सत्ता की राजनीति से खतरनाक है धर्म की राजनीति

सरकारों को ऊंगली के इशारे पर नचाते हैं भगवाधारी
एक दशक बाद भद्र भगवाधारियों को पड़ सकते हैं रोटी के लाले
हरिद्वार।
सत्ता पाने की राजनीति को सबसे खतरनाक माना जाता है। सत्ता पाने के लिए राजनेता क्या नहीं कर गुजरते। क्या आप जानते हैं कि सत्ता की राजनीति से धर्म की राजनीति अधिक खतरनाक है। इसके बारे में हम आपको बताते हैं।
एक समय था जब धर्म सत्ता के अनुसार राज सत्ता चला करती थी। आज भी राज सत्ता धर्म सत्ता के हिसाब से ही चल रही है, किन्तु उसके स्वरूप में अंतर आ गया है। आज धर्म के कथित ठेकेदार अपने फायदे के लिए राज सत्ता का इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि भगवाधारी आज राज नेताओं को अपनी ऊंगलियों पर नचाते हैं और राजनेता नाचते भी हैं। इसी कारण से धर्म सत्ता में विकृति आ गयी है। पूर्व में धर्म की सत्ता पर अधिकार भद्र पुरूषों का हुआ करता था, किन्तु आज भगवे की आड़ लेकर कथित व्यापारी, गुंडे और दलालों का कब्जा हो चुका है। जिस हिसाब से धर्म सत्ता में कुछ मुट्ठी भर लोगों के कारण विकृति आयी है उसके कारण आने वाले एक दशक में भद्र भगवाधारियों को रोटी के भी लाले पड़ जाएंगे। जबकि भगवे की आड़ लिए कथित असमाजिक तत्व मजे लुटेंगे।
कभी सनातन धर्म की उन्नति के लिए राजा-महाराजाओं ने अकूत सम्पत्ति भगवाधारियों को दान में दी थी। आज उस सम्पत्ति का कैसे दुरूपयोग किया जा रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। आज धर्म की भूमि पर कड़ी-बड़ी इमारतें बन चुकी हैं। कथित भगवाधारी आज रियल स्टेट, प्रापर्टी डीलर, अधिकारियों के ट्रांसफर, नेताओं के लिए लाइजिंग, ट्रेवल्स के व्यवसाय में उतरे हुए हैं। साथ ही धोखाधड़ी, सम्पत्तियों पर कब्जे करना इनकी नियति बन चुकी है। बात यदि तीर्थनगरी हरिद्वार की करें तो दर्जनों ऐसे मामले हैं जहां कमजोर की सम्पत्ति को दबंग भगवाधारियों ने कब्जा किया हुआ है। अधिकारियों के तबादले के बदले मोटी रकम लेने वालों की भी यहां कमी नहीं है। यही कारण है कि राजनेता इनकी चरण वंदना करते देखे जा सकते हैं और भगवाधारी राजनेताओं की चरण वंदना करते हुए। इतना ही नहींे अपने स्वार्थ के लिए ये किसी को भी फर्जी और किसी को भी असली भगवाधारी बताने में भी पीछे नहीं हटते। यही कारण है कि हरिद्वार में दर्जन भर से अधिक भगवाधारियों की हत्या और अपहरण के मामले समाने आ चुके हैं। जबकि आम व सच्चे भगवाधारी को कोई पूछने वाला नहीं है। विचारणीय है कि कथित भगवाधारी दिन भर इन व्यावसायों में उलझे रहते हैं। कुछ समय अदालती कार्यवाही में खर्च हो जाता है। ऐसे में जिस उद्देश्य के लिए इन्होंने भगवा धारण किया वे किस समय करते होंगे। यही कारण है कि भगवा के प्रति आस्था रखने वालों की संख्या में कमी आयी है। और आने वाला समय भद्र भगवाधारियों के लिए मुसीबतों भरा होगा। स्थिति ऐसी हो सकती है कि उन्हें दो जून की रोटी के भी लाले पड़ सकते हैं।

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