हरिद्वार। बाघम्बरी गद्दी समेत हरिद्वार में अखाड़े की जमीनों को बेचने को लेकर अखाड़े और नरेन्द्र गिरि के बीच खासे मतभेद उभर आए थे। इसी के साथ प्रापर्टी डीलरों ने भी जमीन की रजिस्ट्री करने या फिर रकम वापस करने का दवाब बनाया हुआ था। वहीं आनन्द गिरि द्वारा भी नरेन्द्र गिरि के खिलाफ मोर्चा खोल दिए जाने से नरेन्द्र गिरि काफी आहत थे।
अखाड़े के सूत्रों के मुताबिक हरिद्वार में अखाड़े की कई जमीनों को बेचने के लिए नरेन्द्र गिरि ने कई लोगों से पेशगी ली हुई थी। जिसकी भनक अखाड़े के संतों को लगी। जमीन को खुर्दबुर्द किए जाने को लेकर नरेन्द्र गिरि और अखाड़े के बीच विवाद बढ़ता गया। सूत्र बताते हैं कि इसी को लेकर अखाड़े में बैठक बुलायी गयी थी, किन्तु किन्हीं कारणों से बैठक स्थगित हो गयी। सूत्र बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन अखाड़े में बैठक होनी थी और उसमें नरेन्द्र गिरि को अखाड़े से वहिष्कृत किए जाने का फरमान सुनाया जाना था। सूत्र बताते हैं कि वहिष्कृत किए जाने की भनक नरेन्द्र गिरि को भी लग गयी थी। इसी दौरान गुरु पूर्णिमा ने पूर्व अखाड़े के दो संतों का उज्जैन व उदयपुर में निधन हो गया। जिस कारण से बैठक को एक बार फिर से स्थगित करना पड़ा और नरेन्द्र गिरि वहिष्कृत किए जाने के अपमान से बच गए। इसी दौरान नरेन्द्र गिरि के शिष्य आनन्द गिरि और नरेन्द्र गिरि के बीच विवाद जग जाहिर हो गया। सूत्र बताते हैं कि अखाड़े से वहिष्कृत किए जाने, शिष्य के द्वारा कई गंभीर आरोप लगाने और जमीन न दे पाने पर प्रापर्टी डीलरों को रकम वापस करने संबंधी कई दवाब नरेन्द्र गिरि पर थे। जिसमें सबसे अधिक खतरा अखाड़े से वहिष्कृत किए जाने का था। सूत्र बताते हैं कि यदि ऐसा होता तो अखाड़ा परिषद अध्यक्ष का पद भी हाथ से जाता और अखाड़े में रहते बनी हुई प्रतिष्ठा भी तार-तार हो जाती। बहरहाल मामला सीबीआई जांच के दायरे में है।


नरेन्द्र गिरि को गुरु पूर्णिमा पर अखाड़े ने निकालने की थी तैयारी!


