार है। यदि सभी नागा साधु इकट्ठा हो जाएं तो किसी को भी हटाने का उन्हें अधिकार है। उन्होंने कहाकि अखाड़े के वर्तमान में बने पदाधिकारी यह समझने लगे हैं की साधुओं को इस बात का ज्ञान नहीं है कि असली मालिक कौन है। इसी कारण ये अपनी मनमर्जी चलाने लगे हैं। उन्होंने कहाकि अखाड़े में शराब का निषेध था, किन्तु अब ये परम्परा भी टूट चुकी है। स्वामी मदन मोहन गिरि महाराज ने कहाकि अखाड़े में स्थानीय पंच व रमता पंच की परम्परा है दोनों ही अलग-अलग रहते थे। इसके साथ ही झुण्डी के पंच भी होते थे, आज उनके महंत भी बनाए जाते हैं। इनका कार्य धर्म प्रचार करना था। उन्होंने कहाकि अब धर्म प्रचार बंद कर दिया गया है। अब एक ही स्थान पर बैठकर ये पूजते हैं। उन्होंने कहाकि अखाड़े की परम्पराएं अब समाप्त होती जा रही है। जमात के महंत भ्रमण करते थे। अब जमात के महंत अखाड़ों में रहते हैं। जिसे यह चाहे रखते हैं और जिसे चाहे ये अखाड़े से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। उन्होंने कहाकि फिलहाल कुंभ मेले में व्यावस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाने वाले एक संत को मारपीट कर अखाड़े से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जबकि अखाड़े के नागा को बाहर करने का किसी को भी अधिकार नहीं हैं। उन्होंने कहाकि पूर्व में जो आचार्य मण्डलेश्वर या मण्डलेश्वर बनाए जाते थे वह आजीवन होते थे, किन्तु वर्तमान में आज बनाओ कल हटाओ वाला कार्य हो रहा है। उन्होंने कहाकि शराब कारोबारी सचिन दत्ता को भी मण्डलेश्वर बनाया और हटा दिया गया। जबकि उससे मोटा खर्च करवाया गया था। उन्होंने कहाकि जब अखाड़ों में इस प्रकार के लोगों को मण्डलेश्वर व संत बनाया जाएगा तो परम्पराओं का ह्ास होना ही है।

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