अर्द्धकुंभ: तीर्थनगरी में विखंडित हो रहीं परम्पराएं

अखाड़ों के समक्ष भी उत्पन्न होगी विकट स्थिति
हरिद्वार।
धर्मनगरी हरिद्वार में ही अर्द्धकुंभ को लेकर परम्पराओं को विखंडित किए जाने का कार्य किया जा रहा है। ऐसे में कई यक्ष प्रश्न खड़े होने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल यहां संतों के समक्ष खड़ा हो गया है। सरकार के दवाब में आकर संत भले ही कुछ कहें या करें, किन्तु अंदरखाने वह भी परम्पराओं के विखंडित होने से पशोपेश में हैं। हालत यह है कि अखाड़ों के समक्ष स्थित यह उत्पन्न हो गयी है की अब उनसे न निगलते बन पा रहा है और न ही उगलते।


उल्लेखनीय है कि तीर्थनगरी हरिद्वार में आगामी वर्ष 2027 में अर्द्ध कुंभ मेले का आयोजन होना है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। मेला अधिकारी की नियुक्ति भी की जा चुकी है। मेले के संबंध में बैठकों का दौर भी आरम्भ हो गया है, किन्तु इस बार अर्द्धकुंभ को कुंभ कहकर प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है। जो की परम्पराआंे के विपरीत है। ठीक ऐसा ही प्रयागराज कुंभ के दौरान हुआ। वहां भी अर्द्धकुंभ को कुंभ और कुंभ पर्व को महाकुंभ कहकर प्रचारित किया गया।


जबकि कुंभ का पर्व और स्नान की तिथियां ग्रह, नक्षत्रों के हिसाब से तय की जाती हैं। तीर्थनगरी हरिद्वार में कुंभ पर्व का आयोजन तब होता है जब बृहस्पति, कुंभ राशि में हों और सूर्य मेष राशि में गोचर कर रहे होते हैं। किन्तु इस बार न तो गुरु कुंभ राशि में होंगे और न ही सूर्य मेष राशि में विचरण करेंगे। ऐसी स्थिति में अर्द्धकुंभ को कुंभ कहकर प्रचारित करना और इस दौरान शाही स्नान की बात करना परम्पराओं को विखंडित करने जैसा है। जिन ग्रह, नक्षत्रों के रहते कुंभ स्नान होता है, इस बार वह ग्रह, नक्षत्र नहीं होंगे।


बता दे कि हरिद्वार में अर्द्धकुंभ के दौरान कभी भी शाही स्नान का आयोजन नहीं हुआ और न ही पेशवाई निकली। इसके साथ ही अखाड़ो में कोई विशेष आयोजन नहीं हुए। केवल प्रयागराज में आयोजित होने वाले अर्द्धकुंभ के दौरान ही शाही स्नान और अखाड़ों की छावनियों के स्थापित होने की परम्परा रही है।


वहीं सबसे बड़ी समस्या अखाड़ो के समक्ष उत्पन्न होने वाली है। कारण की यदि अखाड़े अर्द्धकुंभ में शाही स्नान करेंगे तो उन्हें अपनी छावनियां भी स्थापित करनी पड़ेंगी। इसके साथ ही धर्मध्वजा की स्थापना भी करनी होगी। कारण की बिना धर्मध्वजा की स्थापना के पेशवाई निकालना और शाही स्नान करना संभव नहीं है।


वहीं सबसे बड़ी समस्या अखाड़ों के समक्ष जो उत्पन्न होगी वह है अखाड़ों के चुनावों की। कारण की अखाड़ों में प्रत्येक छह वर्ष के बाद चुनाव होते हैं। अखाड़ों की धर्मध्वजा स्थापित होते ही कार्यकारिणी स्वतः ही भंग हो जाती है। उसके बाद धर्मध्वजा के नीचे की नए चुनाव होते हैं और नए पदाधिकारी बनाए जाते हैं। ऐसे में कोई अखाड़ा नहीं चाहेगा की उनकी वर्तमान कार्यकारिणी समय से पूर्व समाप्त हो जाए। वहीं हरिद्वार अर्द्धकुंभ के कुछ माह बाद उज्जैन में कुंभ पर्व आयोजित होना है। इसके कुछ माह बाद ही नासिक में कुंभ का आयोजन होना है। कुल मिलाकर करीब एक वर्ष में तीन स्थानों पर अर्द्धकुंभ व कुंभ पर्वों के आयोजन होने हैं। ऐसे में अखाड़ों के लिए सभी स्थानों पर व्यवस्थाएं करना संभव नहीं होगा।


वहीं दूसरी ओर अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि महाराज भी इशारों में अर्द्धकुंभ के आयोजन को नकार चुके हैं। उनका कहना था कि सरकार जो धन कुंभ के आयोजन में खर्च कर रही है उसे आपदाग्रस्त क्षेत्रों में लगाया जाना चाहिए। इसका सीधा से मतलब यह है कि अखाड़े भी अर्द्धकुंभ में शाही स्नान के पक्ष में नहीं हैं। हालांकि अखाड़ा परिषद नवरात्र में पुनः बैठक कर स्नान पर्व की तिथियों की घोषणा करेगा। किन्तु इतना तय है कि चाहे सरकारें हों या अन्य परम्पराओं को विखंडित करने का कार्य कर रही हैं।

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