भाजपा क्यों दे हरिद्वार से संत को टिकट!

हरिद्वार। लोकसभा का चुनावी बिगुल बज चुका है। किसी भी समय आचार संहिता लग सकती है। वहीं राजनैतिक दल भी जोरशोर से चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमाने वाले भी जी-जान से टिकट पाने की जुगत में लगे हुए हैं। वहीं बात यदि हरिद्वार लोकसभा सीट की करें तो, यहां संत समाज भाजपा से किसी संत को टिकट देने की मांग कर रहा है। संतों का कहना है कि धर्मनगरी व संतबाहुल्य नगरी होने के नाते इस बार भाजपा को किसी संत को यहां से मैदान में उतारना चाहिए।


संतों की इस मांग की पूर्व केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती महाराज ने यह कहकर हवा निकाली दी की संतों को राजनीति से दूर रहना चाहिए। श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए संतों का राजनीति में आना जरूरी था, किन्तु अब राम मंदिर का निर्माण हो चुका है, ऐसे में संतों को टिकट देने और उनकी मांग का कोई औचित्य नहीं।
उधर बड़ा सवाल यह कि आखिर भाजपा संतों को हरिद्वार सीट से टिकट दे तो क्यों दे। कोई भी राजनैतिक दल चुनावी गणित को देखते हुए टिकट देता है। हरिद्वार लोकसभा सीट पर संतों के करीब 15 हजार वोट हैं। जिनके वोट हैं, उनमें से अधिकांश यहां रहते नहीं। ऐसे में संतों की संख्या कहीं बहुत कम है। उधर संत भी भाजपा, कांग्रेस, सपा आदि राजनैतिक दलों में बंटे हुए हैं। हां यह बात दीगर है की भाजपा से जुड़े संतों की संख्या अधिक है।


वहीं संतों के बीच ऐसे भगवाधारी भी शामिल हैं, जिन पर आपराधिक मुकद्में चल रहे हैं। हरिद्वार में कुछ संत ऐसे हैं, जिन पर अपहरण, बलात्कार की कोशिश, छेड़छाड़, धोखाधड़ी, लोगों की सम्पत्तियों पर कब्जे करना, आश्रमों पर कब्जा करना, अपनी ठगी का शिकार बनाकर लोगों से धन ऐंठना, ट्रांसफर आदि के नाम पर दलाली करना, रियल स्टेट के कारोबार में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होना, अखाड़ों की सम्पत्ति को बेचकर ऐश करना आदि अनेक मामले हैं।


वहीं भूपतवाला क्षेत्र में एक आश्रम का फर्जी ट्रस्ट बनाने का मामला सामने आने और कुछ संतों समेत 20 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने से संतों की मुहिम को झटका लगा है। उधर एक बड़े संत के अपहरण जैसे संगीन मामले में आरोपित होने व 26 वर्षों से फरार होने के चलते भी संत समाज बेकफुट पर है। इन कारणों से संत को टिकट देने की मुहिम को भी बड़ा झटका लगा है कि एक-दो को छोड़कर इन दोनों ही मामलों में किसी संत ने आवाज तक नहीं उठायी। वहीं कुछ संतों के ठाठ ऐसे हैं, जिनसे बिना इजाजत के मुलाकात भी संभव नहीं हैं। सब कुछ त्याग करने के बाद भी लग्जरी गाड़ियां अधिकांश का शौक हैं। ऐसे में कोई भी राजनैतिक दल टिकट दे तो क्यों दे।


वहीं कुछ संत ऐसे हैं, जो पाखण्ड लीला से कोसों दूर हैं। अपराधिक किस्म के संतों का वह समय-समय पर विरोध भी करते हैं, ऐसे में उन्हें दलाल और न जाने कितने प्रकार की संज्ञा दी जाती है। किन्तु संत भेष में अपराधों में लिप्त लोगों का खुलकर कोई भी बड़ा संत विरोध नहीं करता। जो संत विरोध करता है या तो उसे विरोध करने लायक समझा नहीं जाता या फिर उस पर दबाव बनाकर शांत करवा दिया जाता है। वैसे भी जो वास्तविक संत हैं, उन्हें कोई पूछने वाला नहीं। वहीं संत समाज भी कई धड़ों में बंटा हुआ है। जब संत समाज स्वंय एकजुट नहीं है तो वह समाज में अपना प्रभाव कैसे छोड़ सकता है।


जबकि एक संत तो यह कह चुके हैं कि बेदाग छवि के संत को ही टिकट मिलना चाहिए। ऐसे में किस संत को टिकट दिया जाए और किसे दरकिनार किया जाए यह किसी भी दल के लिए बड़ा मुश्किल साबित हो सकता है। हालांकि कुछ संत अपना टिकट पक्का समझे बैठे हैं, किन्तु सूत्रों की माने तो हरिद्वार से इस बार भी कोई संत उम्मीद्वार हो मुश्किल है।


कुल मिलाकर इतने विरोधाभास होने के कारण किसी संत को टिकट मिले, उम्मीद कम की जा सकती है। कारण की कुछ संत के भेष में ऐसे भगवाधारी हैं, जिनके कारण समूचे संत समाज की छवि को ठेस पहुंचती है और आपराधिक किस्म के संतों का विरोध न करना सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो सकती है।

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