दुनिया में करीब 90 प्रतिशत लोगों को दांतों से जुड़ी किसी न किसी तरह की समस्या होती है, लेकिन अधिकतर लोग ज्यादा दिक्कत होने पर ही डेंटिस्ट के पास जाना पसंद करते हैं। ज्यादा जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक का दांतों पर बुरा असर पड़ता है। इस कारण दांतों में कैविटी बढ़ती है और वे अतिसंवेदनशील हो जाते हैं। इस कारण दांतों में ठंडा-गर्म लगने लगता है। दांतों में ठंडा-गर्म लगना एक आम बात होती जा रही है। खाने-पीने की गलत आदतों के कारण दांतों की सुरक्षा परत नष्ट हो जाती है, जिससे दांतों में ठंडा-गरम लगने की समस्या सामने आती है। दांत के भीतर के संवेदनशील भागों की सुरक्षा के लिए सबसे ऊपर एक परत होती है, जिसे एनामेल कहते हैं, लेकिन खान-पान की बुरी आदतों और कई अन्य वजहों से यह परत पतली हो जाती है और दांतों में प्लॉक जमने लगता है।
ऐसे दांतों में सेंसिटिविटी की समस्या ज्यादा होती है। प्लॉक बैक्टीरिया और खाने-पीने के कणों की एक परत होती है, जो आमतौर पर रात का खाना खाने के बाद ब्रश न करने से जमा हो जाती है। ये प्लॉक दांतों के एनामेल पर प्रतिकूल असर डालती है, जिससे दांत कमजोर और संवेदनशील हो जाते हैं।
दांतों की संवेदनशीलता बढ़ने के कारण
पायरिया:-
जिन लोगों को पायरिया की शिकायत होती है, उनके दांतों में ठंडा-गरम लगने की समस्या बहुत ज्यादा होती है। पायरिया में दांत बहुत कमजोर हो जाते हैं, जिससे उनमें सेंसिटिविटी बढ़ जाती है।
मसूढ़ों की बीमारी:-
मसूढ़ों में बीमारी होने पर भी दांतों को ठंडा-गरम ज्यादा लगता है। मसूढ़ों में किसी भी तरह की बीमारी होने पर वह कमजोर पड़ जाते हैं, जिससे दांत मसूढ़ों से बाहर आ जाते हैं और मसूढ़े खुल जाते हैं। ऐसे में इस तरह की परेशानी बढ़ जाती है।
एसीडिटी:-
दांतों की सेंसिटिविटी की बहुत बड़ी वजह है एसीडिटी। जब एसिडिटी बहुत अधिक बढ़ जाती है तो अम्ल खट्टे पानी के रूप में मुंह में आने लगता है। अम्ल के सम्पर्क में आने पर कैल्शियम से बनी दांतों की परत एनामेल गलने लगती है। दांत का सुरक्षा कवच गल कर निकल जाने से दांतों में ठंडा या गरम महसूस होता है।
कॉर्बेनिक एसिड:-
कोल्ड ड्रिंक और सभी एयरेटेड ड्रिंक में भी अम्ल होता है। ये भी एनामेल को एसिडिटी की तरह ही नुकसान पहुंचाता है। आजकल छोटे बच्चों में सेंसटिविटी की समस्या सबसे ज्यादा आने लगी है। इसकी वजह है बच्चों में कोल्ड ड्रिंक्स पीने की लत लगना।
खाने-पीने की गलत आदतें:-
खाने-पीने की गलत आदतों के कारण दातों में कैविटी बढ़ती चली जाती है। ऐसी आदतें एसिडिटी को भी जन्म देती हैं।
सुपारी या तंबाकू:-
सुपारी, पान या तंबाकू खाने की आदत के कारण भी दांतों का एनामेल घिस जाता है। बहुत अधिक पान खाने वाले लोग जब पान खाना छोड़ देते हैं तो उनके दांतों में ठंडा लगने लगता है। लगातार सुपारी चबाते रहने से उनकी नसें बाहर निकल आती हैं।
च्यूंगम या अन्य चीजें:-
हमेशा च्यूंगम या कुछ भी चबाते रहने की आदत से भी एनमेल को क्षति पहुंचती है।
नींद में दांत किटकिटाना:-
कुछ लोगों को नींद में दांत किटकिटाने की आदत होती है। इससे भी दांतों का एनामेल झड़ जाता है।
रात में बिना ब्रश किए सोना:-
रात को ब्रश किए बगैर सोने की आदत भी दांतों में सेंसिटिविटी को बढ़ाती है, क्योंकि इससे दांतों में कैविटी बढ़ती है। इसके अलावा बहुत दबाव के साथ ब्रश करने से भी दांत घिस जाते हैं और संवेदनशील बन जाते हैं।
इलाज
दांतों की सेंसिटिविटी का इलाज समस्या के कारणों के अनुसार ही किया जाता है।
आमतौर पर डॉक्टर इसके लिए औषधियुक्त टूथपेस्ट की सलाह ही देते हैं। इन्हें आप बिना डॉक्टर की सलाह के भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन समस्या दूर न हो तो डॉक्टर की सलाह लेने में न हिचकें। 60 प्रतिशत लोगों की समस्या औषधियुक्त टूथपेस्ट के इस्तेमाल से समाप्त हो जाती है। ये टूथपेस्ट कैल्शियम, फॉस्फेट और पोटेशियम युक्त होते हैं, जो दांतों की सेहत को सही करने में मदद करते हैं। इनका असर लगभग दो हफ्ते बाद नजर आता है।
हमारी फार्मेसी द्वारा निर्मित आदर्श दंत सुधा मंजन एवं आदर्श दंत मंजन का प्रयोग भी दांतों के हर प्रकार के रोगों से बचाता है मसूड़े को मजबूत करता है, खून आने की समस्या दांतों में ठंडा-गरम लगना इत्यादि की समस्या भी दूर करता है
माउथवॉश:-
इसके अलावा माउथवॉश भी दिया जाता है। लेकिन माउथवॉश की सलाह कम ही दी जाती है, क्योंकि इसमें फ्लोराइड होता है और पानी में भी फलोराइड की मात्र ज्यादा रहती है। फ्लोराइड की ज्यादा मात्र नुकसानदेह होती है।
फिलिंग:-
डेंटीन (दंत धातु) के बाहर आ जाने पर फिलिंग करना जरूरी हो जाता है। फिलिंग न कराने पर दांत में ठंडा-गरम व खट्टा-मीठा लगता रहता है, जिससे दांत में दर्द होने लगता है और पस बन जाती है। दांतों में तात्कालिक, सिल्वर, कंपोजिट, जीआईसी फिलिंग करवा सकते हैं। डॉक्टर दांतों की स्थिति देखने के बाद ही निर्णय लेते हैं कि कौन-सी फिलिंग करनी है।
रूट कैनाल:-
जब डेंटीन की परत भी खत्म हो जाए और नस बाहर आ जाए तो रूट कैनाल कराना पड़ता है। जब दांत में कीड़ा गहरा सुराख कर देता है और संक्रमण जड़ों तक फैल जाता है तो रूट कैनाल किया जाता है। जिन टिश्यू में संक्रमण हो जाता है, उन्हें स्टरलाइज्ड करके दांत में एक मैटीरियल भर दिया जाता है। इसमें दांत ऊपर से पहले जैसा ही रहता है, लेकिन दांत की रक्त आपूर्ति काट दी जाती है। इससे दांत में किसी भी तरह की बीमारी या संक्रमण की आशंका समाप्त हो जाती है।
Dr.(Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
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