एक ही सम्प्रदाय के प्रमुख पदाधिकारियों वाली अखाड़ा परिषद मान्य नहीं
अखाड़ा परिषद किसी की बपौती नहीं, अटल, आवाह्न, अग्नि, आनन्द, निर्मल, उदासी को सम्मान क्यों नहीं
हरिद्वार। आवाह्न अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने अखाड़ों के बीच चल रही रस्साकशी पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने प्रयागराज कुम्भ मेला 2025 को भव्य और दिव्य बनाने वाली अखाड़ा परिषद को पहले अपने आचार-विचार को सुधारने की नसीहत दी है।

श्रीमहंत गोपाल गिरि ने कहाकि नकली व चन्द वहिष्कृत साधुओं को मिलाकर परिषद बनाकर हांे-हल्ला करना उचित नहीं है। अखाड़ा परिषद तभी मान्य हांे सकती है, जबकि दोनों पक्षों संन्यासी और वैष्णव से अध्यक्ष व मन्त्री नहीं होते। उन्होंने कहाकि अखाड़ा परिषद में दोनों मुख्य पदों पर न तो सन्यासी हो सकते हैं ना बैरागी। अध्यक्ष सन्यासी होगा तो मन्त्री बैरागी, उदासी, व निर्मल सम्प्रदाय से होना चाहिए।
श्रीमहंत गोपाल गिरि ने कहाकि 16 वर्ष तक निरंजनी अखाड़े के श्रीमंहत शंकर भारती अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे। सन् 2004 से 17 तक वैष्णव अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञान दास और जूना अखाड़ा। वर्ष 20 17 से फिर निरंजनी और जूना अखाड़े के साधु अध्यक्ष और महामंत्री बन बैठे। क्या अखाड़ा परिषद किसी की बपौती है, जो अखाड़े अपना वर्चस्व बनाने के लिए पदों से चिपके रहना चाहते हैं। उन्होंने कहाकि अखाड़ा परिषद में सर्वप्रथम स्थापित आवाहन, अटल, अग्नि व आनन्द को क्यों अछूत समझा जाता है। क्या ये अखाड़े केवल वोट देने और समर्थन के लिए ही इस्तेमाल करने के लिए है। इनको अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष व महामंत्री जैसे पद पर क्यों नहीं आने दिया जाता। श्रीमहंत गोपाल गिरि ने कहाकि क्या इन अखाड़ांे मंे कोई पड़ा लिखा नहीं है। ऐसे व्यक्ति को अखाड़ा परिषद में पद दिया जाना चाहिए, जो लोभी, कपटी चालबाज ना हो और समदृष्टा हो, तभी अखाड़ा परिषद का महत्व हो सकता है।
श्रीमहंत गोपाल गिरि ने कहाकि वर्ष 2003 में जूना अखाड़े में एक बैठक का आयोजन किया गया था। जिसमें निरंजनी और वैष्णव अखाड़े बैठक का वहिष्कार कर बाहर चल गए थे। जिसके बाद गोविन्दानंद ब्रह्मचारी महाराज की अध्यक्षता में बैठक हुई थी और उसी बैठक में संन्यासी परिषद का गठन किया गया था। बैठक में गोविन्दानंद ब्रह्मचारी महाराज ने यह प्रस्ताव पारित किया था कि इस परिषद में किसी भी अखाड़े का कोई भी बड़ा पदाधिकारी पदाधिकारी नहीं बन सकता। कारण की परिषद एक छोटी संस्था है, जबकि अखाड़ा एक बड़ी संस्था। ऐसे में छोटी संस्था में बड़ी संस्था के पदाधिकारी बनना सम्मानजनक नहीं हो सकता। प्रस्ताव पारित होने के दौरान बैठक में उस समय जूना अखाड़े के श्रीमहंत कर्ण पुरी महाराज, विनोद गिरि ऊर्फ हनुमान बाबा, श्रीमहंत शिवशंकर गिरि, गोविन्दानंद ब्रह्मचारी, श्रीमहंत गोपाल गिरि, सागर गिरि आदि मौजद थे।
वहीं जिस प्रकार से आज परिषद में संख्या बल को लेकर मारामारी देखने को मिल रही है और हर कोई परिषद का अध्यक्ष बनना चाहता है, चाहे उसने संख्या बल बढ़ाने के लिए फर्जी और वहिष्कृत लोगों का समर्थन लिया हो। केवल मकसद एक ही है कि येन-केन-प्रकारेण अध्यक्ष पद बना रहे। वहीं परिषद के इस खेल में बिगाड़ करने में संतों की केकई का सबसे बड़ा योगदान है।
वहीं जिस समय श्रीमहंत शंकर भारती की अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हुई थी। उस समय शंकर भारती का पदाधिकारी बनने की लिस्ट में दूर-दूर तक कोई नाम नहीं था। बैठक कनखल स्थित श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी में तत्कालीन श्रीमहंत व सचिव गिरधर नारायण पुरी महाराज की अध्यक्षता में हुई थी। बैठक में मौजूद सभी संतों ने एक स्वर से गिरधर नारायण पुरी महाराज को परिषद का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा। इस पर गिरधर नारायण पुरी महाराज खड़े हुए और उन्होंने श्रीमहंत शंकर भारती महाराज के गले में माला डालते हुए कहाकि आज से आप परिषद के अध्य़क्ष हैं। अब हमारी उम्र कोई पदाधिकारी बनने की नहीं है। इस तरह शंकर भारती अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बने थे और आज स्थिति क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है। आज के संतों को गिरिधर नारायण पुरी महाराज जैसे संतों से शिक्षा लेने की जरूरत है।


