संतों में विघटना करना इनकी पुरानी आदत
केवल हरिगिरि की वर्षों से महामंत्री क्यों, क्या अन्य कोई योग्य नहीं
हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री व श्रीमहंत राजेन्द्र दास महाराज ने जूना अखाड़े के संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरि महाराज पर बड़ा हमला बोलते हुए उन्हें संत समाज के लिए विष की बेल बताया है। उनका कहना है कि हरिगिरि महाराज संतों में फूट डालो और राज करो की नीति पर अमल करते हैं। जबकि जिस अखाड़ा परिषद के ये स्वंय को महामंत्री करार देते नहीं थकते वह भी फर्जी है। कारण की दोनों ही अध्यक्ष व महामंत्री पद पर संन्यासियों का कब्जा है। नियमानुसार दोनों पदों में से एक पर संन्यासी व दूसरे पर वैष्णव या उदासी संत होना चाहिए।
श्री महंत राजेन्द्र दास महाराज ने कहाकि संतों में विघटन कर अपने मंसूबे पूरा करना इनकी पूरानी आदत है। पूर्व अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि महाराज के ब्रह्मलीन होने पर तीनों वैष्णव अखाड़ों के संत वहां पहुंचे थे, किन्तु श्रद्धांजलि में इन्होंने किसी भी वैष्णव अखाड़ों को आमंत्रित नहीं किया। इतना ही नहीं श्रद्धांजलि सभा के मंच से वैष्णव अखाड़ों का यह कहकर अपमान किया की हमें इनकी कोई जरूरत नहीं है।
अखाड़ा परिषद महामंत्री श्रीमहंत राजंेन्द्र दास महाराज ने कहाकि कथित अखाड़ा परिषद में वर्षों से केवल हरिगिरि ही महामंत्री पद पर बने हुए हैं। क्या कोई अन्य संत इस योग्य नहीं है, जिसे इस पद पर सुशोभित किया जा सके। ऐसे क्या कारण है कि हरिगिरि कथित पद को छोड़ना ही नहीं चाहते।
उन्होंने कहाकि अखाड़ा परिषद के नाम पर इन्होंने खासी उगाही की। उन उगाही के पैसों से होटल, मकान, धर्मशाला आदि बनाकर ऐश कर रहे हैं। इन्होंने आज तक अखाड़ा परिषद के नाम पर की गई उगाही का कोई हिसाब नहीं दिया। ऐसा कोई अखाड़ा परिषद अध्यक्ष नहीं रहा जिसके साथ हरिगिरि ने दुर्व्यवहार न किया हो। चाहे ब्रह्मलीन श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि महाराज हों या फिर श्रीमहंत ज्ञानदास महाराज। बिना चुनाव कराए स्वंय को महामंत्री घोषित करने का इन्हें किसने अधिकार दिया। कहाकि संतों को भी हरिगिरि महाराज की नीति और नीयत को समझना चाहिए। जिससे अखाड़ों और संतों की गरिमा बनी रहे।