गुरुतत्त्व मंच का सिंगापुर में चैतन्य महोत्सव का भव्य आयोजन
हिमालयीन सद्गुरु शिवकृपानंद स्वामीजी का प्रागट्य दिवस प्रति वर्ष साधकों द्वारा चैतन्य महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। शिवकृपानंद स्वामीजी चैतन्य का अर्थ बताते हैं कि चैतन्य अर्थात् प्राणशक्ति। जो प्राणशक्ति प्रकृति के सान्निध्य में जाने के बाद हमें महसूस होती है और चैतन्य को प्राप्त करने के बाद हमें अच्छा लगता है। चैतन्य महोत्सव इस चैतन्य को याद करके पुनर्जीवित करने का अवसर है।
हर वर्ष चैतन्य महोत्सव भारत में समर्पण आश्रम में मनाया जाता है। दूसरी बार भारत देश के बाहर सिंगापुर में स्वामीजी के जन्मदिन को मनाया गया। इस महोत्सव में देश-विदेश के अनेक साधकों ने भाग लिया।
वैश्विक स्तर पर आयोजित इस उत्सव में 15 से अधिक देशों के साधक उपस्थित थे। स्वामीजी के 70 वे जन्मदिन को इस वर्ष कुछ विशेष अंदाज में मनाया गया। 7 से 9 नवंबर तक तीन-दिवसीय उत्सव के अंतर्गत पहले दिन साधकों का स्वागत फूल मालाओं से किया गया। उसके बाद स्वामीजी के प्रवचन एवं ध्यान से सभी लाभान्वित हुए। इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि ध्यान को जिंदगी की गतिविधियों में रोज का एक आवश्यक अंग बनाएँ। गुरु-सान्निध्य अमूल्य है, जब भी गुरु-सान्निध्य मिले तो उसका लाभ उठाना चाहिए क्योंकि गुरु के साथ हजारों आत्माओं का समूह जुड़ा हुआ होता है। ध्यान के पश्चात् स्वामीजी ने साधकों के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर भी दिए।
अगले दो दिन के कार्यक्रम सिंगापुर के प्रसिद्ध मरीना बे सैंडस में आयोजित किए गए। इस दिन सुबह से ही साधकों का उत्साह देखने मिल रहा था। सुबह स्वामीजी के साथ प्रवचन, ध्यान तथा प्रश्नोत्तरी के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था जिसमें धर्म और आध्यात्मिकता विषय पर समझाया गया कि धर्म और आध्यात्मिकता दोनों अलग हैं। धार्मिक व्यक्ति आध्यात्मिक बन सकता है परंतु आध्यात्मिक व्यक्ति धार्मिक नहीं हो सकता। आध्यात्मिकता समुद्र है जबकि धर्म नदी है। जिसे हम धर्म समझते हैं वह वास्तव में उपासना की पद्धतियाँ हैं। इस बार के उत्सव में समय के साथ चलते हुए टेक्नोलॉजी का भी उपयोग किया गया। स्वामीजी के द्वारा दीप प्रज्वलित करने के समय के साथ ही स्क्रीन पर ओम के आकार के अनेक दीयों के साथ-साथ अलग-अलग भाषाओं में ओम भी दिखाए गए। दोपहर के सत्र के बाद स्वामीजी का संक्षिप्त प्रवचन, प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
इसके साथ ही विभिन्न देशों के साधकों ने स्वामीजी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी।
तीसरे दिन की शुरुआत में गुरुपुत्र अम्बरीष का सेशन था, जिसमें अम्बरीष जी ने होम सेंटर का नया विचार रखा, साथ ही इस बारे में भी बात की कि ध्यान में नियमितता किस तरह से लाई जा सकती है। उसके बाद गुरुमाँ का प्रवचन हुआ जिसमें उन्होंने जानकारी दी कि विवाह करना या माता-पिता बनना यह ऋणानुबंध पर आधारित है। कुछ मामलों में पिछले जन्म के कारण माता-पिता अपने बच्चों के सुख से वंचित रह जाते हैं इसलिए उन्हें नकारात्मक सोच ना रखते हुए सकारात्मक सोचना चाहिए और आध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहिए।
गुरुमाँ ने अपने स्कूल जीवन के विभिन्न अनुभव सुनाए। तीसरे दिन के अंत में सिंगापुर के लोगों के लिए एक सार्वजनिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया जिसमें 100 से भी अधिक लोगों ने पूज्य स्वामीजी के प्रवचन, ध्यान तथा प्रश्नोत्तरी के कार्यक्रम का लाभ लिया। स्वामीजी ने आत्मा, धर्म, योग, ध्यान आदि विषयों पर गहन चिंतन करते हुए नियमित ध्यान करने की जानकारी दी। चैतन्यमयी और दिव्य वातावरण में साधकों के लिए यह तीन-दिवसीय कार्यक्रम यादगार बन गया।
भारत में महुडी, दांडी, गोवा, सौराष्ट्र -वाकानेर, कच्छ, नागपुर, बेंगलुरु, अजमेर आदि स्थानों में स्थित समर्पण आश्रमों से बड़ी संख्या में साधक जुड़े और कार्यक्रम का लाभ उठाया।