हरिद्वार। इन दिनों तीर्थनगरी में कथित पत्रकारों का आतंक छाया हुआ है। इन कथित पत्रकारों से समाज का हर वर्ग परेशान है। खासकर भवन निर्माण करने वाले, भण्डारा करने वाले बाबा, अधिकारी व कुछ व्यापारी वर्ग के लोग।
आलम यह है कि जिस आश्रम या अखाड़े से खुशबू आयी बस फिर क्या, पहुंच गयी कथित पत्रकारों की लम्बी फौज। जिस अधिकारी ने इनकी नहीं सुनी उसके खिलाफ खोल दिया मोर्चा। इतना ही नहीं जहां कहीं घर के आगे रेत-बजरी दिखायी दिया वहां किन्नरांे की तरह मांगने पहुंच जाते हैं। यदि नहीं दिया तो प्राधिकरण में शिकायत और सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करना इनका शुरू हो जाता है। परेशान होकर व्यक्ति सोचता है कि कुछ देकर ही पीछा छुड़वा लिया जाए। भण्डारों का भी ऐसा ही हाल है। मना करने के बाद भी आश्रमों में फौज का पहुंचना और फिर लिफाफे लिए दबाव बनाना इनकी फितरत हो गयी है। जब तक लिफाफा नहीं मिलता मजाल है कि वह वहां से टस से मस तक हो जाएं।
गत सप्ताह तो गजब ही हो गया। बताते हैं कि भूपतवाला स्थित अयोध्या धाम के पास एक आश्रम में संत ने भण्डारे का आयोजन किया। वहां बिना बुलाए दर्जनों कथित पत्रकार फूंकनी उठाए चल दिए। भण्डारे में लिफाफे के साथ कंबल वितरण भी हो रहा था। फिर क्या था कंबल और लिफाफे के लिए इन्होंने छीना झपटी शुरू कर दी। संत के बार-बार यह कहने की हमने तो आपको आमंत्रित किया ही नहीं। बावजूद इसके इनकी छीना झपटी जारी रही। थक हारकर वहां मौजूद पुलिस को बुलाकर संत ने आतंकी पत्रकारों से अपना पीछा छुड़ाया।
इतना ही नहीं लिफाफे और गिफ्ट के लिए आपस में मारपीट के कई प्रकरण भी सामने आ चुके हैं। चौकी में दो कथित पत्रकारों में गुत्थम-गुत्था हो गयी। एक ने दूसरे के सिर पर हेलमेट से वार किए। बामुश्किल लोगों ने बीच-बचाव किया। प्रेमनगर आश्रम में दो दिन पूर्व आपस में गुत्थम-गुत्था होने का वीडियो भी वायरल हो रहा है। प्रेमनगर आश्रम में झगड़ने के बाद रानीपुर मोड़ पर फिर से आपस में उलझ गए। लिफाफे और गिफ्ट के लिए ऐसे झगड़ते हैं जैसा की आए दिन यात्रियों के साथ हरकी पैड़ी पर भिखारियों के द्वारा किया जाता है।
इस सबके बाद आश्रम में उत्पात मचाने और शहरवासियों को परेशान करने के मामले का संज्ञान लेते हुए जिला प्रेस क्लब अध्यक्ष को बैठक बुलानी पड़ी और नौ कथित पत्रकारों को यूनियन से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा।
हालांकि जिन कथित पत्रकारों के कारनामों से जनता और संत परेशान हैं, वास्तव में पत्रकारिता से उनका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है। सुबह उठते ही इनका एक टारगेट होता है कि किस आश्रम में जाकर भण्डारा खाना है और कोई मुर्गा फंस गया तो उससे कैसे वसूली करनी है। कई तो ऐसे हैं, जिनका पढ़ाई लिखायी से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। मजेदार बात यह की जिनको पत्रकारिता का क, ख, ग तक नहीं मालूम उन्होंने भी कमीशन पर चेले रखे हुए हैं। जिस कारण से वास्तविकता में पत्रकारिता करने वालों की ऐेसे लोगों के कारण छवि खराब हो रही है। ऐसे में पुलिस और प्रशासन तथा वास्तव में पत्रकारिता करने वालों को इस पर विचार करने की जरूरत है। कारण की इनके कारनामों से पत्रकारिता को कलंकित करने का कार्य किया जा रहा है।


