हरिद्वार। जगत मंगल की चेष्टा करने वाला तथा त्याग की भावना रखने वाला ही संत होता है, जो दूसरों के दुखों को स्वयं सहकर निरंतर भगवत भजन में लीन रहते हैं, वही संत हैं। संत लोक कल्याण के लिए अपने तप बल को लगाकर दूसरों को सुखी करते हैं और स्वयं आनंदित होते हैं। किन्तु वर्तमान में संत की परिभाषा बदल गई है। कम से कम तीर्थनगरी हरिद्वार के हालातों को देखकर तो ऐसा कहा ही जा सकता है। यहां दूसरे की सम्पत्ति को हड़पना, अपराधों में संलिप्तता वर्तमान में कुछ भगवाधारियों की नीयति बन गई है।
तीर्थनगरी में नारायण निवास आश्रम ट्रस्ट भूपतवाला का फर्जी ट्रस्ट बनाकर सम्पत्ति हड़पने की कोशिश में 20 लोगांे के खिलाफ कोर्ट के आदेश पर मुकद्मा दर्ज किया गया है। इनमें 13 भगवाधारी हैं। वहीं एक संत ऐसे हैं, जो इन सबके बॉस हैं और 20 में उनका नाम शामिल नहीं है। शीघ्र ही पुलिस इनको भी 20 की लाईन में शामिल कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक इन सबके ऊपर भी दो बॉस बताए गए हैं। जिनमें एक खादीधारी है और दूसरा भगवाधारी। इनका काम केवल फर्जी ट्रस्ट में इनको गाइड करना और काम में आने वाली समस्याओं को निपटाना था। जबकि भगवाधारी का कार्य संतों को मैनेज करना था। ये दोनों बॉस इस खेल में शामिल होने के बाद भी पूरी तरह से पाक-साफ हैं।
वहीं इन दिनों एक बाबा पर अपहरण के आरोप का मामला जोरों-शोरों से उछल रहा है। इतना गंभीर आरोप होने के बाद आज तक बाबा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। इससे भी बड़ी बात यह की जिस अखाड़े से अपहरण जैसे संगीन आरोप का आरोपित बाबा जुड़ा हुआ है, उस अखाड़े की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। समझा जा सकता है की दाल कितनी काली है।
वहीं एक संत और हैं जिन पर अपहरण के साथ बलात्कार की कोशिश का मुकद्मा विगत कई वर्षों से दर्ज है। बावजूद इसके बाबा मस्ती में खुलेआम घूम रहा है। वहीं दर्जनों ऐसे आश्रम तीर्थनगरी में हैं, जिन पर कब्जे का प्रयास किया जा चुका है। कई पर कोशिश चल रही है। साथ ही आश्रम पर दूसरे संतों का कब्जा करवाने के लिए कार्य में आने वाली रूकावटों को दूर करने की एवज में मोटी रकम लेने वाले भगवाधारी भी यहां मौजूद हैं। बात यदि महिला प्रेम की कि जाए तो लिस्ट काफी लम्बी हो जाएगी। कुल मिलाकर सम्पत्ति हड़पना, धोखाधड़ी, अपहरण, बलात्कार आदि संगीन अपराधों में कथित भगवाधारी शामिल हैं। बावजूद इसके स्वंय को ये संत कहते नहीं अघाते। इतना ही नहीं यदि इनका वश चले तो ये स्वंय को भगवान ही घोषित कर दें।
वहीं विडम्बना देखिए की सब कुछ जानने के बाद भी सरकार और पुलिस प्रशासन ऐसे लोगों के खिलाफ कुछ करने के लिए तैयार नहीं। पुलिस को ऐसे बाबाओं की ऊंची पहुंच का खैफ तों सरकारों को वोट बैंक की चिंता। आम आदमी को पुलिस प्रशासन तू तड़ाक करने पर भी मुकदमा दर्ज कर जेल भेज देती हैं, किन्तु इनके लिए खून भी माफ हैं।
सरकार और प्रशासन भले ही इस ओर से मुंह फेर कर बैठे हुए हों, किन्तु संतों का इस मामले में चुप्पी साधे रखना सही संतों को भी इन्हीं जैसों की लाईन में खड़े करने जैसा कार्य है।