हरिद्वार। श्री धर्म सेना रक्षा के राष्ट्रीय संयोजक जानकीशरण अग्रवाल ने कहाकि आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए चार दिशाओं में शंकराचार्यों की नियुक्ति की और उसकी रक्षा के लिए आखड़ों की स्थापना की। कुछ लोग उस परंपरा से हटकर अपनी परंपरा चलाना चाहते हैं। हिंदू मुस्लिम करते-करते अब ये शंकराचार्य जैसे सम्मानित पद में अब ये जाति पर अपनी राजनीति चमकाने में लग गए। उन्होंने कहाकि स्वामी प्रबोधानंद गिरी जी से महामंडलेश्वर की पदवी तुरंत वापिस ली जानी चाहिए। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए चार दिशाओं में शंकराचार्यों की नियुक्ति की और उसकी रक्षा के लिए आखड़ों की स्थापना की है। ये उस परंपरा से हटकर अपनी परंपरा चलाना चाहते हैं। हिंदू-मुस्लिम करते-करते अब ये शंकराचार्य जैसे सम्मानित पद में इनको जाति भी दिख गई ओबीसी का शंकराचार्य बनाना चाहते हैं। उस पर अपनी राजनीति चमकाने में लग गए। अपने आप को जूना अखाड़े का महामंडलेश्वर बताकर उसका नाम बदनाम कर रहे हैं। भड़काऊ सभा के आयोजन कर संतों को जेल भिजवाकर उनकी भी दो कोड़ी की इज्जत कर दी, जो की दुर्भाग्य पूर्ण है।
उन्होंने बताया कि सन्यासी होने से पूर्व स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम उमाशंकर भाँट था और वे प्रतापगढ़ जिले के ग्राम बाभनपुर के निवासी थे। बाभनपुर के तत्कालीन प्रधान शिवप्रसाद गुप्ता ने 2012 में एक प्रमाणपत्र जारी कर ये प्रमाणित किया है।
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के मृत्योपरांत जब नये शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम सामने आया तो स्वाभाविक रूप से ये प्रश्न उठा कि शंकराचार्य होने की योग्यता अर्हता क्या है। नये शंकराचार्य का नियोक्ता कौन होता है और नियुक्ति की चयन प्रक्रिया क्या है ?
उन्होंने बताया कि विद्वानों के मुताबिक शंकराचार्य को वाग्मी, वेदपाठी, संस्कृत भाषा का प्रकांड विद्वान, बाल ब्रह्मचारी सन्यासी, शास्त्रार्थ में निपुण होने के अलावा, जन्मना ब्राह्मण होना आवश्यक है। ऐसे में विराट हिन्दू समाज को इस जन्मना ब्राह्मण होने की अर्हता पर आपत्ति और असंतोष होना स्वाभाविक है।


