हरिद्वार। इन दिनों संतों का वैवाहिक समारोह में जाना और फिर उसका प्रचार करना एक रिवाज बन गया है। कुछ संत खासकर दशनामी संन्यासी विवाह समारोह मंे बड़ी तैयारियों के साथ देखे जा सकते हैं। खासकर धनाढ्य वर्ग की शादी का तो ये खुलकर प्रचार-प्रसार भी सोशल मीडिया के माध्यम से करते नहीं थकते। कारण की यह बाबाओं के प्रचार का एक माध्यम और लोगों में अपनी धाक जमाने जैसा है। विवाह समारोह में जाना कोई गलत नहीं है। किन्तु बड़ा सवाल यह कि क्या एक संन्यासी को विवाह समारोह में जाने की शास्त्र अनुमति देता है, तो इसका सीधा सा जवाब है की नहीं।
संन्यासी के लिए विवाह समारोह क्या किसी भी गृहस्थ के यहां शुभ कार्य में जाने का निषेध बताया गया है। संन्यासी को जिंदा प्रेत कहा जाता है। कारण की संन्यासी संन्यास धारण करते समय अपना और अपने परिजनों का पिण्डदान कर देता है। इस कारण से उसे जीवित प्रेत कहा जाता है। इतना ही नहीं सन्यासी का स्पर्श होने पर स्नान करने का भी विधान बताया गया है। यही कारण है कि संन्यासी को सिले हुए वस्त्र धारण करना भी निषेध बताया गया है, किन्तु वर्तमान में यह नियम कम ही संन्यासी पालन करते हैं। किन्तु आज भी बड़ी संख्या में दशनामी किसी भी विवाह समारोह आदि में नहीं जाते, किन्तु कुछ ऐसे हैं कि वह धनाढ्य वर्ग की शादी के इंतजार में ही रहते हैं। जरा सा बुलावा आया की संत जी लिपायी पुताई कराकर हो गए तैयार। और इनका विवाह में चेलों से अपने फोटो शूट कराने का सेशन अलग से चलता है। फिर सोशल मीडिया पर उसे प्रचारित-प्रसारित किया जाता है। समारोह में बुलाने पर संत जी एकाएक उस परिवार के गुरु भी बन जाते हैं। मजेदार बात तो यह कि कुछ तीर्थनगरी में ऐसे भी हैं, जो निमंत्रण कहकर मंगवाते हैं।
वहीं शास्त्र के अनुसार संन्यासी के कक्ष में काष्ट की स्त्री का होना भी निषेध है। मगर कुछ भगवाधारी ऐसे हैं जो स्त्रियों के कंधे पर हाथ रखकर फोटो सेशन करवाते हैं और फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करते हैं। इनमें दो-चार ही प्रमुख हैं, जिनको ख्याति की लालसा है।
शुभ कार्यों में शास्त्रों ने संन्यासी के जाने को निषेध बताया है। इसके साथ ही कर्म काण्ड करना और भागवत कथा आदि व्यासपीठ पर करने का भी निषेध बताया गया है। मगर आज तो व्यासपीठ पर अधिकाशं संन्यासी दिखायी देते हैं। इतना ही नहीं अब तो पूजन भी संन्यासी करवाने लगे हैं, जैसा की प्रयागराज कुंभ में एक संन्यासी द्वारा एक बड़े परिवार के लोगों का पूजन करवाया गया। यह नियम बैरागी, उदासी और अन्य सम्प्रदायों पर सख्तायी से लागू नहीं होता। कारण की उनका दीक्षा के समय पिण्डदान नहीं होता, किन्तु संन्यासी के लिए बिल्कुल निषेध बताया गया है।


