अपंजीकृत हो चुकी वसीसत के हिसाब से भी फर्जी हैं मंशा देवी ट्रस्ट अध्यक्ष
वसीसत के मुताबिक निरंजनी अखाड़े का गिरि नामा साधु ही होगा अध्यक्ष
हरिद्वार। मां मंशा देवी मंदिर कथित ट्रस्ट के पदाधिकारी शासन व प्रशासन की कृपा से मजे लूट रहे हैं। जिसको ट्रस्ट बताया कर प्रचारित व प्रसारित करने के साथ अपना महिमा मण्डन किया जा रहा है उस नाम का कोई ट्रस्ट अस्तित्व में ही नहीं है। इस को स्वंय प्रशासन कह चुका है। साथ ही जिस मंशा देवी को अपना बताकर कब्जा किया हुआ है उसको भी वन विभाग नकार चुका है। भूमि किसी किसी व्यक्ति या संस्था के नाम नहीं है। इस बात की पुष्टि वन्यजीव प्रतिपालक राजाजी टाईगर रिजर्व रविन्द्र पुण्डीर के पत्र के माध्यम से हुई है। वहीं जिस मंशा देवी पर वसीयत के आधार पर अपनी मलकियत होने का दावा किया जा रहा है, यदि उस अपंजीकृत हो चुकी वसीयत को भी आधार मान लिया जाए तो वर्ततान अध्यक्ष पूरी तरह से फर्जी है। वसीयत में स्पष्ट लिखा है कि श्रीमहंत लक्ष्मीनारायण गिरि के बाद मंशा देवी का होने वाला अध्यक्ष निरंजनी अखाड़े का साधु और गिरि नामा होगा।

वन्यजीव प्रतिपालक राजाजी टाईगर रिजर्व रविन्द्र पुण्डीर पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि विभागीय गजट संख्या 640ध्15-346-1939 दिनांक 16 मई 1940 में नोटिफिकेशन संख्या 309ध्15-39 सी दिनांक 22 मई 1903 से मायापुर ब्लाक में पिलर संख्या 1 से 4 से घिरे हुए 0.4 एकड़ रिजर्व फोरेस्ट को मंशा देवी मंदिर के नाम से डीस्फारेस्टेड की गई है। उक्त सम्पत्ति किसी व्यक्ति या संस्था के नाम पर नहीं है।
वन्यजीव प्रतिपालक राजाजी टाईगर रिजर्व रविन्द्र पुण्डीर के पत्र से यह स्पष्ट हो गया है कि मंशा देवी मंदिर किसी की व्यक्तिगत मलकियत नहीं है और ना ही किसी संस्था के नाम पर भूमि आबंटित की गई है। ऐसे में जब भूमि किसी संस्था व व्यक्ति के नाम नहीं है, तो फिर उस सम्पत्ति की वसीयत किस आधार पर की गई और कैसे उस पर कब्जा किया गया।

वहीं 11 वर्ष पूर्व हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों की भी आज तक अवहेलना की जा रही है। इतना ही नहीं वन विभाग पूर्व में भी मंशा देवी की भूमि को अपनी बता चुका है। सिटी मजिस्ट्रेट के समक्ष भी आज तक मांगे जाने के बाद भी मंशा देवी के स्वामित्तव व ट्रस्ट संबंधी कागजात प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं।
साथ ही तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट जय भारत सिंह ने डीएम को भेजी जांच में प्रथम वसीसत का जिक्र करते हुए कहाकि उसमेें चार ट्रस्टियों को बनाया गया था, जबकि चार के स्थान पर 13 सदस्य कर दिए गए। साथ ही आगे मंशा देवी का अध्यक्ष निरंजनी अखाड़े का साधु व गिरि नामा संन्यासी बनाने का जिक्र किया है। जबकि वर्तमान में कथित अध्यक्ष पुरी नामा है। ऐसे में उस अपंजीकृत को चुकी वसीयत को भी मान लिया जाए तो भी वर्ततान अध्यक्ष पुरीनामा होने के कारण अवैध है।
इसके साथ ही जिला शासकीय अधिवक्ता संजीव कौशल ने भी मंशा देवी प्रकरण को लेकर वर्ष 2017 में डीएम को भेज पत्र में न्यायालय की अवमानना की बात कही थी। साथ ही मंदिर की अव्यवस्थाओं की ओर ध्यान आकर्षित कराया था। इतना होने के बाद भी सरकार और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। जबकि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार और भय मुक्त प्रदेश की बात कहती है। ऐसे में प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार व भय मुक्त प्रदेश के दावों की सच्चाई का अनुमान लगाया जा सकता है।