सनातन के भक्षकः यहां चेली वाले भी हैं शंकराचार्य

हरिद्वार। सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सर्वोच्च पद है। शंकराचार्य की चारों पीठों की स्थापना आदि गुरु भगवान शंकराचार्य ने धर्म रक्षा के लिए की थी, इसके साथ पीठ पर विराजमान होने वाले शंकराचार्यों की नियुक्ति के लिए नियम व उपनियम बनाए थे। इन नियमों व उपनियमांे का पालन करने वाले व शास्त्रार्थ में विजयी होने वाले को ही शंकराचार्य पीठ पर बैठने का अधिकारी कहा गया है। इन नियमों में शंकराचार्य बनने के लिए आवश्यक है कि वह व्यक्ति बाल ब्रह्मचारी हो, वेद-वेदांत व शास्त्रों को ज्ञाता, भाष्यकार, जन्मना ब्राह्मण, अंग भंग ना हो आदि नियम प्रतिपादित किए थे।


आज शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित नियमों पर कितना अमल किया जा रहा है? यह सर्वविदित है। हालात यह है कि देश भर में आज करीब 8 दर्ज से अधिक शंकराचार्य कुकुरमुत्तों की भांति गली-गली में बने हुए हैं। साथ ही इनमें से अधिकांश कथित शंकराचार्यों की विचारधारा राजनीति के कुछ दल विशेषों से प्रभावित होती है। जबकि शंकराचार्य किसी विचारधारा का नहीं सर्वसमाज का होता है। पूर्व में समाज में उत्पन्न हुए विवाद का समाधान संत किया करते थे। संतों की शंका का समाधान शंकराचार्याें के द्वारा किया जाता था, किन्तु आज शंकराचार्य पीठ को ही विवादित बना दिया गया है। कोई वसीयत के आधार पर अपने को शंकराचार्य बना बैठा है तो किसी ने अपनी अलग पीठ ही बना डाली है। इस पर ना तो संत और ना ही सनातन धर्मावलम्बी कुछ बोलने को तैयार हैं।


यदि बात हाल ही में ज्योतिष पीठ पर घोषित हुए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरांनद महाराज की करें तो हालात यह है कि इनके शंकराचार्यं बनने के समर्थन और विरोध में संत उतर आए हैं। अखाड़ा परिषद का एक गुट जहां अविमुक्तेश्वरांनद महाराज को शंकराचार्य स्वीकार ना करने की बात कह चुका है तो वहीं दूसरे गुट के प्रवक्ता ने शंकराचार्य की नियुक्ति को अपना समर्थन दिया है। हालांकि विरोध करना भी राजनैतिक दवाब व अपने कृत्यों पर पर्दा डालने का एक प्रयास हो सकता है।


हालांकि विरोध और समर्थन का सिलसिला शुरू हो गया है। किन्तु भगवाधारण कर अय्याशी करने वालों और महिला प्रेमियांे का विरोध आज तक किसी ने नहीं किया। जबकि संत का चरित्र पाक साफ होना चाहिए। शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर अपने-अपने तर्क दिए जा रहे हैं। इस बात का सभी समर्थन करते हैं कि शंकराचार्य पद पर बैठने वाले व्यक्ति का बाल ब्रह्मारी होना अनिवार्य है। सूत्र बताते हैं कि शंकराचार्य बने कुछ भगवाधारी ऐसे भी हैं जिन्होंने चेली बनायी हुई हैं। स्वंय को शंकराचार्य बताने वाले एक दण्डधारण करने वाले की काफी समय से विशेष चेली है। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि चेली का नाम हिन्दी वर्णमाला के (न) शब्द से शुरू होता है। ऐसे दण्डधारण करने वाला कोई एक नहीं कई हैं, किन्तु सभी अपने को शंकराचार्य बताकर पूजा-अर्चना करवाने में अग्रणी हैं। ऐसे में तरस उन भगवाधारण करने वालों पर आता है जो सनातन की रक्षा की बात तो मंचों से करते हैं, किन्तु ऐसे कालनेमियों के खिलाफ जो सनातन को पतन की ओर ले जाने का कार्य कर रहे हैं उनके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत तक नहीं करते।

इतना ही नहीं कुछ संत तो ऐसे भी हैं जो यह तय नहीं कर पाए कि उनके अखाडे़ का एक साधु मण्डलेश्वर है या फिर शंकराचार्य। कारण कि विगत एक एक समारोह के कार्ड में पहले उन्होंने संत को महामण्डलेश्वर लिखा बाद में संत के विरोध के बाद उसे शंकराचार्य लिख दिया। ऐसे में सही और गलत की उम्मीद किससे की जा सकती है। जब स्वंय को सनातन के रक्षक कहने वाले की ही पद को लेकर भ्रमित हों।

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