आक आयुर्वेद का जीवन

इसको मंदार’, आक, ‘अर्क’और अकौआ भी कहते हैं।

इसे हम शिवजी को चढाते है ; अर्थात ये ज़हरीला होता है . इसलिए इसे निश्चित मात्रामें वैद्य की देख रेख में लेना चाहिए ।

आक चार प्रकार के होते हैं।

  1. श्वेतार्क अर्थात् सफेद आक,
  2. रक्तार्क वा लाल आक,
  3. लाल आक का ही दूसरा प्रकार है जो उंचाई में सबसे छोटा और सबसे विषैला होता है ।
  4. पर्वतीय आक – यह पहाड़ी आक पौधे के रूप में नहीं, लता के रूप में होता है, जो उत्तर भारत में बहुत कम किन्तु महाराष्ट्र में पर्याप्त मात्रा में होता है ।

आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक कर अर्क निचोड कर कान में डालने से आधा शिर दर्द जाता रहता है। बहरापन दूर होता है। दाँतों और कान की पीडा शाँत हो जाती है।

आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है।

कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है।

पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है। तथा हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन कम हो जाती है।

कोमल पत्तों के धूँआ से बवासीर शाँत होती है।

आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है।

आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है।

दूध पीते बालक को माता अपनी दूध में देवे तथा मदार के फल की रूई रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है।

आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोवे फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाय 9 दिन में कुत्ते का विष शाँत हो जाता है। परंतु कुत्ता काटने के दिन से ही खावे।

आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है।

बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं। बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता। चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है।

जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं।

तलुओं पर लगाने से महिने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है।

आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लकवा सीधा हो जाता है।

आक की जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है।

जड़ के उपयोग
आक की जड छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शांत हो जाता है।

आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है। बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है।

आक की जड के चूर्ण में अदरक रस और काली मिर्च पिस कर मिलावे और रत्ती -रत्ती भर की गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी,हैजा रोग दूर होता है।

आक की जड की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खुजली अच्छी हो जाती है।

आक की सूखी डँडी लेकर उसे एक तरफ से जलावे और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धूँआ जोर से खींचे शिर का दर्द तुरंत अच्छा हो जाता है।

आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले तो बवासीर अच्छी हो जाती है।

आक की जड का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी) रोग अच्छा हो जाता है। उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिये। आक ही के काडे से घाव धोवे। आक की जड के लेप से बिगडा हुआ फोडा अच्छा हो जाता है।

आक की जड की चूर्ण 1 माशा तक ठण्डे पानी के साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता।

आक की जड का चूर्ण दही के साथ खाने से स्त्री के प्रदर रोग दूर होता है।

आक की जड का चूर्ण

1 तोला, पुराना गुड़ 4 तोला, दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से कफ की खाँसी अच्छी हो जाती है।

आक की जड पानी में घीस कर पिलाने से सर्प विष दूर होता है।

आक की जड का धूँआ पीने से आतशक (सुजाक) रोग ठीक हो जाता है। इसमें बेसन की रोटी और घी खाना चाहिये। और नमक छोड देना चाहिये।

आक की जड और पीपल की छाल का भस्म लगाने से नासूर अच्छा हो जाता है। आक की जड का चूर्ण का धूँआ पीकर उपर से बाद में दूध गुड पीने से श्वास बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।

आक का दातून करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं।

आक की जड का चूर्ण 1 माशा तक खाने से शरीर का शोथ (सूजन) अच्छा हो जाता है।

आक की जड 5 तोला, असगंध 5 तोला, बीजबंध 5 तोला, सबका चूर्ण कर गुलाब के जल में खरल कर सुखावे इस प्रकार 3 दिन गुलाब के अर्क में घोटे बाद में इसका 1 माशा चूर्ण शहद के साथ चाट कर उपर से दूध पीवे तो प्रमेह रोग जल्दीअच्छा हो जाता है।

