हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के वरिष्ठ संत महंत मदन मोहन गिरि महाराज ने कहाकि स्वामी निश्चलानंद तीर्थ, स्वामी सदानंद व स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती स्वयंभू शंकराचार्य हैं। अनर्गल बयानबाजी कर यह समाज को भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं।
स्वामी मदन मोहन गिरि महाराज ने कहाकि स्वामी निश्चलानंद, स्वामी सदानंद व स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ये बताएं की उनका पट्टाभिषेक किसने किया। वे कैसे शंकराचार्य बने और कैसे शंकराचार्य पद नाम का उपयोग कर रहे हैं। कहाकि स्वामी निश्चलानंद तीर्थ महाराज जो स्वंय को शंकराचार्य कहते हैं वह गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ महराज के मुनीम हुआ करते थे। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद ये स्वंयभू शंकराचार्य बन बैठे। वहीं स्वामी सदानंद व स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी स्वंयभू शंकराचार्य बने घूम रहे हैं। स्वामी मदन मोहन गिरि महाराज ने कहाकि शंकराचार्य का पद सनातन में सर्वोच्च पद है। यह पद किसी वसीयत का नहीं है। यह योग्यता का पद है। उन्होंने कहाकि वसीयत सम्पत्ति की होती है, किसी पद की नहीं।
उन्होंने कहाकि ये वह लोग हैं जो स्वंय को शैव का उपासक बताते हैं, किन्तु राम के काज को लेकर अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। उन्होंने कहाकि श्री राम सबके हैं और सभी को इस कार्य में सहयोग करते हुए उत्साह मनाना चाहिए, क्यों पांच सौ वर्षोे के लम्बे संघर्ष के बाद अवसर पर हम सबको देखने को मिल रहा है। हमें इस बात पर गर्व की अनूभूति करनी चाहिए की इस पल के हम साक्षी बनने जा रहे हैं कि श्री रामलला हमारे समक्ष अपने मंदिर में विराजमान होने वाले हैं। कहाकि यदि कोई वाद-विवाद है तो उसका गरिमा के अनुरूप वार्ता से समाधान किया जाना चाहिए।
कहाकि यदि कोई शंकराचार्य सनातन धर्म पर कोई टिप्पणी करे तो एक बार उचित किया कहा जा सकता है, किन्तु जो स्वयंभू हों और अनर्गल बयानबाजी कर रहे हांे तो उन्हें अपने शंकराचार्य होने का प्रमाण समाज के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। अन्यथा समाज को भ्रमित करने वाले किसी भी बयान से बचना चाहिए।