राष्ट्र के उत्थान में संन्यासियों का अभूतपूर्व योगदानः राजनाथ सिंह

हरिद्वार। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज के श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की आचार्यपीठ पर पदस्थापना के 25 वर्ष पूर्ण होने के पर श्रीदत्त जयन्ती पर हरिहर आश्रम में वैदिक सनातन धर्म में समष्टि कल्याण के सूत्र विषय पर धर्मसभा का समारोह के प्रथम सत्र में आज दिव्य आध्यात्मिक महोत्सव में आयोजन हुआ।
धर्म सभा में सन्तों के साथं मुख्य अतिथि के रूप में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तथा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला मौजूद रहे।

इस अवसर पर केन्द्रीय रक्षामंत्री राजनाथ ने कहा कि ये दिव्य आध्यात्मिक महोत्सव है, परिसर में प्रवेश करते ही इस कार्यक्रम की दिव्यता का मुझे अनुभव हो रहा था। आध्यात्मिक व्यक्ति वही है, जिसका मन बड़ा होता है। अपने परिवार से अलग होकर लोकहित के लिए संन्यास धारण करने का कार्य कोई छोटे मन का व्यक्ति नहीं कर सकता। मन के विस्तार की सीमा वह होती है, जब व्यक्ति सीधे परमानन्द को अनुभूत कर लेता है। मन की परिधि परमानन्द के समानुपाती होती है। कहा कि स्वामी अवधेशानंद गिरि के प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा है, जिसे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है। राष्ट्र के उत्थान में संन्यासियों का अभूतपूर्व योगदान है। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने अग्रेजों के विरुद्ध संन्यासियों के रण के विषय में लिखा है, इसलिए संन्यासियों का इस राष्ट्र की संस्कृति से बड़ा गहरा जुड़ाव है। जब भी आवश्यकता पड़ी संन्यासियों ने समाज के उत्थान का कार्य किया।


उन्होंने कहाकि समाज में न रहकर भी स्वामी अवधेशानंद गिरि के आशीर्वाद से यह आचार्यपीठ समाज के लिए अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर रही है। जल, पर्यावरण और शिक्षा के लिए इस पीठ द्वारा उल्लेखनीय कार्य किए जा रहे हैं। विदेशी आक्रमणकारी ये जानते थे कि संन्यासियों और आध्यात्मिक परम्परा को नष्ट कर हम भारत की सांस्कृतिक चेतना को नष्ट कर दंेगे। किन्तु यह स्वामी अवधेशानंद गिरि जैसे संन्यासियों की जिजीविषा ही थी कि भारत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इतना समृद्ध है। जो अपनी जड़ों और संस्कृतियों से कटे हुए व्यक्ति की परिस्थिति अत्यन्त दयनीय होती है। पुराने समय में जब राजाओं का अभिषेक होता था तो राजा के ऊपर केवल एक ही सत्ता रहती थी और वह है धर्म सत्ता। राजा अपना राजधर्म निभा रहा है कि नही इसका अधिकार पूज्य स्वामी जी जी जैसे मनीषियों का ही है।

उन्होंने अपने उद्बोधन में मन और विचार की उच्चता को दिव्यता और परमानन्द प्राप्ति का साधन बताया, और सन्तों की महिमा का बखान करते हुए कहा कि सन्त मोह माया से विरक्त होने के बाद भी समाज के कल्याण के लिए हमेशा समाज से जुड़े रहते हैं। उन्होंने संस्कृति के साथ जुड़ाव को महत्त्वपूर्ण और सर्वथा कल्याणकारी बताया। उनके साथ इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला व बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी भी उपस्थित रहे।
महोत्सव के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में आयोजित धर्मसभा में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी विशोकानन्द भारती महराज, अटल पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वात्मानन्द महाराज, योगऋषि स्वामी रामदेव, स्वामी राजराजेश्वरानन्द महराज, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव स्वामी परमात्मानन्द, श्री दत्तपद्मनाभ पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मेशानन्द, आचार्य बालकृष्ण, विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक दिनेश जी, विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षआलोक कुमार, उत्तराखण्ड के वित्तमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल , पूर्व केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष राजेश अग्रवाल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा, निहंग समुदाय के प्रमुख सरदार बलजीत, महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानन्द महराज, स्वामी हरिचेतनानन्द, महामण्डलेश्वर स्वामी यतीश्वरानन्द, सुप्रसिद्ध अभिनेता नितीश भारद्वाज, सुरेश चव्हाणके, संगीत सोम, मदन कौशिक, महामण्डलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि, महामण्डलेश्वर स्वामी ललितानन्द गिरि, महामण्डलेश्वर स्वामी अपूर्वानन्द गिरि, संस्था के अनेक वरिष्ठ न्यासी, वरिष्ठ प्रशासनिक व अधिकारी, शहर के अनेक गणमान्य तथा देश-विदेश से बड़ी संख्या में पधारे साधकों की उपस्थिति रहे।

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