मामला अब पीएम मोदी तक पहुंचाने की तैयारी में संत
हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में स्वामित्तव को लेकर संतों के दो गुटों में विवाद चला आ रहा है। रेशम सिंह गुट जहां अपने आप को अखाड़े का असली हकदार बताता है तो वहीं दूसरी ओर अखाड़े पर काबिज श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज गुट स्वंय को अखाड़े के असली हकदार बताते हैं। दोनों गुंटों के बीच विवाद फिलहाल न्यायालय में विचाराधीन है। बीते रोज अखाड़े पर हुए दूसरे गुट के कब्जे के प्रयास के बाद अखाड़े में पुलिस बल तैनात है। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब अखाड़े पर कब्जे का प्रयास किया गया हो। इससे पूर्व भी कई बार अखाड़े पर कब्जे का प्रयास किया जा चुका है।
मामला न्यायालय में विचाराधीन है। ऐसे में बिना न्यायालय के आदेश के कुछ नहीं किया जा सकता, किन्तु जो समय-समय पर कब्जे का प्रयास किया जाता रहा है सूत्रों के मुताबिक उसके पीछे भगवा और खादी का गठजोड़ मुख्य वजह है।
हरिद्वार में बड़ी संख्या में सत निवास करते हैं। संतों की बहुलता के कारण यहां संतों के कई गुट हैं। कोई निर्मल अखाड़े में वर्तमान में काबिज श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह के समर्थन में है तो कोई रेशम सिंह गुट का समर्थन कर रहा है। कोई किसी भी गुट में नहीं है। इस विवाद को हवा अखाड़ा परिषद के दो गुटों में बंटने के कारण भी अधिक मिली है। एक गुट निर्मल अखाड़े के साथ है तो दूसरे गुट के कुछ लोग रेशम सिंह गुट के साथ हैं। पूर्व में एक गुट ने रेशम सिंह गुट को तो अखाड़े पर चुटकियों में कब्जा कराने तक का दिलासा दे दिया था। वहीं उसी गुट के एक संत ने तो यहां तक कह दिया था कि सीएम मेरे शिष्य है। उनको कहते ही चुटकियों में अखाड़े पर कब्जा करवा देंगे। इसी दिलासे और उम्मीद के चलते लाखों रुपये के वारे-न्यारे कुछ लोगांे द्वारा कर लिए गए।
वहीं दूसरी ओर सूत्रों की माने तो इस विवाद को हवा मिलते ही मामला खादी तब जा पहुंचा। खादी और भगवे के गठजोड़ ने इस विवाद को और हवा दे दी। सूत्र बताते हैं कि इस कारण से दो खादी धारण करने वालों को मोटा चढ़ावा चढ़ाया गया। वहीं भगवे ने भी अपने व्यारे-न्यारे कर लिए। सूत्र बताते हैं एक कार्य विशेष के दौरान सहयोग के रूप में एक पक्ष ने कुछ चढ़ावा चढ़ाया तो दूसरे गुट ने भगवे के कहने पर उससे दस गुना मोटा चढ़ावा चढ़ा दिया। जिससे खादी भी अप्रत्यक्ष रूप से इस विवाद में कूद गई। समय-समय पर अखाड़े पर कब्जे का प्रयास भगवाधारियों के इशारे पर करवाया जाता रहा, जिसमें भगवा और खादी दोनों ने अपने वारे-न्यारे किए। किन्तु कब्जा करने वाले गुट के हालात भगवा और खादी के फरे में फंसकर ना खुदा ही मिला, ना विसाले सनम जैसे हो गए। जितनी बार भी कब्जे का प्रयास किया गया, उतनी बार प्रयास विफल साबित हुआ।
वहीं सूत्रों की मानें तो प्रशासन के कुछ अधिकारियों की भी भूमिका इसमें संदिग्ध रही। कब्जे के प्रयास से तीन दिन पूर्व सूत्रों के मुताबिक रणनीति बना ली गई थी, जिसके संबंध में एक आश्रम में बैठक हुई, जिसमें एक अधिकारी भी शामिल थे। बावजूद इसके समय रहते कार्यवाही नहीं हुई। कारण था कि भगवा और खादी का गठजोड़। दोनों की शह के चलते अधिकारी ने भी चुप्पी साधे रखी और अपने स्वर बदलते रहे। हकीकत सामने आने पर अधिकारी को भी अपने स्वर बदलने पड़े।
उधर भगवा, खादी और कुछ अधिकारियों के गठजोड़ के चलते परेशान हो रहे श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज अब प्रधानमंत्री तक इस मामले को लेकर जाने का मन बना चुके हैं। जिसमें वे भगवा, खादी और अधिकारी के गठजोड़ का पूरा चिट्ठा उनके समक्ष प्रस्तुत करेंगे।


