देव स्थान और परम्पराओं से खिलवाड़ आपदा का कारण : गोपाल गिरि

हरिद्वार। उत्तराखण्ड़ में देवताओं के मन्दिर तोड़े जाने से और देव स्थानों को अय्यासी का स्थान बनाने से देवभूमि उत्तराखण्ड़ में दैवीय प्रकोप बादल फटने और भूस्खलन के रूप में देखने को मिल रहा है। यह बात श्री शंभू पंचदशनाम आवाह्न अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कही।


उन्होंने कहाकि सरकार ने पहले केदारनाथ धाम में आपदा के बाद कॉरिडोर बनाया, फिर बद्रीनाथ धाम में कॉरिडोर के साथ हरिद्वार और ऋषिकेश में भी कॉरिडोर सरकार बनाने जा रही है। जिस कारण से देव स्थानांे को तोड़ने की यांेजना है। कहा कि यह देवभूमि है, यहां जहां-तहां ऋषि-मुनि गुप्त रूप से निवास करते हैं। ना जाने कौन ऋषि कहां है। कहा नहीं जा सकता।


गोपाल गिरि महाराज ने कहाकि सरकार को चाहिए की वह धन सतकर्म में लगाए, नेताओं और चोरों के लिए नहीं। पूर्व में ऋषिकेश में जी 20 में त्रिवेणी घाट पर मां गंगा, यमुना, सरस्वती, भैरों, दुर्गा, शीतला मांता के मन्दिर को तोड़ने से देवी-देवता क्रोधित हैं। यही कारण है कि प्रदेश में दैवीय आपदा का प्रकोप बना हुआ है। जिस प्रकार की आपदा इस बाद उत्तराखण्ड में दिखायी दे रही है, ऐसी आपदा पहले कभी नहीं देखी। आए दिन बादल फटने की घटना और लोगों के जान-माल के नुकसान ने सभी को झकझोर दिया है। न्होंने कहाकि सरकार अब देव स्थानों के साथ ग्रह, नक्षत्र के कार्यों में भी हस्तक्षेप करने में लगी है। सन् 2028 में होने वाले अर्धकुम्भ मेला को सन् 2027 के बिना योग के कुम्भ लगाने की तैयारी कर रही है।


उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर प्रतिवर्ष माघ मेला का आयोजन हरिद्वार में जनवरी से अप्रैल वैशाखी तक करने का सुझाव दिया गया है। जिससे प्रति वर्ष प्रयागराज की भंाति उत्तराखण्ड़ में माघ मेला लगेगा और उससे उत्तराखण्ड़ में 4 माह रौनक रहेगी। मई से अक्टूबर तक चारों धाम यात्रा चलती है। इस प्रकार 10 माह श्रद्धालु उत्तराखण्ड़ में रहेंगे। बिना नक्षत्र के कुम्भ लगाना देव कार्य में बाधा डालने जैसा है। जिसका परिणाम उत्तराखण्ड़ की जनता को भुगतना पड़ेगा।


उन्होंने कहाकि अखाड़ा परिषद ने सरकार को सन् 2027 में अर्धकुम्भ मेला नहीं करने की सलाह दी है। वैसे भी अर्ध कुम्भ मेला में हरिद्वार में कोई शाही स्नान नहीं होता हैं, क्यों कि उस समय उज्जैन में सिंहस्थ कुम्भ मेला होता हैं, जो सन् 2028 होना हैं और सन् 2027 में नासिक महाराष्ट्र में सिंहस्थ कुम्भ अगस्त सितम्बर में होगा। उन्होंने बताया कि षड् दर्शन साधु समाज, अखिल भारतीय सनातन धर्म रक्षा समिति ने मुख्यमंत्री को पत्र प्रेषित कर यह सुझाव दिया है।


अर्ध कुम्भ मेला सन् 2028 में उज्जैन सिंहस्थ कुम्भ मेला के साथ होता है और उसी समय होना चाहिए। यदि 2027 में अर्धकुम्भ मेला होता है तो सन् 2028 में सरकार अर्धकुम्भ मेला में कोई व्यवस्था नहीं करेगी और ऐसा करने से देवी देवता और रूष्ट होंगे। वार्षिक माघ मेला करने से उत्तराखण्ड़ के सभी देवता अपनी देव डोली प्रतिवर्ष देवप्रयाग में 14 जनवरी को ऋषिकेश में मौनी अमावस्या व बसन्त पंचमी को हरिद्वार में महाशिवरात्रि से हनुमान जयंती तक उत्तराखण्ड़ के देवता और साधु सन्त व विश्व की जनता स्नान करेगी। जिससे सनातन परम्पराएं बनी रहेंगी।

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