ऋषि-महर्षियों की परंपरा है देहदानः डॉ.दीपा

केयर कालेज से देहदान जागरूकता अभियान का प्रारम्भ

हरिद्वार। मुस्कान फाउंडेशन ट्रस्ट ने हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट के सहयोग से केयर कालेज ऑफ नर्सिंग में देह दान के सम्बंध में नर्सिंग के छात्र-छात्राओं को जागरूक किया।


इस मौके पर हिमालनय हॉस्पिटल की डिप्टमेंट ऑफ एनाटोमी एचओडी डॉ. दीपा सिंह ने देहदान जागरूक अभियान की जानकारी दी। प्रोफेसर डॉ. अक्षय दुबे ने बताया कि देहदान को लेकर समाज मे तरह-तरह की मिथ्याएं चली आ रही हैं। जिस कारण लोगो में देहदान को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। उन्होंने बताया कि सनातन परम्परा में दान का बहुत महत्व है। जीवनभर इंसान अपने मोक्ष के लिए कई तरह के दानपुण्य करता है। सभी दान जीते जी तो किये जा सकते हैं, लेकिन मरने के बाद अपने शरीर का दान देकर पाप-पुण्य के फेर से निकल सकते है।


उन्होंने बताया कि देहदान के उपरन्त भी सभी समाजिक संस्कार किये जाते है। देहदान का सबसे बड़ा उदाहरण तो महर्षि दधीचि है। उन्होंने देवताओं के लिए अपने शरीर को दान दे दिया। दुर्घटनाओं व देश की सरहदों पर शहीद होने वाले जवानों का सांकेतिक रूप में संस्कार किया जाता है। इसी प्रकार देहदान के बाद भी सभी संस्कार परिवार द्वारा किये जाते हैं। उन्होंने बताया कि देहदान से कई लोगों को जिंदगियां मिल सकती हैं। इसलिए समाज में देहदान के प्रति जागरूक होना पड़ेगा।
मुस्कान फाउंडेशन की संस्थापिका नेहा मलिक ने बताया कि हम रक्त दान, नेत्र दान व देह दान के लिए लोगों को जागरूक करते हैं। उन्होंने कहा कि यह पंच तत्व से बना शरीर मृत्यु होने पर मिट्टी में मिल जाना है। इससे अच्छा है हम जीते जी यह संकल्प लें की हमारी मृत्यु के बाद भी कई जिंदगियां हमारे दान दिए गए अंगों से दुनिया देख सके। उन्होंने कहा कि रक्त दान की उपयोगिता आज युवा वर्ग समझ रहा है। युवाओं में रक्त दान के प्रति जागरूकता आई है। 18 वर्ष के बाद कोई भी स्वस्थ्य युवा वर्ष में तीन बार रक्त दान कर सकता है। उन्होंने कहा कि हम इस संकल्प से जीये की जीते जी रक्तदान,जाते जाते नेत्रदान, जाने के बाद देहदान। एमबीबीएस की छात्रा विनस गोयल व आदित्य तोमर ने देहदान के उपरन्त होने वाली प्रकिया की जानकारी दी।
केयर कालेज आने पर एमडी राजकुमार शर्मा व डायरेक्टर प्रीतशिखा शर्मा ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर डॉ जोत्सना मल्होत्रा, रेणु अरोड़ा,सिमरन बंगा, सरोज चौहान आदि मुख्य थे।

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