हरिद्वार। अखाड़ा परिषद के दो फाड़ होते ही संतों के बीच तलख्यिां भी बढ़ गयी हैं। मौका पाते ही एक गुट दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहता। जिसकी परिणति यह हो रही है कि खुद संतों को अपना मुंह छुपाना पड़ रहा है। साथ ही समाज में बेइज्जती का पात्र भी बनना पड़ रहा है। यह आलम तब है जब दूसरों को यह प्रेम और त्याग का उपदेश देते नहीं थकते। जबकि स्वंय की दाल जूतों में बांटने के लिए तैयार रहते हैं।
सभी जानते हैं कि श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल का विवाद लम्बे अर्से से चल रहा है। निर्मल अखाड़े से निष्कासति संत अखाड़े पर कई बार कब्जे की कोशिश कर चुके हैं। और यह प्रयास अभी भी जारी है। अखाड़ा परिषद के दो फाड़ होने से पूर्व निर्मल अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज जो कि सच्चे संत थे और उन्हीं का अखाड़े पर अधिकार होने का समर्थन किया जाता था, वहीं भगवाधारी अब श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज के विरोध में उतर आए हैं। बता दें कि बीते दिनों संतों का एक जत्था देहरादून जाकर प्रदेश के एक बड़े नेता से मिला और निर्मल अखाड़े पर कब्जा करने का प्रयास कर चुके दूसरे गुट के समर्थन में उन्होंने सिफारिश की। जबकि वह गुट अभी तक फर्जी हुआ करता था। निर्मल अखाड़े के विरोध में जाकर एक प्रतिष्ठित संत द्वारा दूसरे गुट के समर्थन में आना और श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज का विरोध करने की भनक हरिद्वार के कुछ संतों को लग गयी। सूत्र बताते हैं कि इस बात का पता चलने पर प्रतिष्ठित संत को संतों ने जमकर लताड़ लगायी। जिससे संत की जुबान बंद हो गयी।
स्थिति यह है कि स्वंय की स्वार्थ सिद्धि के लिए अब स्वंय भगवाधारी भगवाधारी के विरोध में उतर आएं हैं। भगवाधारण करने के बाद भी चुगलखोरी की आदत नहीं जा रही है। जिस कारण से आने वाले समय में भगवाधारियों के बीच और अधिक छिछालेदारी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था।

गजबः भगवाधारण करने के बाद भी चुगलखोरी की आदत, कल तक जो असली थे आज हो गए नकली!


