एक समय था जब चेले बिना किसी लालच के गुरु की सेवा में समर्पित हुआ करते थे। वहीं गुरु भी शिष्य की परीक्षा लेकर ही उसे चेला बनाते थे। किन्तु वर्तमान में स्थिति एकदम विपरीत है। आज गुरु चेला मिलते ही उसे अपना लेता है और आज का चेला गुरु की सम्पत्ति देखकर उसे अपना गुरु धारण करता है। यही कारण है कि गुरु-शिष्य परम्परा में गिरावट देखने को मिल रही है।
वर्तमान में श्री पंच अग्नि अखाड़े को ही ले लें तो यहां के श्रीमहंत सभापति गोपालानंद बापू की अपनी एक प्रतिष्ठा थी। अरबों की अकूत सपत्ति के वे स्वामी थे। जीवित रहते हुए भी उनका सही से इलाज ना होने के कारण उनका जीवन समाप्त हो गया और मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार भी किसी साधारण व्यक्ति की भांति हुआ। गोपालानंद बापू की अंतिम संमय में दुर्दशा पर उनके शिष्य रहे स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने उस समय भी अपना आक्रोश व्यक्त किया था। गोपालानंद बापू की मृत्यु के बाद बिलखा जूनागढ़ रेलवे स्टेशन के समीप चौराहे पर 15 जून 2021 को उनकी मूर्ति स्थापित की गयी। मूर्ति बिना हाथ-पैर वाली सनातन परम्परा के विरूद्ध स्थापित की गयी। जिस पर स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने आपत्ति जतायी थी। स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने बताया कि मूर्ति तो स्थापित कर दी गयी, किन्तु मूर्ति के स्थापित कर दिए जाने के बाद से उसकी दुर्दशा जारी है। मूर्ति जहां धूल फांक रही है वहीं गुरु की सम्पत्ति पर चेले मौज मार रहे हैंं। उन्होंने बताया कि मूर्ति स्थापना के समय जो माला गोपालानंद बापू को पहनायी गयीं थी, वहीं मालाएं आज तक उनके गले में पड़ी हैं और मूर्ति पर धूल जमी हुई है। सम्पत्ति पर मजे लूटने वालों ने अब बापू की ओर से मुंह फेर लिया है। उन्होंने कहाकि कुछ शिष्य ऐसे हैं जो समपत्ति और ऐशोआराम के लिए सभापति की चरणवंदना करने में लगे हुए हैं। मौत के साथ ही उन्होंने गुरु को बिसरा दिया है।

चेले लूट रहे माल, गुरु धुल रहे फांक