आक की जड की काढे में सुहागा भिगो कर आग पर फुला ले मात्रा 1 रत्ती 4 रत्ती तक यह 1 सेर दूध को पचा देता है। जिनको दूध नहीं पचता वेइसे सेवन कर दूध खूब हजम कर सकते हैं।

आक की पत्ती और चौथाई सेंधा नमक एक में कूटकर हण्डी में रख कर कपरौटी आग में फूँक दे। बाद में निकाल कर चूर्ण कर शहद या पानी के साथ 1 माशा तक सेवन करने से खाँसी, दमा, प्लीहा रोग शाँत हो जाता है।

आक का दूध लगाने से ऊँगलियों का सडना दूर होता है।

अगर किसी को चलती गाडी में उलटी आती हो तो यात्रा पर निकलते समय जो स्वर चल रहा हो अर्थात जिस तरफकी श्वास ज़्यादा चल रही हो उस पैर के नीचे आक के पत्ते रखे . यात्रा के दौरान कोई तकलीफ नहीं होगी

आक के पीले पड़े पत्तों को घी में गर्म कर उसका रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है .

आक का दूध कभी भी सीधे आँखों पर नहीं लगाना चाहिए . अगर दाई आँख दुःख रही हो तो बाए पैर के नाख़ून और बाई आँख दुःख रही हो तो दाए पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दे.

रुई को आक के दूध और थोड़े से घी में भिगोकर दांत में रखने से दांतों का दर्द ठीकहो जाता है .

हिलते हुए दांत पर आक का दूध लगाकर आसानी से निकाला जा सकता है .

पीले पड़े आक के पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता है .

आक की कोपल को सुबह खाली पेट पान के पत्ते में रख चबा कर खाने से 3 से 5 दिनों में पीलिया ठीक हो जाता है .

सफ़ेद आक की छाया में सुखी जड़ को पीस कर 1-2 ग्राम की मात्रा गाय के दूध के साथ लेने से बाँझपन ठीक होता है . बंद ट्यूब और नाड़ियाँ खुल जाती है ; मासिक धर्म गर्भाशय की गांठों में लाभ होता है .

गठिया में आक के पत्तों को घी लगा कर तवे पर गर्म कर सेकें

आक की रुई को वस्त्रों में भर , रजाई तकिये में इस्तेमाल करने से वात रोगों में लाभ मिलता है .

कोई घाव अगर भर ना रहा हो तो आक की रुई उसमे भर दे और रोज़ बदल दे .

आक के दूध में सामान मात्रा में शहद मिला कर लगाने से दाद में लाभ होता है .आक की जड़ के चूर्ण को दही में मिलाकर लगाना भी दादमेंलाभकारी होता है.

आक के पुष्प तोड़ने पर जो दूध निकलता है उसे नारियल तेल में मिलाकर लगाने से खाज दूर होती है .इसके दूध को कडवे तेल में मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है .

इसके पत्तों को सुखाकर उसकी पाउडर जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर हो कर स्वस्थ मांस पैदाहोता है .

आक की मिटटी की टिकिया कीड़े पड़े हुए जख्मों पर बाँधने से कीड़े टिकिया पर आ कर मर जाते है और जख्म धीरे धीरे ठीक हो जाता है .

आक के दूध के शहद के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग ठीक होता है .आक के पुष्पों का चूर्ण भी इसमें लाभकारी है .

पेट में दर्द होने पर आक के पत्तों पर घी लगा कर गर्म कर सेके

स्थावर विष पर 2-3 ग्राम आक की जड़ को घिस कर दिन में 3-4 बार पिलाए .आक की लकड़ी का 6 ग्राम कोयला मिश्री के साथ लेने से शरीर में जमा पारा भी पेशाब के रास्ते निकल जाताहै .

आक और भी कई रोगों का इलाज करता है पर ये सभी योग वैद्य की सलाह से ही लेने चाहिए .
Dr.(Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar
aapdeepak.hdr@gmail.com
9897902760

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