निष्कासित आनन्द गिरि को अध्यक्ष बनाना संतों की अखाड़ों के खिलाफ मुखीलफतः रूद्रानंद

हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि के शिष्य स्वामी आनन्द गिरि को अखाड़े से निष्कासित किए जाने के बाद भी उनकी छवि कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। इसी के चलते रविवार को उन्हें युवा भारत साधु समाज का अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत कर दिया गया। जिसमें बैरागी संतों व बैरागियों से जुड़े अन्य मतों के संतों के अतिरिक्त उदासीन, निर्मल सम्प्रदाय के संत मौजूद रहे। इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि सन्यासियों के अलावा अन्य संत निरंजनी अखाड़े और अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोले चुके हैं। आनन्द गिरि को युवा भारत साधु समाज का अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत करने से अखाड़े व आनन्द गिरि के गुरु की संत समाज में छवि कमजोर हुई है। बड़ी संख्या में संतों का आनन्द गिरि के पक्ष में खड़ा होना उनके द्वारा अपने गुरु पर लगाए गए तमाम आरोेपों को बल देता है। वहीं इस बात का भी इशारा है कि संत समाज खुलकर उनके साथ है। इसके अलावा मनोनीत होने से एक दिन पूर्व आनन्द गिरि की माता की श्रद्धांजलि सभा में जूना अखाड़े के महामण्डलेश्वर की उपस्थिति भी इस ओर इशारा करती हैं।
स्वामी आनन्द गिरि को युवा भारत साधु समाज का अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत करने पर स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने प्रेस को जारी बयान में कहाकि जब एक अखाड़े द्वारा एक संत को निष्कासित कर दिया गया है, तो अन्य संतों का उसे समर्थन देना कहीं न कहीं अखाड़े की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान है। उन्होंने कहाकि अखाड़े से निष्कासन का अर्थ आम बोलचाल की भाषा में समाज से हुक्का-पानी बंद होना है। बावजूद इसके ऐसे व्यक्ति को अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत बनाया जाना संतों में फूट को दर्शाता है। उन्होंने कहाकि आनन्द गिरि के मनोनीत होने से यह स्पष्ट हो चुका है कि अखाड़ों के खिलाफ अब लोग इनकी कारगुजारियों के कारण परेशान हो गए हैं और वे खुलकर इनकी मुखालफ पर उतर आए हैं। उन्होंने कहाकि पहले भारत साधु समाज के नाम से एक संस्था थी अब दूसरी संस्था बनाकर लोगों को दो तरफ से लुटने का काम शुरू किया जा चुका है।

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