यदि ऐसा है तो सीमा गिरि की नियुक्ति गलतः शिव स्वरूपानंद

हरिद्वार। परम्पराओं से कैसे खिलवाड़ होता है, इसकी बानगी यदि देखनी हो तो तीर्थनगरी हरिद्वार से बेहतर स्थान और कोई नहीं हो सकता। जहां प्रतिदिन परम्पराओं को तिलांजली दी जा रही है। कभी गैर ब्राह्मण को आचार्य मण्डलेश्वर बना दिया जाता है तो कभी बच्चों और पत्नी वाले को भी आचार्य बनाने पर विचार किया जाता है। परम्पराओं के साथ कैसे खिलवाड़ हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। हास्यास्प्रद तो यह कि स्वंय को धर्म का ठेकेदार बताने वाले परम्पराओं पर कुठाराघात करने का कार्य कर रहे हैं।


विदित हो कि दशनामी परम्परा आचार्य शंकर द्वारा प्रतिपादित की गई थी। जिसके अन्तर्गत संन्यासियों को दशनाम दिए गए। जो संन्यासी सन्यास को छोड़कर वापस गृहस्थ आश्रम में चले गए, किन्तु उन्होंने अपने उपनाम दशनाम को नहीं छोड़ा। जिन्हें गुसांई कहा जाने लगा। समय के साथ गुसांई को गोस्वामी भी कहा जाने लगा।


गोस्वामी समाज के आज कई संगठन हैं। जिनमें विश्वगुरु शंकराचार्य दसनाम गोस्वामी समाज भी एक है। जिसके संरक्षक महामण्डलेश्वर स्वामी शिव स्वरूपानंद सरस्वती शिष्य स्वामी ब्रह्मलीन कल्याणानंद सरस्वती महाराज हैं। जबकि कमलेश गिरि गोस्वामी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। अब इस समाज की महिला प्रकोष्ठ का श्रीमती सीमा गिरि गोस्वामी ऊर्फ सीमा शर्मा पत्नी दीपक शर्मा निवासी हरिद्वार को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है।
लोगों को कहना है कि जब सीमा गिरि से सीमा शर्मा हो चुकी हैं तो उन्हें गोस्वामी समाज का पदाधिकारी कैसे बनाया जा सकता है।
इस संबंध में जब विश्वगुरु शंकराचार्य दसनाम गोस्वामी समाज के प्रमोद गिरि से सवाल किया तो उनका कहना था कि दसनामी सदैव दसनामी रहता है। यदि उसका विवाह ब्राह्मण समाज में हो भी गया है तो वह दसनामी ही रहेगा। बताया कि शेष इस संबंध में वह अपने अन्य पदाधिकारियों से वार्ता करके बताएंगे। दोबारा सम्पर्क करने पर उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया।


वहीं विश्वगुरु शंकराचार्य दसनाम गोस्वामी समाज के संरक्षक स्वामी शिव स्वरूपानंद सरस्व्ती महाराज का कहना है कि नियुक्ति कार्ड को उन्होंने भी फेसबुक आदि माध्यमों पर देखा है। यदि दसनामी समाज की महिला का किसी अन्यत्र समाज में विवाह हो जाता है तो वह दसनामी समाज से दूसरे समाज की हो जाती है। यदि ऐसा है तो सीमा गिरि की नियुक्ति गलत है।

लोगों का कहना है कि सीमा शर्मा की इस पद पर नियुक्ति क्यों की गई, इसमें भी गहरा राज छिपा है। नियुक्ति कर कांटे से कांटे को निकालने का चतुराई से काम किया गया है। जिस का खुलासा आने वाले दिनों में स्वंय होगा।

इस संबंध में श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज का कहना है कि गोस्वामी व नहीं है जो किसी अन्य जाति से बनाए गये हैं। कहाकि मुडक संन्यासी पुनः गृहस्थ आश्रम में चला जाए और उससे जो सन्तान हो वो गोस्वामी होती है, यह गलत है। संतान वहीं होगी, जो उसका पिता होगा। गोस्वामी वह है जो भगवान शंकर के अंग से उत्पन्न 52 भैरों की सन्तान की औलाद हैं, जिसने जन्म के साथ गिरि, पुरी आदि 52 प्रकार के टाईटल नाम कर्ण के साथ लगता है। वही गोस्वामी होता है, बाकी नकली हैं।

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