हरिद्वार। भगवान भास्कर उपासना व लोक आस्था का महापर्व छठ देश भर में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल व बिहार व झारखंड समेत कई राज्यों में इस बड़े आयोजन के रुप में मनाया जाता है। कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की खास परंपरा है, जिसके चलते करोड़ों लोगों की आस्था छठ पर्व हर साल धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसे कार्तिक शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व में मुखयतः अस्ताचलगामी और उदयाचल होते भगवान भाष्कर की पूजा की जाती है। छठ पूजा का यह पर्व 28 से 31 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। छठ मुख्य रूप से चार दिवसीय पर्व के रुप में जाना जाता है।
नहाय खाय से शुरू होकर यह पर्व उदयाचल भगवान भाष्कर की पूजा और अर्घ्य के साथ संपन्न होती है। इस महापर्व के तीसरे दिन शाम को नदियों व तालाबों के किनारे डूबते हुए सूर्य को और चौथे दिन के सुबह उदय होते भगवान भाष्कर को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद छठ पूजा का समापन हो जाता है। छठ पूजा बिहार और झारखण्ड से निकलकर अब समूचे देश मे ंफैल गई है। साथ ही विदेशों में भी छठ पूजा का आयोजन किया जाने लगा है।
दरअसल अंग देश के महाराज कर्ण सूर्यदेव के उपासक थे, ऐसे में सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव परंपरा के रूप में इस इलाके पर दिखता है। छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं हैं, जिसमें इस लोक आस्था के पर्व को मनाए जाने की जानकारी व कथा मिलती है।
कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वह अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। इसके साथ ही रामायण काल में भी छठ पूजा की बात कहीं गई है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ, परन्तु वह मृत पैदा हुआ था। उसके बाद प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। तभी ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।


