एग्जिमा, सोरायसिस, त्वचा रोगों के लिए घरेलू नुस्खा, बता रहे हैं वैद्य दीपक

250 ग्राम सरसांे का तेल लेकर लोहे की कढ़ाई मंे चढ़ाकर आग पर रख दें, जब तेल खूब उबलने लगे तो उसमें 50 ग्राम नीम की कोमल कोपल (नई पत्तियाँ) डाल दें। कोपलो (पत्तियों ) के काले पड़ते ही कहाडी को तुरंत नीचे उतार दं,े अन्यथा तेल मंे आग लगकर तेल जल सकता है। ठंडा होने पर तेल को छानकर बोतल में भर ले। दिन में चार बार एगजिमा वाले हिस्से पर इस तेल को लगाएं। कुछ ही दिनों मंे एजजिमा नष्ट हो जाएगा। एक वर्ष लगातार लगाते रहने से यह रोग दोबारा कभी नहीं होगा।

सहायक उपचारः-

चना चून को नून बिन चौसठ दिन जो खाय। दाद, खाज और सेंहुआ जरा मूर सो जाय।

विकल्प:- 4 ग्राम चिरायता और चार ग्राम कुटकी लेकर शीशे या चीनी के पात्र में 125 ग्राम पानी डालकर रात को भिगो दंे और ऊपर से ढँककर रख दें। सुबह में रात को भिगोया हुआ चिरायता और कुटकी का पानी निथार कर कपड़े से छानकर पी लें और पीने के बाद 3-4 घंटे तक कुछ नहीं खाए और उसी समय अगले दिन के लिए उसी पात्र में 125 ग्राम पानी और डाल दंे। इस प्रकार चार दिन तक वही चिरायता और कुटकी काम देंगे। इसके बाद इसको फेंककर नया चार-चार ग्राम चिरायता और कुटकी डालकर भिगोये और चार-चार दिन के बाद बदलते रहें। यह पानी (कड़वी चाय) लगातार दो चार सप्ताह पीने से एगजिमा फोडे फुंसी आदि चर्म रोग नष्ट हो जाते है मुँहासे निकलना बंद होते है और रक्त साफ होता है।

विशेष:-

1. एगजिमा में इस कडवे पानी को पीने के अलावा इस पानी से एगजिमा वाले स्थान को धोया करें।

2. इस प्रयोग से एगजिमा और रक्त दोष के अतिरिक्त हड्डी की टीबी, पेट के रोग, अपरस और कैंसर आदि बहुत सी बीमारियां दूर होती हैं। इन कठिन बीमारियांे में आवश्यकतानुसार एक दो महीनों तक चिरायता और कुटकी का पानी पीना चाहिए। रोजाना यह पानी न पी सकने वाले यदि इसे सप्ताह में एक या दो बार लें तो भी काफी फायदा होता है। छोटे बच्चांे को दो चम्मच की मात्रा में यह पानी पिलाना चाहिए। बच्चांे के लिए कडवाहट कम करने के लिए इस कड़वी दवा को पिलाने के बाद ऊपर से एक दो घूंट सादा पानी पिला सकते हैं।

3. इस प्रयोग से सोरायसिस जैसा कठिन चर्म रोग दूर होता है। इस रोग में शरीर की किसी-किसी जगह का चमडा लाल होकर फूल उठता है और सूखी और कड़ी उछाल निकल आती है, जो मछली के बाह्य चर्म जैसी दिखाई देती है। जहां-जहां चकते होते हैं, वहां बाल नहीं होते, परंतु जैसे-जैसे पैचेज ठीक होते हैं वहां बाल उगना शुरू हो जाता है, जो कि बीमारी के ठीक होने के लक्षण हैं। चिरायता और कुटकी के लगातार एक दो महीने के प्रयोग से यह लाइलाज बीमारी भी ठीक हो जाती है।

4. हर प्रकार के ज्वर मंे विशेषकर बसे हुए (पुराने) ज्वर में यह प्रयोग अत्यंत लाभकारी है।

परहेज:- खटाई (खासकर इमली, अमचूर की खटाई ) भारी, तले, तेज मिर्चीदार मसालेदार खाना तथा नशीले पदार्थो का सेवन न करें। नमक का सेवन भी कम से कम करें। यदि नमक का परहेज संभव न हो तो नमक के स्थान पर सैंधा नमक का प्रयोग करंे।

सावधानी:- गर्भवती एवं रजस्वला महिलाओं को यह पानी नहीं पीना चाहिए।

Dr. (Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar aapdeepak.hdr@gmail.com
9897902760

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